
वॉशिंगटन/नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा H-1B वीज़ा पर भारी शुल्क लगाने की चौंकाने वाली घोषणा के बाद तकनीकी कंपनियों और लाखों भारतीय आईटी पेशेवरों में हड़कंप मच गया है। ट्रंप प्रशासन ने शुक्रवार को एक आदेश जारी कर अमेरिकी कंपनियों पर प्रत्येक H-1B वीज़ा कर्मचारी पर $100,000 (लगभग 83 लाख रुपये) वार्षिक शुल्क लगाने का ऐलान किया।
हालांकि, इस बीच एक वरिष्ठ अमेरिकी प्रशासनिक अधिकारी ने साफ किया है कि वर्तमान वीज़ा धारकों को घबराने की ज़रूरत नहीं है। अधिकारी ने कहा कि $100,000 का शुल्क केवल नए H-1B धारकों पर लागू होगा, पहले से अमेरिका में काम कर रहे पेशेवरों पर नहीं।
“जल्दबाज़ी में लौटने की ज़रूरत नहीं”
अमेरिकी अधिकारी ने ANI से बातचीत में कहा,
“एच1बी वीज़ा पर भारतीयों को रविवार तक अमेरिका लौटने या प्रवेश के लिए $100,000 का भुगतान करने की ज़रूरत नहीं है। यह नियम केवल नए आवेदकों पर लागू होगा।”
यह बयान उन हजारों भारतीय टेक प्रोफेशनल्स के लिए राहत भरा है, जिन्हें माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, मेटा और जेपी मॉर्गन जैसी दिग्गज कंपनियों ने मेल जारी कर अमेरिका लौटने के लिए कहा था। कंपनियों ने चेतावनी दी थी कि ट्रंप के आदेश के बाद यदि कर्मचारी समयसीमा (21 सितंबर, सुबह 12:01 बजे EST) से पहले नहीं लौटते, तो उन्हें अतिरिक्त दिक्कतें झेलनी पड़ सकती हैं।
कंपनियों की चिंता क्यों बढ़ी?
- माइक्रोसॉफ्ट ने एक इंटरनल मेल में कर्मचारियों से कहा था कि वे समय सीमा से पहले अमेरिका लौट आएं।
- अमेज़न, मेटा और जेपी मॉर्गन ने भी इसी तरह का निर्देश दिया।
- आईटी सेक्टर में सबसे अधिक विदेशी वीज़ा धारक भारतीय हैं, इसलिए भारत के हजारों परिवारों पर इस कदम का सीधा असर पड़ सकता है।
दरअसल, कंपनियों को डर था कि नई नीति लागू होने के बाद न केवल नए कर्मचारियों की भर्ती महंगी होगी, बल्कि मौजूदा कर्मचारियों पर भी असर पड़ सकता है।
ट्रंप प्रशासन ने क्यों उठाया यह कदम?
ट्रंप प्रशासन ने एक बयान में कहा कि H-1B वीज़ा कार्यक्रम का दुरुपयोग हुआ है।
- इसका उद्देश्य मूल रूप से “अतिरिक्त, उच्च-कुशल कार्यों” के लिए अस्थायी श्रमिकों को लाना था।
- लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति का आरोप है कि कंपनियां इसका इस्तेमाल अमेरिकी श्रमिकों की जगह कम वेतन वाले विदेशी श्रमिकों को रखने के लिए कर रही हैं।
- ट्रंप ने “कुछ गैर-आप्रवासी श्रमिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध” नामक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए इसे “अमेरिकी नौकरियों की रक्षा” का कदम बताया।
भारतीयों पर सबसे ज्यादा असर
आंकड़ों के मुताबिक,
- H-1B वीज़ा धारकों में 71% भारतीय हैं।
- चीन के नागरिक 11-12% के साथ दूसरे स्थान पर आते हैं।
- बाकी हिस्सेदारी अन्य देशों की है।
अब जब प्रत्येक वीज़ा पर $100,000 का शुल्क लगाया गया है, तो इसका सबसे अधिक बोझ भारतीय कर्मचारियों और भारतीय मूल की आईटी कंपनियों पर पड़ेगा।
पहले जहां आवेदन शुल्क $215 और कंपनी के आकार व नौकरी की श्रेणी के आधार पर अधिकतम $5,000 तक होता था, अब अचानक यह राशि कई गुना बढ़ गई है। इससे अमेरिका में भारतीय कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो सकता है।
भारत के लिए क्या मायने?
- आईटी सेक्टर पर झटका:
भारत का आईटी निर्यात बड़ा हिस्सा अमेरिकी बाजार पर आधारित है। इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो और टेक महिंद्रा जैसी कंपनियां बड़ी संख्या में H-1B वीज़ा पर इंजीनियरों को भेजती हैं। शुल्क बढ़ने से उनकी लागत में तेज इज़ाफा होगा। - ब्रेन ड्रेन की चुनौती:
भारतीय युवा लंबे समय से अमेरिकी वीज़ा को करियर का सुनहरा अवसर मानते हैं। अब यह सपना महंगा और मुश्किल होता जा रहा है। - भारत-जापान-यूरोप की ओर झुकाव:
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी नीति सख्त होने से भारत के आईटी प्रोफेशनल्स जापान, यूरोप और मिडिल ईस्ट जैसे विकल्पों की ओर रुख कर सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय
- आईटी विश्लेषक रमन चौधरी का कहना है कि यह फैसला अमेरिकी कंपनियों के लिए भी नुकसानदेह होगा। “कई स्टार्टअप्स और टेक कंपनियां विदेशी इंजीनियरों पर निर्भर हैं। इतना अधिक शुल्क वे वहन नहीं कर पाएंगी।”
- आर्थिक विशेषज्ञ डॉ. अनीता सिंह का मानना है कि ट्रंप प्रशासन का यह कदम चुनावी राजनीति से प्रेरित है। “यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि अमेरिकी नौकरियां केवल अमेरिकियों के लिए हैं।”
आगे की राह
ट्रंप के इस आदेश के खिलाफ अमेरिकी कंपनियों और भारतीय संगठनों से विरोध की आवाज़ें उठ रही हैं। कई लॉबी ग्रुप्स ने व्हाइट हाउस को पत्र लिखकर कहा है कि यह नीति अमेरिका की तकनीकी बढ़त को नुकसान पहुंचाएगी।
भारत सरकार भी हालात पर नज़र बनाए हुए है। सूत्रों के मुताबिक, भारतीय दूतावास ने अमेरिकी अधिकारियों से इस फैसले के असर को लेकर स्पष्टीकरण मांगा है।
ट्रंप प्रशासन का $100,000 H-1B शुल्क वाला फैसला भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए एक बड़ा झटका है। हालांकि, वर्तमान वीज़ा धारकों को तुरंत घबराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि यह नियम फिलहाल नए वीज़ा आवेदकों पर लागू होगा।
फिर भी, यह कदम भारतीय आईटी सेक्टर की लागत और अमेरिकी बाजार पर उसकी निर्भरता को चुनौती देने वाला साबित हो सकता है। अब देखना यह होगा कि भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक बातचीत इस मसले को किस दिशा में ले जाती है।