
- नई दिल्ली/मुंबई। महाराष्ट्र में चल रहा हिंदी बनाम मराठी विवाद अब संसद भवन की लॉबी तक पहुँच गया है। बुधवार को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को संसद परिसर में महाराष्ट्र से कांग्रेस की महिला सांसदों द्वारा घेरने का मामला सामने आया है। कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़ ने इस घटनाक्रम की पुष्टि की है।
क्या हुआ संसद की लॉबी में?
कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़ के मुताबिक, बुधवार दोपहर करीब 12:30 से 1:00 बजे के बीच, संसद भवन की कैंटीन के पास मराठी सांसद निशिकांत दुबे की तलाश में थे। इसी दौरान भाजपा सांसद मनोज तिवारी नजर आए, जिनसे पूछताछ के दौरान निशिकांत दुबे खुद सामने आ गए।
इसके बाद कांग्रेस सांसदों—वर्षा गायकवाड़, प्रतिभा धानोरकर, शोभा बच्छाव और अन्य ने दुबे से तीखे सवाल किए कि उन्होंने महाराष्ट्र के खिलाफ “आपत्तिजनक भाषा” का इस्तेमाल क्यों किया।
गायकवाड़ के अनुसार, “हमने पूछा कि ‘बताइए, किस-किस को पटक पटक कर मारेंगे?’ इस पर दुबे थोड़े अचंभित दिखे और जवाब में कहा— ‘नहीं, नहीं… जय महाराष्ट्र…’ फिर वह वहाँ से चले गए।”
‘जय महाराष्ट्र’ नारे के बाद माहौल गर्माया
घटना के दौरान ‘जय महाराष्ट्र’ का नारा लगने के बाद लॉबी में कई अन्य सांसद भी जमा हो गए। बताया गया कि यह पूरा घटनाक्रम संसद की कैंटीन के समीप हुआ, लेकिन कोई शारीरिक झड़प नहीं हुई।
विवाद की जड़ क्या है?
मुंबई में पिछले कुछ दिनों से मराठी बनाम हिंदी भाषी नागरिकों के बीच विवाद बढ़ा है। मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा हिंदी बोलने वालों के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट के वीडियो वायरल हुए थे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए निशिकांत दुबे ने एक बयान में कहा था:
“अगर मराठी कार्यकर्ता हिंदी भाषी लोगों को पीटते हैं, तो उन्हें तमिल, तेलुगु और उर्दू बोलने वालों से भी यही व्यवहार करना चाहिए। अगर तुममें इतनी हिम्मत है, तो महाराष्ट्र से बाहर निकलो—बिहार, यूपी, तमिलनाडु आओ—’तुमको पटक पटक के मारेंगे।'”
हालाँकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि वह महाराष्ट्र और मराठी समाज का सम्मान करते हैं और उनका बयान राजनीतिक संदर्भ में था।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और आगे की संभावना
इस पूरे घटनाक्रम ने संसद के भीतर राजनीतिक गर्माहट बढ़ा दी है। फिलहाल भाजपा की ओर से इस मुद्दे पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। लेकिन माना जा रहा है कि आगामी दिनों में बीएमसी चुनावों की पृष्ठभूमि में यह विवाद और भी तेज़ हो सकता है।
यह मामला ऐसे समय में उभरा है जब भाषा, क्षेत्रीय अस्मिता और चुनावी राजनीति के मुद्दे पहले से ही संवेदनशील मोड़ पर हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे केवल व्यक्तिगत प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि बड़ी रणनीतिक सियासी रेखा के रूप में देख रहे हैं।