लखनऊ में अब बिल्ली पालने वालों को बनाना होगा लाइसेंस, नगर निगम ने बनाए नए नियम बिना लाइसेंस पर होगा जुर्माना
नगर निगम ने कहा– रेबीज़ रोकथाम और पालतू जानवरों की निगरानी के लिए ज़रूरी, जल्द शुरू होगा ऑनलाइन सिस्टम

लखनऊ। शहर में अब बिल्ली पालना पहले जैसा आसान नहीं होगा। लखनऊ नगर निगम ने पालतू बिल्लियों के लिए भी उसी तरह के नियम लागू कर दिए हैं, जैसे पहले से कुत्तों पर लागू हैं। नए नियमों के अनुसार, बिल्ली पालने वालों को अब लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा और इसके लिए हर साल 500 रुपये फीस चुकानी होगी। इतना ही नहीं, बिना लाइसेंस के बिल्ली पालने वालों पर नगर निगम 1,000 रुपये जुर्माना भी ठोकेगा।
यह प्रस्ताव नगर आयुक्त गौरव कुमार की ओर से नगर निगम की कार्यकारिणी में रखा गया था, जिसे सर्वसम्मति से मंज़ूरी दे दी गई। इसके साथ ही लखनऊ अब देश के उन चुनिंदा शहरों में शामिल हो गया है जहां बिल्लियों के लिए भी लाइसेंसिंग सिस्टम लागू होगा।
क्यों लिया गया यह फैसला?
नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि यह कदम केवल राजस्व बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि स्वास्थ्य सुरक्षा और जनहित को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। प्रस्ताव में यह तर्क दिया गया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2030 तक रेबीज़ को खत्म करने का लक्ष्य तय किया है। आमतौर पर लोगों को लगता है कि केवल कुत्तों से ही रेबीज़ फैलता है, लेकिन बिल्लियों के काटने या खरोंचने से भी संक्रमण का खतरा होता है।
नगर निगम का कहना है कि लाइसेंसिंग सिस्टम से यह पता चलेगा कि शहर में कितनी बिल्लियाँ हैं और क्या उन्हें समय पर एंटी-रेबीज़ टीके लगाए गए हैं या नहीं। इस तरह यह न सिर्फ बीमारी रोकने में मदद करेगा बल्कि नगर निगम के पास पालतू पशुओं का सटीक रिकॉर्ड भी रहेगा।
पहले कुत्तों पर लागू था नियम
लखनऊ में 2003 से ही कुत्ते पालने के लिए लाइसेंस अनिवार्य है। शहर में हज़ारों कुत्ते पाले जाते हैं और उनके लाइसेंस से नगर निगम को हर साल आय होती है। अब नगर निगम ने तर्क दिया है कि जब बिल्लियाँ भी बड़े पैमाने पर घरों में पाली जा रही हैं तो उनके लिए भी नियम लागू करना तार्किक है।
कैसे बनेगा लाइसेंस?
फिलहाल, बिल्ली पालने वालों को लाइसेंस के लिए नगर निगम के दफ्तर जाना होगा। आवेदन के साथ बिल्ली के टीकाकरण और स्वास्थ्य से जुड़ी रिपोर्ट जमा करनी होगी। हालांकि अधिकारियों ने कहा है कि जल्द ही ऑनलाइन सिस्टम शुरू होगा जिससे लोग घर बैठे ही आवेदन कर सकेंगे।
ऑनलाइन सुविधा शुरू होने के बाद पालतू पशु पालकों को लाइसेंस के लिए बार-बार दफ्तर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।
पालतू पशु प्रेमियों की प्रतिक्रिया
नगर निगम के इस फैसले पर शहर के पालतू पशु पालक दो हिस्सों में बंटे नज़र आ रहे हैं।
- सपोर्ट में लोग कहते हैं कि यह अच्छा कदम है क्योंकि इससे बिल्लियों के स्वास्थ्य पर नज़र रखी जा सकेगी और लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।
- वहीं, विरोध करने वाले नागरिकों का कहना है कि यह जनता पर “अनावश्यक टैक्स” है। उनका तर्क है कि बिल्ली आम तौर पर शांत स्वभाव की होती है और उतना खतरा नहीं पैदा करती जितना कुत्ते। ऐसे में हर साल 500 रुपये फीस और ऊपर से जुर्माने की धमकी देना अनुचित है।
गोमतीनगर निवासी नेहा वर्मा, जो दो पर्शियन बिल्लियाँ पालती हैं, कहती हैं –
“हम पहले ही उनके खान-पान, टीकाकरण और देखभाल पर काफी खर्च करते हैं। अब हर साल लाइसेंस फीस भी देनी होगी। यह बोझ बढ़ाने जैसा है।”
वहीं, हजरतगंज के रहने वाले संदीप श्रीवास्तव कहते हैं –
“यह सही है कि बिल्लियों से भी रेबीज़ हो सकता है। अगर लाइसेंसिंग से नगर निगम को डेटा मिलेगा और टीकाकरण की निगरानी होगी तो इसमें नुकसान नहीं है।”
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
पशु चिकित्सकों का मानना है कि नगर निगम का फैसला वैज्ञानिक आधार पर सही है।
डॉ. रश्मि चौधरी, पशु चिकित्सक, कहती हैं –
“भारत में रेबीज़ को लेकर जागरूकता अभी भी कम है। आमतौर पर लोग सिर्फ कुत्ते से होने वाले संक्रमण को ही जानते हैं, जबकि बिल्लियों से भी यह बीमारी फैल सकती है। अगर नगर निगम लाइसेंसिंग के साथ-साथ टीकाकरण और पशु स्वास्थ्य पर नियंत्रण रखेगा तो यह पब्लिक हेल्थ के लिए लाभकारी होगा।”
नगर निगम की आय में बढ़ोतरी
नगर निगम को उम्मीद है कि इस कदम से न सिर्फ पशु स्वास्थ्य निगरानी मजबूत होगी बल्कि नगर निगम की आय में भी इज़ाफ़ा होगा। अनुमान है कि लखनऊ में हजारों घरों में बिल्लियाँ पाली जाती हैं। यदि इन सबके लाइसेंस बनते हैं तो निगम को हर साल लाखों रुपये की अतिरिक्त आय होगी, जिसे फिर से जनता की सेवाओं पर खर्च किया जा सकेगा।
लखनऊ नगर निगम का यह नया नियम पालतू पशु पालकों के लिए एक नई चुनौती बनकर आया है। जहां एक ओर यह कदम रेबीज़ रोकथाम और स्वास्थ्य सुरक्षा की दिशा में अहम माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर नागरिक इसे अनावश्यक बोझ के रूप में देख रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि नगर निगम इस व्यवस्था को कितनी पारदर्शिता और सहजता से लागू करता है और क्या वाकई इससे पालतू पशुओं की निगरानी और शहर की सार्वजनिक सुरक्षा में सुधार होता है।