
ढाका/नई दिल्ली | 10 जुलाई 2025: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की कानूनी मुश्किलें गंभीर रूप लेती जा रही हैं। गुरुवार को बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने शेख हसीना और दो अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोप तय कर दिए हैं। ये आरोप 2024 में छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध-प्रदर्शनों को दबाने के दौरान हुई कथित हत्याओं और हिंसा से जुड़े हैं।
कौन-कौन आरोपी और क्या हैं आरोप?
ट्रिब्यूनल ने हसीना के अलावा पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान और पूर्व पुलिस महानिदेशक अब्दुल्ला अल मामून पर भी आरोप तय किए हैं।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, आईजीपी अब्दुल्ला अल मामून ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और वह सरकारी गवाह बनने को तैयार हैं। फिलहाल मामून ही जेल में हैं, जबकि शेख हसीना और असदुज्जमां खान की गैरहाजिरी में मुकदमा चलाया जाएगा।
भारत में हैं शेख हसीना, प्रत्यर्पण की मांग दोहराई
शेख हसीना 5 अगस्त 2024 को भारत आ गई थीं, जब अवामी लीग सरकार का पतन हुआ था। इसके बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत को औपचारिक पत्र भेजकर प्रत्यर्पण की मांग की थी। भारत ने पत्र प्राप्त होने की पुष्टि की थी, लेकिन अभी तक कोई निर्णय या सार्वजनिक बयान नहीं आया है।
मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की सरकार ने भारत से अपील की है कि वह इस मामले में “विवेक और नैतिकता” का पालन करे। उनकी प्रेस टीम ने सोशल मीडिया पर लिखा:
“भारत लंबे समय से हसीना के प्रत्यर्पण के हमारे वैध अनुरोध को अनदेखा करता रहा है। अब यह वक्त है कि लोकतंत्र, जवाबदेही और न्याय के मूल्यों को प्राथमिकता दी जाए।”
लीक ऑडियो से और गहरा हुआ विवाद
हसीना पर लगे आरोपों को और अधिक सनसनीखेज तब बना दिया जब बीबीसी की एक रिपोर्ट में एक कथित लीक ऑडियो क्लिप का हवाला देते हुए दावा किया गया कि हसीना ने जुलाई 2024 में प्रदर्शनकारियों पर “घातक बल के इस्तेमाल” का आदेश दिया था।
इस रिपोर्ट पर बांग्लादेश की अवामी लीग पार्टी ने कड़ा विरोध जताते हुए इसे “झूठा, तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत” और दुर्भावनापूर्ण” करार दिया। पार्टी ने कहा:
“एक तथाकथित 18-सेकंड की ऑडियो क्लिप के आधार पर एक राष्ट्रीय नेता की छवि धूमिल करना बेहद निंदनीय है।”
राजनीतिक और कूटनीतिक असर
यह मामला अब न केवल बांग्लादेश की राजनीति को हिला रहा है, बल्कि भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी इसका गहरा असर पड़ सकता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर भारत प्रत्यर्पण पर सख्त रुख अपनाता है, तो यह लोकतंत्र और मानवाधिकारों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मज़बूत करेगा, लेकिन राजनीतिक-सामरिक समीकरणों में बदलाव भी ला सकता है।
शेख हसीना के खिलाफ औपचारिक अभियोजन और भारत में उनके ठहराव ने इस पूरे घटनाक्रम को राजनीतिक, न्यायिक और कूटनीतिक त्रिकोण में बदल दिया है। अब सबकी नजर भारत के अगले कदम पर टिकी है—क्या वह बांग्लादेश की अपील मानेगा या फिर चुप्पी साधे रखेगा?