
देहरादून | न्यूज़ डेस्क उत्तराखंड सरकार ने राज्य की बहुमूल्य जड़ी-बूटियों और सुगंधित पौधों को प्रदेश की आर्थिकी (Economy) की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए एक व्यापक कार्ययोजना तैयार की है। बुधवार को सचिवालय में मुख्य सचिव श्री आनन्द बर्द्धन की अध्यक्षता में आयोजित “गैर प्रकाष्ठ वन उपज (NTFP) विकास तथा हर्बल एवं एरोमा टूरिज्म परियोजना” की राज्य स्तरीय अनुश्रवण समिति की बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।
मुख्य सचिव ने स्पष्ट किया कि जड़ी-बूटी उत्तराखंड की ‘यूएसपी’ (Unique Selling Proposition) है और अब इसे केवल संरक्षण तक सीमित न रखकर रोजगार और पर्यटन से जोड़ा जाएगा।
1. ‘हर्बल एवं एरोमा टूरिज्म’ का नया मॉडल
बैठक में मुख्य सचिव ने वन विभाग को निर्देश दिए कि राज्य की मौजूदा हर्बल नर्सरियों को केवल पौधों के उत्पादन तक सीमित न रखकर उन्हें हर्बल एवं एरोमा पार्क के रूप में विकसित किया जाए।
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प्रमुख स्थल: देवबंद, खिर्सू, जागेश्वर, सेलाकुईं और मुन्स्यारी जैसे पर्यटन स्थलों की नर्सरियों का विस्तार किया जाएगा।
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पर्यटन से जुड़ाव: इन पार्कों को पर्यटन गतिविधियों का केंद्र बनाया जाएगा, ताकि पर्यटक उत्तराखंड की जैविक विविधता और सुगंधित पौधों के बारे में जान सकें। इसके लिए शीघ्र ही एक विस्तृत ‘नर्सरी प्लान’ तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।
2. विभागों के बीच सामंजस्य: बनेगा एक विशेष ‘कोर ग्रुप’
मुख्य सचिव ने जड़ी-बूटी क्षेत्र में बिखराव को खत्म करने के लिए एक कोर ग्रुप के गठन का आदेश दिया। इसमें निम्नलिखित विभागों को शामिल किया गया है:
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कृषि एवं उद्यान विभाग
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हर्बल विकास एवं अनुसंधान संस्थान (HRDI)
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सगन्ध पौधा केन्द्र (CAP)
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वन विभाग एवं वन निगम
उन्होंने कहा कि अभी तक ये सभी विभाग अलग-अलग कार्य कर रहे थे, लेकिन अब उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक एक साझा रणनीति (Convergence Model) के तहत काम करेंगे।
3. 10 हजार किसानों का प्रशिक्षण और कौशल विकास
राज्य की ग्रामीण आर्थिकी को मजबूती देने के लिए इस परियोजना के तहत 10,000 किसानों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है।
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नोडल एजेंसी: सेलाकुईं स्थित सगन्ध पौधा केन्द्र (CAP) को प्रशिक्षण के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है।
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प्रशिक्षण मॉड्यूल: मुख्य सचिव ने जल्द से जल्द एक आधुनिक प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार करने के निर्देश दिए हैं, ताकि किसानों को जड़ी-बूटियों की वैज्ञानिक खेती और उनके रखरखाव का ज्ञान मिल सके।
4. डिमांड-ड्रिवन प्रोडक्शन: आयुर्वेदिक कंपनियों से होगा एमओयू
मुख्य सचिव ने विपणन (Marketing) पर विशेष जोर देते हुए कहा कि उत्पादन केवल ‘सप्लाई’ आधारित नहीं बल्कि ‘डिमांड’ आधारित होना चाहिए।
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फार्मा लिंकेज: विभागों को निर्देश दिए गए हैं कि वे देश की बड़ी आयुर्वेदिक फार्मा कंपनियों से संपर्क करें और उनकी मांग के अनुरूप ही जड़ी-बूटियों का उत्पादन सुनिश्चित करें।
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बजट का प्रावधान: उन्होंने आश्वासन दिया कि वर्तमान में बजट निर्माण की प्रक्रिया चल रही है, यदि इस परियोजना के लिए अतिरिक्त बजट की आवश्यकता होगी, तो उसका प्रावधान किया जाएगा।
5. निगरानी तंत्र और पीएमसी का गठन
परियोजना की गति और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए मुख्य सचिव ने दो प्रमुख कदम उठाने को कहा:
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प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंसी (PMC): वन विभाग को जल्द से जल्द पीएमसी गठित करने के निर्देश दिए गए हैं।
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जिला स्तरीय समितियां: योजना के क्रियान्वयन के लिए जिला स्तर पर अनुश्रवण समितियों का गठन किया जाएगा, जो नियमित रूप से ब्लॉक स्तर तक प्रगति की समीक्षा करेंगी।
बैठक में उपस्थित प्रमुख अधिकारी
इस महत्वपूर्ण बैठक में प्रमुख सचिव श्री आर.के. सुधांशु, सचिव डॉ. पंकज कुमार पाण्डेय, पीसीसीएफ (हॉफ) श्री रंजन कुमार मिश्र, पीसीसीएफ (वन पंचायत) श्री वी.पी. गुप्ता, अपर सचिव श्री विजय कुमार जोगदण्डे एवं श्री हिमांशु खुराना सहित वन और उद्यान विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।
निष्कर्ष: सशक्त उत्तराखंड का संकल्प
उत्तराखंड सरकार का यह कदम राज्य की ‘ग्रीन इकोनॉमी’ को बढ़ावा देने की दिशा में क्रांतिकारी साबित हो सकता है। जड़ी-बूटियों का वैज्ञानिक दोहन और उन्हें पर्यटन के साथ जोड़ने से न केवल स्थानीय स्तर पर पलायन रुकेगा, बल्कि उत्तराखंड वैश्विक स्तर पर ‘हर्बल हब’ के रूप में अपनी पहचान मजबूत करेगा।



