उत्तराखंडफीचर्ड

देहरादून के हाई-प्रोफाइल बिल्डर की आत्महत्या केस में एफआर: 18 महीने बाद गुप्ता बंधुओं को मिली क्लीनचिट, सवाल बरकरार

देहरादून। राजधानी दून के रियल एस्टेट सेक्टर को हिला देने वाले हाई-प्रोफाइल बिल्डर सतेंद्र उर्फ बाबा साहनी की आत्महत्या का मामला आखिरकार फाइनल रिपोर्ट (एफआर) में बंद कर दिया गया। 24 मई 2024 को बेटी के फ्लैट की आठवीं मंजिल से कूदकर जान देने वाले इस नामी बिल्डर ने अपने सुसाइड नोट में दक्षिण अफ्रीका से विवादों में घिरे अजय गुप्ता और उनके बहनोई अनिल गुप्ता का नाम लिखा था। इसी आधार पर दोनों की गिरफ्तारी भी हुई, लेकिन 18 महीने की जांच के बाद पुलिस ने केस को यह कहते हुए बंद कर दिया कि “कोई ठोस सबूत नहीं मिला।”

इस फैसले के साथ, दक्षिण अफ्रीका में जैकब जुमा सरकार के दौरान भारी भ्रष्टाचार कांड में फंसे और बाद में भारत लौटे गुप्ता बंधुओं को इस मामले में क्लीनचिट मिल गई। लेकिन सवाल बड़ा है — क्या सचमुच कोई सबूत नहीं था, या कहीं न कहीं जांच की धार कुंद हो गई?


तेज़ शुरुआत, धीमी पड़ती जांच… और अंत में फाइल बंद

यह वही मामला है जिसमें शुरुआती दिनों में पुलिस की कार्रवाई बेहद तेज़ दिखाई दी। सुसाइड नोट में नाम दर्ज होना, बेटे के आरोप और बिल्डर समुदाय में भारी हलचल—इन सबने मामले को चर्चा के केंद्र में ला दिया था।
लेकिन जांच समय के साथ धीमी पड़ती गई। न नए बयान दर्ज हुए, न किसी वित्तीय लेनदेन की गहराई से परतें खोली गईं।

अंततः डेढ़ साल बाद रिपोर्ट तैयार हुई और नतीजा निकला—
“मृत्यु के लिए आरोपियों की भूमिका सिद्ध करने वाला कोई प्रत्यक्ष, ठोस या परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं मिला।”

इस तरह, एक हाई-स्टेक केस जो शुरुआत में बेहद मजबूत दिख रहा था, वह चुपचाप फाइनल रिपोर्ट के साथ बंद हो गया।


सुसाइड नोट: आरोप थे गंभीर, पर सबूत नहीं — पुलिस का दावा

घटना वाले दिन, पुलिस को सतेंद्र साहनी की जेब से एक सुसाइड नोट मिला था। इसमें साफ लिखा था कि—

  • अजय गुप्ता
  • अनिल गुप्ता

उनके आर्थिक और व्यावसायिक दबावों के लिए ज़िम्मेदार हैं।

नोट में संदिग्ध वित्तीय लेनदेन, साझेदारी में विवाद और प्रोजेक्ट्स को लेकर गहरी नाराज़गी की झलक भी थी।
इसके अलावा, बिल्डर के बेटे ने अपने बयान में गुप्ता परिवार पर स्पष्ट आरोप लगाए थे।

इन्हीं दो आधारों पर दोनों को जेल भेजा गया।
लेकिन पुलिस का कहना है कि—

  • नोट की हैंडराइटिंग सत्यापित होने के बावजूद
  • आरोपियों की भूमिका सिद्ध करने के लिए आवश्यक वित्तीय प्रवाह, दबाव, धमकी या ब्लैकमेल जैसी कोई ठोस कड़ी नहीं मिली।

परिवार और बिल्डर बिरादरी के कई लोगों के अनुसार, सुसाइड नोट और लेनदेन के रिकॉर्ड में “कई प्रश्न” थे, जिन्हें जांच में अपेक्षित गहराई नहीं मिली।


कौन थे सतेंद्र साहनी — रियल एस्टेट का बड़ा नाम, दो मल्टीक्रोड़ प्रोजेक्ट अधर में

मृतक सतेंद्र साहनी देहरादून के जाने-माने बिल्डर थे।
वे दो कंपनियों – साहनी इंफ्रास्ट्रक्चर और साहनी स्ट्रक्चर – के निदेशक थे और सहस्रधारा हेलीपैड के पास व राजपुर रोड स्थित अम्मा कैफे के पास दो बड़े आवासीय प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे थे।

शुरुआत में उनके पार्टनर संजय गर्ग थे, लेकिन प्रोजेक्ट्स का बजट बढ़ने पर उन्हें बड़े फाइनेंसर की आवश्यकता पड़ी। यहीं से गुप्ता परिवार का एंगल आया — और बाद में तनाव भी।

परिवार के सूत्रों की मानें तो प्रोजेक्ट्स को लेकर आर्थिक दवाब और शर्तों में बदलाव को लेकर साहनी लंबे समय से तनावग्रस्त थे।


बिल्डर समुदाय में निराशा: “नोट था, लेनदेन थे… फिर सबूत नहीं मिले कैसे?”

रियल एस्टेट से जुड़े कई लोगों ने एफआर पर सवाल उठाते हुए कहा—

“अगर सुसाइड नोट को भी सबूत नहीं माना जा सकता,
तो फिर आत्महत्या में जिम्मेदारी तय होगी कैसे?”

कई विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में फॉरेंसिक अकाउंटिंग,
बैंकिंग ट्रांजेक्शन,
व्यावसायिक दबाव,
व्हाट्सएप/ईमेल कम्युनिकेशन
जैसी तकनीकी जांच जरूरी होती है, लेकिन इस केस में यह दायरा सीमित रहा।


क्या आगे बढ़ेगा मामला?

फाइल बंद हो चुकी है, लेकिन अंतिम रास्ता अभी बचा है—
परिवार चाहे तो कोर्ट में प्रोटेस्ट पिटीशन दायर कर सकता है।
ऐसे में न्यायिक आदेश के बाद केस दोबारा खुल सकता है और जांच नए सिरे से हो सकती है।

हालांकि अब तक परिवार ने इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।


नतीजा: बड़े नाम, बड़ा मामला — लेकिन अंत बेहद साधारण

देहरादून के सबसे चर्चित बिल्डर सुसाइड केस का पटाक्षेप एक फाइनल रिपोर्ट के साथ हो गया।
न साजिश,
न दबाव,
न वित्तीय बदइंतजामी का कोई प्रमाण।

18 महीने की जांच के बाद निष्कर्ष वही जो कई हाई-प्रोफाइल मामलों में पहले भी निकलता रहा है —
“साक्ष्य नहीं मिले।”

लेकिन शहर के रियल एस्टेट सेक्टर से लेकर आम नागरिकों तक, एक सवाल अब भी गूंज रहा है—
क्या सचमुच साक्ष्य नहीं थे, या उन्हें ढूंढने की इच्छाशक्ति नहीं थी?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button