उत्तराखंडफीचर्ड

उत्तराखंड सिविल सेवा मुख्य परीक्षा पर हाईकोर्ट की रोक, विवादित प्रश्नों की होगी दोबारा जांच

नैनीताल/देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य लोक सेवा आयोग (UKPSC) द्वारा आयोजित संयुक्त राज्य सिविल सेवा एवं प्रवर अधीनस्थ सेवा परीक्षा–2024 की मुख्य परीक्षा पर अस्थायी रोक लगा दी है। यह मुख्य परीक्षा 6 से 9 दिसंबर 2025 तक आयोजित की जानी थी, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा से जुड़े कुछ सवालों पर उठे गंभीर आपत्तियों के मद्देनज़र अदालत ने आयोग को बड़े निर्देश जारी किए हैं। अदालत के इस फैसले से राज्य की सबसे प्रतिष्ठित भर्ती प्रक्रिया फिलहाल ठहर गई है और हजारों अभ्यर्थियों की उम्मीदें संशोधित निर्णय की प्रतीक्षा में अटक गई हैं।

अभ्यर्थियों की याचिका से शुरू हुआ मामला

हरिद्वार निवासी कुलदीप राठी सहित कई अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिकाएँ दायर कर कहा था कि प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए कुछ प्रश्न या तो तथ्यात्मक रूप से गलत थे या विकल्प स्पष्ट नहीं थे, जिससे परीक्षा की पारदर्शिता पर प्रभाव पड़ा। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि ऐसे सवालों के कारण कई उम्मीदवारों का स्कोर प्रभावित हुआ है और यह सीधे–सीधे मुख्य परीक्षा में चयनित अभ्यर्थियों की सूची को प्रभावित करता है।

इन याचिकाओं पर सुनवाई न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने की। अदालत ने याचिकाओं में उठाई गई दलीलों का परीक्षण करते हुए माना कि विवादित प्रश्नों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच आवश्यक है।

कोर्ट का बड़ा आदेश: एक प्रश्न हटाया, तीन की विशेषज्ञ समीक्षा

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में प्रश्न क्रमांक 70 को पूरी तरह से हटाने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि यह प्रश्न इस हद तक विवादित है कि इसे उत्तर पुस्तिका मूल्यांकन प्रक्रिया से बाहर करना ही उचित होगा।

इसके अलावा, अन्य तीन प्रश्नों को लेकर भी कोर्ट ने गंभीरता दिखाई है और उन्हें विशेषज्ञ समिति द्वारा दोबारा जांचने का निर्देश दिया है। अदालत ने ये भी स्पष्ट किया कि—

“जब तक विवादित सवालों की समीक्षा पूरी नहीं होती और आयोग संशोधित मेरिट सूची तैयार नहीं करता, तब तक मुख्य परीक्षा आयोजित करना न्यायसंगत नहीं होगा।”

इस टिप्पणी के साथ न्यायालय ने मुख्य परीक्षा पर फिलहाल रोक लगाने का निर्णय सुनाया।

क्यों महत्वपूर्ण है यह भर्ती?

यह संपूर्ण विवाद 2024–25 की राज्य सिविल सेवा भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है, जिसमें कुल 123 पदों पर नियुक्तियां प्रस्तावित हैं। इनमें प्रमुख पद इस प्रकार हैं—

  • डिप्टी कलेक्टर (PCS)
  • डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (DSP)
  • ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (BDO)
  • एवं अन्य प्रवर अधीनस्थ सेवाओं के पद

राज्य की नौकरशाही और प्रशासनिक ढांचे में सीधे प्रवेश दिलाने वाली इस परीक्षा को उत्तराखंड के युवाओं में अत्यधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है।

प्रारंभिक परीक्षा की प्रकृति और विवाद का असर

UKPSC ने दो पेपरों—

  1. जनरल स्टडीज (GS)
  2. सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट (CST)

—प्रत्येक 150 अंकों के तहत प्रारंभिक परीक्षा आयोजित की थी। इन्हीं अंकों के आधार पर मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यर्थियों का चयन हुआ।

लेकिन अब, विवादित प्रश्न हटने या उनमें सुधार होने पर कई परीक्षार्थियों के अंक बढ़ या घट सकते हैं, जिससे संपूर्ण मेरिट सूची प्रभावित हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि—

मेरिट में बदलाव की प्रबल संभावना

यदि किसी प्रश्न के लिए अतिरिक्त अंक मिलते हैं या गलत विकल्प हटाया जाता है, तो कट–ऑफ बदल सकती है। कई उम्मीदवार जो वर्तमान सूची में बाहर हैं, वे अंदर आ सकते हैं और इसके विपरीत भी संभव है।

इसी कारण अदालत ने कहा कि मूल मेरिट सूची को आधार बनाकर मुख्य परीक्षा आयोजित करना अभावित, अनुचित और संभावित रूप से असंगत होगा।

आयोग की भूमिका पर सवाल और परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता

याचिकाकर्ताओं ने अदालत में यह भी कहा कि परीक्षा में गलत प्रश्न आना आयोग की पेपर मॉडरेशन प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। उन्होंने दावा किया कि कई प्रश्नों का तथ्य–सत्यापन न तो सही स्तर पर हुआ और न ही विकल्पों की भाषा स्पष्ट थी।

हाईकोर्ट ने भी परीक्षा प्रक्रियाओं में उच्चतम स्तर की पारदर्शिता पर जोर दिया और आयोग को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए कि भविष्य में पेपर–सेटिंग के दौरान ऐसी त्रुटियाँ न हों।

हजारों अभ्यर्थी संशोधित तिथि की प्रतीक्षा में

मुख्य परीक्षा के स्थगित होने से प्रदेश भर के अभ्यर्थियों में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। सामान्यतः मुख्य परीक्षा की तैयारी के लिए उम्मीदवार महीने–छह महीने तक गहन अध्ययन करते हैं, लेकिन अब संशोधित नवीन परीक्षा तिथियों का इंतजार करना होगा।

आयोग की ओर से अभी नई तिथियों के संबंध में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है, लेकिन अनुमान है कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और संशोधित परिणाम आने के बाद ही मुख्य परीक्षा की नई तिथियों की घोषणा हो सकती है।

आगे की राह—निष्पक्ष परीक्षा प्रक्रिया सुनिश्चित करने की चुनौती

हाईकोर्ट के इस फैसले को कई अभ्यर्थी पारदर्शिता की दिशा में आवश्यक कदम मान रहे हैं। विशेषज्ञों का भी मानना है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में छोटी–सी गलती भी बड़ी संख्या में उम्मीदवारों के भविष्य को प्रभावित कर सकती है। इसलिए न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करना उचित है।

आगे की कार्यवाही अब इस बात पर निर्भर करेगी कि—

  • विशेषज्ञ समिति अपनी रिपोर्ट कब तक सौंपती है,
  • आयोग संशोधित मेरिट सूची तैयार करने में कितना समय लेता है,
  • और मुख्य परीक्षा के लिए आवेदकों को कितना अतिरिक्त समय मिलता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button