
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी, अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (APCCF) रैंक तक के भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) नहीं लिख सकते।
कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 29 जून 2024 को जारी उस सरकारी आदेश (G.O.) को रद्द कर दिया, जिसमें जिला कलेक्टर और प्रभागीय आयुक्त को संबंधित IFS अधिकारियों की प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (PAR) पर टिप्पणी करने की अनुमति दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने कहा:
“29 जून 2024 का आदेश, इस न्यायालय द्वारा पूर्व में (22 सितंबर 2000 और 19 अप्रैल 2004 को) जारी किए गए स्पष्ट निर्देशों का उल्लंघन करता है।”
कोर्ट ने माना कि मध्य प्रदेश सरकार ने वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवमानना की, हालांकि उसने इस पर आगे की सजा देने से परहेज किया।
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सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य बनाम पी.सी. वाधवा (1987) केस में दिए गए सिद्धांत का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि रिपोर्टिंग अथॉरिटी उस अधिकारी से ऊंचे पद का होना चाहिए।
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संतोष भारती बनाम मध्य प्रदेश (2007) केस में भी यही दोहराया गया था कि IAS अधिकारी IFS अधिकारियों की समीक्षा अथॉरिटी नहीं हो सकते।
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कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि APCCF रैंक तक के अधिकारियों की ACR लिखने का अधिकार केवल वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी के पास होना चाहिए।
वन विभाग के लिए अलग दिशा-निर्देश
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केवल PCCF (Principal Chief Conservator of Forests) की ACR रिपोर्टिंग के लिए किसी अन्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को मान्यता दी जा सकती है।
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कोर्ट ने यह सुझाव दिया कि जिला प्रशासन के फंड से किए गए कार्यों पर कलेक्टर या आयुक्त चाहें तो अलग शीट पर अपने विचार दर्ज कर सकते हैं, लेकिन उसे भी अंततः वन विभाग का वरिष्ठ अधिकारी ही मान्य कर सकता है।
सुनवाई के दौरान CJI बी.आर. गवई ने कहा:
“मेरे 22 साल के न्यायिक अनुभव से कह सकता हूं कि कई IAS अधिकारी IPS और IFS अधिकारियों पर अपनी श्रेष्ठता जताना चाहते हैं। हमेशा एक संघर्ष होता है…”
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सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अंतर-सेवा सम्मान, संवैधानिक दायरे, और वन सेवा अधिकारियों की स्वायत्तता को सुदृढ़ करता है।
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सभी राज्यों को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि IFS अधिकारियों की ACR केवल उनके तत्काल वरिष्ठ वन अधिकारियों द्वारा ही लिखी जाए।
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कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह अपने नियमों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप संशोधित करे।