
नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या एक बार फिर सुर्खियों में है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (Commission for Air Quality Management — CAQM) ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह अपने 12 अगस्त 2023 के आदेश की समीक्षा करे—इस आदेश में 10 वर्ष पुराने डीजल वाहन और 15 वर्ष पुराने पेट्रोल वाहनों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई रोकने का निर्देश दिया गया था।
सीएक्यूएम का कहना है कि यह आदेश दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों को प्रभावित कर रहा है, क्योंकि पुराने वाहन वायु गुणवत्ता को बिगाड़ने वाले अहम कारकों में से एक हैं।
पुराने वाहनों पर रोक क्यों ज़रूरी? आयोग ने बताई वैज्ञानिक वजहें
सीएक्यूएम ने अदालत में बताया कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण में वाहनों की भूमिका सबसे प्रमुख स्रोतों में गिनी जाती है। आयोग के अनुसार:
- 10 साल से अधिक पुराने डीजल वाहन
- 15 साल से अधिक पुराने पेट्रोल वाहन
प्रदूषण फैलाने में नए वाहनों की तुलना में कई गुना अधिक हानिकारक साबित होते हैं।
इन वाहनों से निकलने वाला पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5, PM10), नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड वायु गुणवत्ता को तेजी से गिराते हैं।
सीएक्यूएम के विशेषज्ञों का तर्क है कि पुराने इंजनों की दक्षता घटती है, उनमें उत्सर्जन-नियंत्रण तकनीकें आधुनिक वाहनों जितनी प्रभावी नहीं होतीं, और इनकी सर्विसिंग भी अक्सर उपेक्षित रहती है। ऐसे में बड़ी संख्या में पुराने वाहन राजधानी की हवा को जहरीला बनाने में अपनी बड़ी हिस्सेदारी दे रहे हैं।
12 अगस्त का आदेश: NCR के लिए क्यों बना चुनौती?
सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को आदेश दिया था कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में पुराने पेट्रोल-डीजल वाहनों को तुरंत ज़ब्त न किया जाए और न ही वाहन मालिकों पर किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
अदालत का उद्देश्य था कि लोगों को राहत मिले और जब तक पूरी तरह कानूनी स्थिति स्पष्ट न हो, तब तक अत्यधिक कठोर कदम न उठाए जाएं।
लेकिन सीएक्यूएम का कहना है कि यह आदेश:
- प्रदूषण नियंत्रण नीतियों को कमज़ोर कर रहा है
- दिल्ली-एनसीआर के लिए तैयार की गई वैज्ञानिक रणनीति को बाधित करता है
- केंद्र और राज्य की कई योजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है
- पुराने वाहनों को सड़क पर बने रहने का अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन देता है
आयोग ने दलील दी कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसके जनस्वास्थ्य से सीधे संबंध हैं, इसलिए पुराने वाहनों पर सख्ती जरूरी है।
दिल्ली की हवा: सर्दियों में बदतर, वाहन उत्सर्जन प्रमुख कारक
दिल्ली की वायु गुणवत्ता हर साल सर्दियों में बेहद खराब हो जाती है।
यह एक बहु-स्तरीय समस्या है, जिसमें शामिल हैं:
- पराली जलाना
- उद्योगों का उत्सर्जन
- निर्माण कार्य
- धूल
- और सबसे बड़ा—वाहन प्रदूषण (Traffic Emissions)
सरकारी आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में लगभग 1.2 करोड़ से अधिक पंजीकृत वाहन हैं।
सर्दियों में हवा की गति कम होने के कारण उत्सर्जन ज़मीन पर जमने लगता है, जिससे AQI लगातार ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ स्तर तक पहुँच जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि राजधानी में प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए पुराने वाहनों को चरणबद्ध हटाना अनिवार्य है।
यूरोप, अमेरिका और जापान जैसे देशों में 8 से 12 साल पुराने वाहनों को क्रमशः सड़कों से हटाने की नीति लागू है, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार देखने को मिला है।
वाहन मालिकों की चिंता: रोज़गार और आमदनी का सवाल
सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने पुराने वाहन मालिकों—खासकर टैक्सी, कमर्शियल वाहन, ऑटो ड्राइवर और छोटे ट्रांसपोर्टरों—को अस्थायी राहत दी थी।
इन्हें लंबे समय से शिकायत है कि पुराने वाहन हटाने की कवायद में:
- सरकार की स्क्रैपेज नीति स्पष्ट नहीं
- पुराने वाहन के बदले सब्सिडी या प्रतिपूर्ति कम
- नई गाड़ियों की कीमतें अधिक
- और लो-इनकम ड्राइवरों के लिए यह भारी आर्थिक बोझ है
कई संगठनों ने तर्क दिया है कि प्रदूषण कम करना ज़रूरी है, लेकिन इसके लिए आर्थिक रूप से कमजोर वाहन मालिकों को विकल्प और सहायता देना उतना ही महत्वपूर्ण है।
अब आयोग की समीक्षा याचिका के बाद यह बहस फिर तेज हो गई है कि पर्यावरण और आजीविका के बीच संतुलन कैसे कायम किया जाए।
आगे क्या? अदालत के फैसले पर टिकी निगाहें
सीएक्यूएम की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई कर सकता है।
यदि अदालत अगस्त के आदेश में संशोधन करती है, तो दिल्ली-एनसीआर में पुराने वाहनों पर:
- सख्त प्रवर्तन
- चालान/ज़ब्ती कार्रवाई
- स्वैच्छिक स्क्रैपेज
- फिटनेस टेस्ट को अनिवार्य
- इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा
जैसी नीतियों को फिर से लागू किया जा सकता है।
दूसरी ओर, यदि अदालत पुराने आदेश को ही बरकरार रखती है, तो सरकार और आयोग को प्रदूषण कम करने के लिए वैकल्पिक उपाय तैयार करने पड़ सकते हैं।
निष्कर्ष
पुराने वाहनों पर प्रतिबंध और दिल्ली के प्रदूषण के बीच की यह बहस नई नहीं है, लेकिन इस बार हवा पहले से ज्यादा प्रदूषित है और स्वास्थ्य जोखिम पहले से अधिक गहरा।
एक तरफ पर्यावरण बचाने की तात्कालिक ज़रूरत है, तो दूसरी तरफ लाखों वाहन मालिकों की आजीविका जुड़ी है।
अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर हैं कि वह वैज्ञानिक तर्कों और सामाजिक वास्तविकताओं के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करता है।



