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साहित्य के एक युग का अंत: ज्ञानपीठ से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, रायपुर एम्स में ली अंतिम सांस

रायपुर/नई दिल्ली | 23 दिसम्बर 2025: हिंदी साहित्य के सबसे मौलिक और जादुई रचनाकार, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार शाम 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में उन्होंने शाम 4:48 बजे अंतिम सांस ली। वे पिछले काफी समय से गंभीर श्वसन रोग (Respiratory Illness) से जूझ रहे थे।

उनके निधन की खबर फैलते ही साहित्यिक गलियारों और कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके पुत्र शाश्वत शुक्ल ने जानकारी दी कि सांस लेने में तकलीफ के चलते उन्हें 2 दिसंबर को एम्स के क्रिटिकल केयर यूनिट में भर्ती कराया गया था।

विनोद कुमार शुक्ल: सादगी और संवेदना के चितेरे

1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के उन गिने-चुने लेखकों में से थे, जिन्होंने भाषा को नए मुहावरे दिए। उनकी पहली कविता ‘लगभग जयहिंद’ (1971) ने ही साहित्य जगत का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था। वे अपनी सरल, लगभग बोलचाल की भाषा के माध्यम से जीवन की सबसे गहरी और जटिल संवेदनाओं को उकेरने के लिए जाने जाते थे।

कालजयी कृतियां और सिनेमाई सफर

विनोद कुमार शुक्ल ने उपन्यास, कविता और कहानी विधाओं में समान अधिकार से लेखन किया। उनकी कुछ प्रमुख कृतियां जो मील का पत्थर मानी जाती हैं:

  • ‘नौकर की कमीज’: इस उपन्यास ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। प्रसिद्ध फिल्मकार मणि कौल ने 1999 में इस पर इसी नाम से एक बेहद चर्चित फिल्म बनाई थी।

  • ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’: इस उपन्यास के लिए उन्हें 1999 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।

  • ‘खिलेगा तो देखेंगे’: उनकी प्रयोगधर्मी शैली का एक बेहतरीन उदाहरण।

  • ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’: उनके प्रसिद्ध कविता संग्रहों में से एक।

59वें ज्ञानपीठ से हुए थे सम्मानित

हाल ही में 21 नवंबर को विनोद कुमार शुक्ल को उनके रायपुर स्थित निवास पर आयोजित एक विशेष समारोह में 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उनके छह दशकों से अधिक के साधनापूर्ण साहित्यिक सफर और हिंदी भाषा को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए दिया गया था।


विनोद कुमार शुक्ल का साहित्यिक परिचय (एक नज़र में)

श्रेणी विवरण
नाम विनोद कुमार शुक्ल (88 वर्ष)
प्रमुख सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी, मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर।
लेखन शैली जादुई यथार्थवाद (Magical Realism) और सरल गद्य।
प्रसिद्ध उपन्यास नौकर की कमीज, दीवार में एक खिड़की रहती थी।
निधन 23 दिसम्बर 2025, रायपुर एम्स।

साहित्यिक जगत की प्रतिक्रिया

शुक्ल जी के निधन पर साहित्यकारों ने कहा कि उन्होंने हिंदी गद्य और पद्य के बीच की दूरी को मिटा दिया था। वे एक ऐसे ‘कवि-उपन्यासकार’ थे जिन्होंने सामान्य मध्यमवर्गीय जीवन की छोटी-छोटी खुशियों और दुखों को दार्शनिक ऊंचाई दी।

मुख्यमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने उनके निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि शुक्ल जी का जाना हिंदी भाषा के एक ऐसे संरक्षक का जाना है, जिसने शब्दों को नितांत मौलिक अर्थ दिए।

अंतिम संस्कार

शाश्वत शुक्ल के अनुसार, पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए उनके रायपुर स्थित निवास स्थान पर ले जाया जाएगा। उनके अंतिम संस्कार की जानकारी शीघ्र ही साझा की जाएगी। उनके प्रशंसकों और शिष्यों की भारी भीड़ उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ रही है।

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