
देहरादून : उत्तराखंड के हरिद्वार में सामने आए बहुचर्चित ज़मीन घोटाले ने प्रदेश की राजनीति और नौकरशाही दोनों को हिला दिया है। घोटाले में सामने आए तथ्यों और सरकार की कार्रवाई के बाद अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सीधे तौर पर CBI जांच की मांग करते हुए कहा कि यह केवल अधिकारियों का मामला नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक संरक्षण या संलिप्तता भी हो सकती है।
हरीश रावत ने बयान देते हुए कहा,
“यह अत्यधिक गंभीर मामला है। उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में इस तरह के भूमि घोटालों की खबरें आ रही हैं। इस मामले की निष्पक्ष जांच या तो न्यायिक निगरानी में हो, SIT गठित हो, या CBI जांच कराई जाए — लेकिन कोर्ट की देखरेख में हो।
एक बात निश्चित है कि इतना बड़ा घोटाला केवल 2-3 अफसरों से नहीं हो सकता। इसमें राजनीतिक संरक्षण की बू है। अधिकारी तो निलंबित हो गए, लेकिन सफेदपोशों का क्या होगा? चाहे उनके कपड़े किसी भी रंग के क्यों न हों।”
इस मामले में धामी सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए 3 जून को हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह, नगर आयुक्त आईएएस वरुण चौधरी और पीसीएस अजय वीर सिंह समेत 7 अधिकारियों को निलंबित कर दिया।
इससे पहले 5 और अधिकारियों पर कार्रवाई हो चुकी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विजिलेंस जांच के आदेश भी दिए हैं।
यह पूरा मामला हरिद्वार नगर निगम द्वारा सराय ग्राम में की गई भूमि खरीद से जुड़ा है:
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33 बीघा भूमि को नगर निगम ने ₹53.70 करोड़ में खरीदा।
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जबकि बाजार मूल्य महज़ 13 करोड़ रुपए के करीब था।
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इस जमीन को पहले कृषि भूमि से गैर कृषि (143 श्रेणी) में बदला गया।
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यह बदलाव भूमि खरीद प्रक्रिया के दौरान ही कर लिया गया।
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19 सितंबर 2024 से प्रक्रिया शुरू, 26 अक्टूबर तक कागजी कार्रवाई पूरी।
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नवंबर में तीन किस्तों में अलग-अलग लोगों से ज़मीन की रजिस्ट्री हुई।
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श्रेणी परिवर्तन के लिए 3 अक्टूबर से 6 अक्टूबर तक कार्रवाई पूरी कर दी गई — महज़ 4 दिन में।
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तत्कालीन SDM अजय वीर सिंह ने पूरी प्रक्रिया रिकॉर्ड समय में निपटा दी।
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राजस्व अभिलेखों में मिश्लबंद पंजिका (विवाद रिकॉर्ड) में हेरफेर कर नया रिकॉर्ड बनाया गया।
हरिद्वार ज़मीन घोटाला प्रदेश में अब तक के सबसे तेज और सुनियोजित भूमि लेनदेन घोटालों में से एक माना जा रहा है।
राजनीतिक दबाव, उच्चस्तरीय गठजोड़ और प्रशासनिक मिलीभगत की आशंका ने इस मामले को और भी संवेदनशील बना दिया है।
अब देखना यह होगा कि क्या सरकार केवल अफसरों तक ही सीमित कार्रवाई करती है या हरीश रावत की मांग के अनुसार सफेदपोशों की भूमिका पर भी जांच की आंच पहुँचती है।