
मुंबई। बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) चुनाव को लेकर कांग्रेस ने बड़ा राजनीतिक फैसला लेते हुए साफ कर दिया है कि पार्टी इस बार अकेले चुनाव मैदान में उतरेगी। महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी रमेश चेन्निथला ने यह घोषणा करते हुए कहा कि स्थानीय निकाय के चुनाव जमीनी स्तर से जुड़े होते हैं और कांग्रेस जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर पूरी मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगी।
कांग्रेस के इस ऐलान के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या महाराष्ट्र की राजनीति में महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन में दरार आ गई है। हालांकि पार्टी नेतृत्व का कहना है कि यह फैसला केवल स्थानीय निकाय चुनावों तक सीमित है।
लोकसभा-विधानसभा साथ लड़े, BMC अकेले
रमेश चेन्निथला ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव महाविकास अघाड़ी के साथ मिलकर लड़े थे, लेकिन बीएमसी जैसे स्थानीय निकाय चुनावों की प्रकृति अलग होती है।
उन्होंने कहा,
“स्थानीय चुनावों में जनता से जुड़े बुनियादी मुद्दे सबसे अहम होते हैं। ऐसे में कांग्रेस ने फैसला किया है कि बीएमसी चुनाव वह अपने दम पर लड़ेगी।”
पार्टी सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस का मानना है कि महानगरपालिका चुनावों में स्थानीय नेतृत्व, वार्ड स्तर की पकड़ और नागरिक समस्याओं पर सीधा फोकस ज्यादा प्रभावी रणनीति साबित हो सकता है।
महाविकास अघाड़ी का भविष्य?
कांग्रेस के इस फैसले के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या महाविकास अघाड़ी गठबंधन की एकता पर असर पड़ेगा। हालांकि कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह निर्णय स्थानीय परिस्थितियों और संगठनात्मक रणनीति को ध्यान में रखते हुए लिया गया है और इसका असर राज्य या राष्ट्रीय स्तर के गठबंधनों पर नहीं पड़ेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीएमसी चुनाव महाराष्ट्र की राजनीति के लिहाज से बेहद अहम हैं। ऐसे में कांग्रेस का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला न केवल पार्टी की संगठनात्मक ताकत की परीक्षा होगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि मुंबई की सियासत में उसका जनाधार कितना मजबूत है।
निष्कर्ष
बीएमसी चुनाव से पहले कांग्रेस का यह ऐलान मुंबई की राजनीति में नई सियासी हलचल पैदा कर सकता है। स्थानीय मुद्दों, भ्रष्टाचार के आरोपों और प्रशासनिक विफलताओं को चुनावी हथियार बनाकर कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह इस चुनाव को केवल राजनीतिक मुकाबला नहीं, बल्कि मुंबई के भविष्य की लड़ाई के रूप में देख रही है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस रणनीति का मतदाताओं पर क्या असर पड़ता है और बीएमसी चुनाव में सियासी समीकरण किस दिशा में जाते हैं।



