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क्या बिहार एनडीए में सब कुछ ठीक है? मांझी के बाद चिराग ने दिखाए तेवर, जानिए इसके मायने

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बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी हलचलें तेज हो चुकी हैं। इस दौरान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन दोनों अपनी-अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। लेकिन एनडीए के भीतर हाल ही में हुए कुछ घटनाक्रमों ने सियासी गलियारों में सवाल खड़ा कर दिया है। केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान के बयान, “बिहार मुझे बुला रहा है” और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के नेता जीतन राम मांझी की 30-40 सीटों की मांग ने एनडीए में असहमति और तनाव को जन्म दिया है।

चिराग पासवान का बयान: महत्वाकांक्षा या दबाव की रणनीति?

चिराग पासवान, जो बिहार के दलित समुदाय और खासकर पासवान जाति के महत्वपूर्ण नेता माने जाते हैं, ने हाल ही में एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि “बिहार मुझे बुला रहा है” और “मैं विधायक बनने की इच्छा रखता हूं, ताकि अपने राज्य के लिए ज्यादा काम कर सकूं”। इस बयान को सियासी दृष्टिकोण से कई तरीके से देखा जा रहा है। कुछ विश्लेषक इसे चिराग की दबाव बनाने की रणनीति मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे उनके मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा का संकेत मानते हैं।

चिराग ने 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था और जदयू को नुकसान पहुंचाया था, जबकि 2024 में उन्होंने एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और पांच सीटों पर जीत हासिल की। अब उनका ताजा बयान एनडीए के अन्य सहयोगी दलों, खासकर जदयू और बीजेपी के लिए चिंता का कारण बन सकता है, क्योंकि चिराग की बढ़ती सियासी ताकत गठबंधन में दबाव डाल सकती है।

जीतन राम मांझी की सीटों की मांग: क्या सौदेबाजी की रणनीति?

चिराग के बयान से पहले, जीतन राम मांझी ने भी अपनी मांग रखी थी कि उनकी पार्टी को विधानसभा चुनाव में 30-40 सीटें मिलनी चाहिए। मांझी की पार्टी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम), मुख्य रूप से मुसहर समुदाय (महादलित) का प्रतिनिधित्व करती है। उनका यह दावा भी एनडीए में सीटों को लेकर खींचतान का संकेत देता है। मांझी का इतिहास यह बताता है कि वे हमेशा अपनी पार्टी को प्रमुख सहयोगी बनाए रखने की कोशिश करते हैं, और उनके इस रुख से एनडीए में असहमति और तनाव बढ़ सकता है।

एनडीए में खींचतान: सीट बंटवारे पर असहमतियां

बिहार में एनडीए के पांच प्रमुख दलों में बीजेपी, जदयू, लोजपा (रामविलास), हम और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (उपेंद्र कुशवाहा) शामिल हैं। इन दलों के बीच 243 विधानसभा सीटों का बंटवारा हमेशा एक चुनौती रहा है, और हर दल अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए अधिक सीटें चाहता है। चिराग और मांझी के ताजे बयान से यह स्पष्ट हो रहा है कि सीट बंटवारे को लेकर पहले ही असहमति और दबाव की स्थिति बन चुकी है।

चिराग ने कहा है कि सीटों का बंटवारा गठबंधन के भीतर तय होगा, लेकिन उनकी उम्मीद 100% स्ट्राइक रेट बनाए रखने की है। वहीं, मांझी की मांग से बीजेपी और जदयू पर दबाव बढ़ेगा, क्योंकि दोनों दल अपनी सीटों में ज्यादा कटौती के पक्ष में नहीं होंगे।

महागठबंधन की एकजुटता: एनडीए के लिए खतरा?

एनडीए के भीतर असहमतियों और तनाव के बीच महागठबंधन अपनी एकजुटता का दावा कर रहा है। हाल ही में पटना और दिल्ली में महागठबंधन की बैठकों में सीट शेयरिंग और मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर चर्चा हुई। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग की है, जिसे कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों ने समर्थन दिया है। महागठबंधन की यह एकजुटता एनडीए के लिए चुनौती बन सकती है, खासकर जब एनडीए में सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर मतभेद उभर रहे हों।

पशुपति पारस का एनडीए छोड़ना: चिराग के लिए बढ़ी ताकत?

चिराग पासवान के लिए एक और अहम घटनाक्रम उनके चाचा पशुपति कुमार पारस का एनडीए छोड़ना था। पारस ने एनडीए से नाता तोड़ने की घोषणा की है और महागठबंधन में शामिल होने की संभावना जताई है। यह चिराग के लिए एक सियासी जीत मानी जा रही है, क्योंकि पारस और चिराग के बीच लंबे समय से नेतृत्व को लेकर संघर्ष चल रहा था। पारस का एनडीए छोड़ना चिराग के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या पारस महागठबंधन में शामिल होकर चिराग के दलित वोट बैंक में सेंधमारी कर पाएंगे।

एनडीए में नीतीश कुमार का नेतृत्व भी एक अहम सवाल बन सकता है। चिराग ने हाल ही में नीतीश के नेतृत्व को स्वीकारते हुए कहा कि 2025 का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। हालांकि, नीतीश की उम्र और स्वास्थ्य के मद्देनजर उनके नेतृत्व को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जो एनडीए के भविष्य को लेकर चिंता पैदा कर रहे हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए के भीतर चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के बयान सियासी समीकरणों को और जटिल बना रहे हैं। चिराग की महत्वाकांक्षाएं और मांझी की सीटों की मांग गठबंधन की एकता को प्रभावित कर सकती हैं। महागठबंधन की एकजुटता और पशुपति पारस की सक्रियता एनडीए के लिए चुनौती बन सकती है। आने वाले समय में यह देखना होगा कि एनडीए अपनी एकजुटता बनाए रख पाता है या नहीं, और बिहार की सियासत में कौन सा नया मोड़ आता है।

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