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महानदी जल विवाद सुलझाने की पहल: दिल्ली में बैठक, सितंबर से तकनीकी समितियां हर हफ्ते करेंगी चर्चा

छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच दशकों पुराना विवाद; समाधान निकला तो देश के लिए बनेगा मिसाल

नई दिल्ली : छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी के पानी के बंटवारे को लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद अब सुलझने की दिशा में बढ़ता दिखाई दे रहा है। शनिवार को नई दिल्ली में हुई एक अहम बैठक में दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों और जल संसाधन विभाग के सचिवों ने हिस्सा लिया। बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि समस्या भले ही पुरानी और जटिल है, लेकिन इसका समाधान आपसी बातचीत और सहयोग से ही संभव है।

महानदी, जो छत्तीसगढ़ से निकलकर ओडिशा से होते हुए बंगाल की खाड़ी तक जाती है, दोनों राज्यों के लिए जीवन रेखा मानी जाती है। कृषि, पेयजल और औद्योगिक इस्तेमाल में इस नदी का पानी अत्यंत अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में इसका बंटवारा दोनों राज्यों के बीच लगातार विवाद का कारण रहा है।


सितंबर से हर हफ्ते बैठक करेंगी समितियां

बैठक में यह अहम निर्णय लिया गया कि सितंबर 2025 से दोनों राज्यों की तकनीकी समितियां हर हफ्ते बैठक करेंगी। इन समितियों में जल संसाधन विभाग के इंजीनियर और विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो वास्तविक समस्याओं को चिन्हित करेंगे और समाधान की दिशा में ठोस सुझाव देंगे।

इसके साथ ही यह भी तय हुआ कि अक्टूबर 2025 में दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों और जल संसाधन सचिवों की एक और बैठक होगी। अगर सब कुछ सही रहा तो दिसंबर 2025 में छत्तीसगढ़ और ओडिशा के मुख्यमंत्री भी आमने-सामने बैठकर इस विवाद को सुलझाने की दिशा में बड़ा फैसला ले सकते हैं।


लोगों की जरूरत और राज्यों का हित प्राथमिकता

बैठक में दोनों राज्यों ने माना कि महानदी जल विवाद सिर्फ तकनीकी या प्रशासनिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर लाखों लोगों की जिंदगी पर पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि इस विवाद को टकराव नहीं, बल्कि सहयोग के रास्ते से हल किया जाए। अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि किसानों, ग्रामीण इलाकों और शहरी आबादी की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए समाधान खोजा जाएगा।


अगर विवाद सुलझा तो देश के लिए नजीर बनेगा

जल संसाधन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह पहल सफल होती है तो यह न केवल छत्तीसगढ़ और ओडिशा के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी नजीर (मिसाल) होगी। देश के कई हिस्सों में अंतरराज्यीय नदियों के पानी को लेकर विवाद चल रहे हैं। कावेरी जल विवाद (कर्नाटक-तमिलनाडु) और सतलुज-यमुना लिंक (पंजाब-हरियाणा) इसके उदाहरण हैं। ऐसे में महानदी विवाद का समाधान आपसी बातचीत से निकलना यह संदेश देगा कि बड़े और पुराने विवाद भी सहयोग और संवाद से हल हो सकते हैं।


राजनीतिक और सामाजिक महत्व भी

विशेषज्ञ मानते हैं कि पानी को लेकर कोई भी विवाद सिर्फ राज्यों का मसला नहीं होता, बल्कि यह राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था — तीनों पर गहरा असर डालता है। ओडिशा और छत्तीसगढ़ में पिछले कई चुनावों में महानदी का मुद्दा बड़ा चुनावी विषय बनता रहा है। अगर अब इसका हल निकलता है तो यह दोनों राज्यों की राजनीति में भी नया मोड़ ला सकता है।


महानदी जल विवाद पर दिल्ली में हुई बैठक एक सकारात्मक शुरुआत मानी जा रही है। अब सबकी निगाहें सितंबर से शुरू होने वाली तकनीकी समितियों की बैठकों और दिसंबर में संभावित मुख्यमंत्रियों की मुलाकात पर टिकी होंगी। अगर यह पहल सफल रही तो यह न सिर्फ दो राज्यों के लिए राहत की खबर होगी, बल्कि पूरे देश के लिए सहमति और सहयोग का एक ऐतिहासिक उदाहरण भी पेश करेगी।

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