देशफीचर्ड

जातीय जनगणना: बदलेगा सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य, इन 5 बड़े बदलावों पर रहेगी नज़र

खबर को सुने

नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बहुप्रतीक्षित जातीय जनगणना को हरी झंडी दे दी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को इस महत्वपूर्ण निर्णय की घोषणा करते हुए बताया कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जातियों की गणना भी की जाएगी। यह फैसला लंबे समय से देश भर में विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक समूहों की मांग पर लिया गया है। माना जा रहा है कि जातीय जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद भारतीय समाज और राजनीति में कई बड़े परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं। इनमें सबसे अहम बदलाव आरक्षण की वर्तमान 50% सीमा का संभावित विस्तार हो सकता है, जिस पर वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट का कैप लगा हुआ है।

1. जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की मांग:

जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद, सबसे अधिक दबाव आरक्षण की सीमा पर देखने को मिलेगा। यह माना जाता है कि देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सबसे बड़ा जातीय समूह है। 1931 की जनगणना में पिछड़ी जातियों की आबादी 52% से अधिक बताई गई थी, और मंडल आयोग ने भी इसी आंकड़े को आधार बनाकर ओबीसी आरक्षण की सिफारिश की थी। बिहार के हालिया जातीय सर्वेक्षण में ओबीसी की आबादी (अति पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग मिलाकर) 63.13% पाई गई है। वीपी सिंह सरकार द्वारा ओबीसी को 27% आरक्षण दिए जाने के बाद से ही इस समुदाय के साथ अन्याय की बात उठती रही है, क्योंकि एससी-एसटी को आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में दिया जाता है, जबकि ओबीसी के मामले में ऐसा नहीं है। यहां तक कि गरीब सवर्णों को आरक्षण देते समय भी सरकार ने उनकी जनसंख्या का कोई ठोस आंकड़ा पेश नहीं किया था। अब जातीय जनगणना से प्रत्येक जाति की वास्तविक जनसंख्या का पता चलेगा, जिससे ओबीसी समुदाय अपनी जनसंख्या के अनुपात में अधिक आरक्षण की मांग कर सकता है।

2. आरक्षण की सीमा पर पुनर्विचार:

सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 1992 के इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% निर्धारित की थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि इससे अधिक आरक्षण संविधान की मूल भावना के विपरीत होगा। यह फैसला आरक्षण नीति का एक मील का पत्थर है। हालांकि, जातीय जनगणना के आंकड़े आने के बाद, ओबीसी समुदाय अपनी जनसंख्या के अनुपात में अधिक आरक्षण की पुरजोर मांग करेगा। इसके चलते सरकार को आरक्षण की इस सीमा को समाप्त करने या उसमें महत्वपूर्ण बदलाव करने के लिए विवश होना पड़ सकता है, जिससे ओबीसी जातियों को उनकी जनसंख्या के अनुसार आरक्षण देने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

3. संसद और विधानसभाओं का बदलता स्वरूप:

जाति जनगणना के परिणाम संसद और राज्य विधानसभाओं की राजनीतिक तस्वीर को भी बदल सकते हैं। जिन जातियों की जनसंख्या अधिक होगी, वे राजनीतिक रूप से अधिक संगठित हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक दल चुनावों में उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व दे सकते हैं। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद ओबीसी जातियों का राजनीतिक एकीकरण स्पष्ट रूप से दिखाई दिया था। इसी दौर में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, सुभासपा और अपना दल जैसे सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों का उदय हुआ, जिसका प्रभाव यह हुआ कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस का जनाधार खिसक गया। अपने खोए हुए वोट बैंक को वापस पाने की कोशिश में ही कांग्रेस जातीय जनगणना और संविधान पर खतरे जैसे मुद्दों को उठा रही है, और इसी रणनीति के तहत कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस सरकारों ने जातीय सर्वेक्षण कराए हैं।

4. शिक्षा और सरकारी नौकरियों में बदलाव:

आरक्षण की 50% सीमा हटने या बढ़ने के बाद इसका सीधा असर शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों पर दिखाई देगा। यदि आरक्षण की सीमा में वृद्धि होती है, तो स्कूलों और कॉलेजों में पिछड़ी जातियों के छात्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। इसी प्रकार, सरकारी नौकरियों में भी आरक्षण नियमों में बदलाव के कारण उन जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है, जिनकी संख्या वर्तमान में कम है। इससे सरकारी नौकरियों में सामाजिक संतुलन में परिवर्तन आने की संभावना है।

5. सामाजिक ध्रुवीकरण की चुनौती:

जातीय जनगणना के संभावित लाभों के साथ-साथ कुछ चुनौतियां भी हैं। इसका एक महत्वपूर्ण पहलू सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण का खतरा है। जातीय जनगणना के आंकड़े समाज में नए विभाजन पैदा कर सकते हैं और मौजूदा जातिगत विभाजन को और गहरा कर सकते हैं। इतिहास गवाह है कि 1990 में ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने के दौरान देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिनमें हिंसा और आत्मदाह के प्रयास भी शामिल थे। राजनीतिक दल इस विभाजन का इस्तेमाल अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए भी कर सकते हैं, जिससे सामाजिक सद्भाव और एकता के लिए चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button