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ग्वालियर में सीएसपी और वकील आमने-सामने: ‘जय श्री राम’ के नारों से गूंज उठा फूलबाग, प्रशासन अलर्ट पर

बाबासाहेब की प्रतिमा को लेकर बढ़े तनाव के बीच हुआ टकराव, शहर में निषेधाज्ञा लागू, 4,000 पुलिसकर्मी तैनात

ग्वालियर: मध्यप्रदेश के ग्वालियर में सोमवार शाम एक ऐसा वाकया हुआ जिसने पूरे प्रशासनिक तंत्र और आम लोगों को चौंका दिया। फूलबाग इलाके में एक ओर शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता और बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अनिल मिश्रा थे, और दूसरी ओर पुलिस अधिकारी सीएसपी हिना खान

दोनों के बीच पहले प्रशासनिक आदेश को लेकर तीखी बहस हुई और देखते ही देखते पूरा माहौल धार्मिक नारों से गूंज उठा — “जय श्री राम, जय श्री राम…

जो मामला दरअसल धारा 163 (भारतीय न्याय संहिता) के तहत लगी निषेधाज्ञा के पालन को लेकर शुरू हुआ था, वह अचानक धार्मिक नारों की टकराहट में तब्दील हो गया। प्रशासन पहले से ही डॉ. भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा स्थापना विवाद को लेकर सतर्क था, लेकिन इस अप्रत्याशित भिड़ंत ने हालात और तनावपूर्ण बना दिए।


सुंदरकांड पाठ रोकने से भड़के वकील, नारेबाज़ी से गर्म हुआ माहौल

सूत्रों के मुताबिक, सोमवार की शाम एडवोकेट अनिल मिश्रा अपने समर्थकों के साथ फूलबाग क्षेत्र में सुंदरकांड पाठ करने पहुंचे थे। लेकिन सीएसपी हिना खान ने मौके पर पहुंचकर उन्हें रोक दिया। उन्होंने कहा कि शहर में निषेधाज्ञा लागू है और किसी भी तरह की सभा, जुलूस या धार्मिक आयोजन की अनुमति नहीं है।
इस पर मिश्रा भड़क गए और उन्होंने कहा —
“आप सनातन धर्म के खिलाफ हैं। आपने हमारे धर्म का अपमान किया है।”

यह सुनते ही उन्होंने “जय श्री राम” के नारे लगाने शुरू कर दिए।
हैरान करने वाली बात यह रही कि सीएसपी हिना खान ने भी जवाब में वही नारा दोहराया।
उन्होंने मिश्रा की ओर देखते हुए चार बार “जय श्री राम” कहा और पूछा — “और क्या?
यह दृश्य कुछ ही सेकंड में पूरे इलाके में फैल गया और भीड़ ने ज़ोरदार नारेबाज़ी शुरू कर दी।


धारा 163 लागू, प्रशासन हाई अलर्ट पर

ग्वालियर प्रशासन ने पिछले हफ्ते बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा स्थापना को लेकर बढ़ते विवाद के चलते पूरे शहर में धारा 163 लागू कर दी थी।
इस धारा के तहत किसी भी प्रकार का जुलूस, धरना या सार्वजनिक सभा प्रतिबंधित है। इसके बावजूद जब वकील अपने समर्थकों के साथ फूलबाग पहुंचे, तो पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की।

कलेक्टर रुचिका चौहान और आईजी अरविंद सक्सेना के अनुसार, शहर में करीब 4,000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।
संवेदनशील इलाकों में सीसीटीवी निगरानी, ड्रोन पेट्रोलिंग और बैरिकेडिंग की गई है।
रातभर एसएसपी धर्मवीर सिंह ने फ्लैग मार्च निकाला, ताकि कानून-व्यवस्था बनाए रखी जा सके।


पिछले वीडियो से भड़का था विवाद

इस पूरे टकराव की जड़ एक पुराने विवादित वीडियो को माना जा रहा है, जो कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
वीडियो में अधिवक्ता अनिल मिश्रा को लेकर डॉ. आंबेडकर के कथित अपमान का आरोप लगाया गया था।
इस वीडियो के बाद ग्वालियर और महाराष्ट्र में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

विवाद बढ़ने के बाद शहर में भीम आर्मी, आज़ाद समाज पार्टी और ओबीसी महासभा जैसे संगठनों ने विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था। हालांकि बाद में प्रशासन से बातचीत के बाद 15 अक्टूबर का प्रस्तावित धरना प्रदर्शन वापस ले लिया गया।
इसके बावजूद, शहर में माहौल पूरी तरह सामान्य नहीं हुआ है।


‘यह धर्म का नहीं, प्रशासन का आदेश है’ — हिना खान

सूत्रों के अनुसार, जब मिश्रा ने हिना खान पर धर्म विरोधी रवैये का आरोप लगाया, तो उन्होंने शांत स्वर में जवाब दिया —
यह धर्म का नहीं, प्रशासन का आदेश है।

लेकिन समर्थकों की भीड़ के बीच नारेबाज़ी का सिलसिला इतना तेज़ हुआ कि पुलिस को अतिरिक्त बल बुलाना पड़ा।
हालांकि किसी तरह की हिंसा या तोड़फोड़ की घटना नहीं हुई, लेकिन टकराव का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद यह मामला राज्य स्तर तक चर्चा में आ गया है।


सोशल मीडिया पर निगरानी, 260 पोस्ट हटाई गईं

ग्वालियर प्रशासन ने बताया कि शहर में फैल रही भड़काऊ पोस्टों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है।
अब तक 260 से अधिक पोस्ट हटाई जा चुकी हैं, जबकि 700 अतिरिक्त पुलिसकर्मी संवेदनशील इलाकों में तैनात किए गए हैं।

कलेक्टर रुचिका चौहान ने कहा —
“हमारी प्राथमिकता शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखना है। प्रशासन किसी भी समुदाय के खिलाफ नहीं है। सभी से शांति बनाए रखने की अपील की गई है।”


ग्वालियर की सियासत में नई बहस – ‘नारे की राजनीति या अनुशासन का सवाल?’

घटना के बाद सोशल मीडिया और स्थानीय सियासत में यह बहस तेज़ हो गई है कि एक पुलिस अधिकारी द्वारा धार्मिक नारा लगाने को “धार्मिक सहिष्णुता” के तौर पर देखा जाए या “प्रशासनिक अनुशासन भंग” के रूप में।
कुछ लोग इसे “सीएसपी की साहसिक प्रतिक्रिया” कह रहे हैं, जबकि कई लोगों का मानना है कि यह विवेकहीन क्षण था जिसने स्थिति को और बिगाड़ दिया।

ग्वालियर के वरिष्ठ समाजशास्त्री डॉ. ए.के. चौधरी ने कहा —
“यह घटना दिखाती है कि धर्म और प्रशासन के बीच की रेखा कितनी पतली होती जा रही है। पुलिसकर्मी और वकील दोनों ही जनता के प्रतिनिधि हैं, लेकिन कानून का पालन सबसे ऊपर होना चाहिए।”


फिलहाल स्थिति नियंत्रण में, लेकिन तनाव बरकरार

मंगलवार तक शहर में स्थिति नियंत्रण में बताई जा रही है।
फूलबाग, लश्कर और हजीरा इलाकों में पुलिस की गश्त लगातार जारी है। प्रशासन ने नागरिकों से अफवाहों पर ध्यान न देने और सोशल मीडिया पर संयम बरतने की अपील की है।

हालांकि स्थानीय स्तर पर लोग अब भी इस घटना पर दो राय हैं —क्या यह कानून व्यवस्था की सख्ती का मामला था या प्रशासनिक संवादहीनता का परिणाम?

एक बात तय है — ग्वालियर इस वक्त मध्यप्रदेश के सबसे संवेदनशील शहरों में से एक बना हुआ है,
जहाँ एक नारा, एक वीडियो, या एक विवाद भी शहर की शांति को हिला सकता है।

ग्वालियर की यह घटना सिर्फ एक स्थानीय विवाद नहीं, बल्कि उस सामाजिक और प्रशासनिक द्वंद्व की झलक है, जो आज के भारत में अक्सर सामने आता है —जहाँ धर्म, राजनीति और कानून की सीमाएँ बार-बार एक-दूसरे से टकरा रही हैं।

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