
देहरादून: उत्तराखंड में संविदा, आउटसोर्स और तदर्थ नियुक्तियों पर लगाई गई रोक के बाद कर्मचारियों में व्याप्त भ्रम की स्थिति पर मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने स्पष्टीकरण दिया है। उनके पूर्व के आदेश से शासन से लेकर विभिन्न विभागों में कार्यरत ऐसे कर्मचारी भी चिंतित थे जो इन्हीं सेवा शर्तों पर काम कर रहे हैं। अब मुख्य सचिव ने स्वयं आगे आकर इस आदेश पर स्थिति साफ की है।
मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने कहा कि उनके द्वारा जारी किया गया आदेश नए और वर्तमान में रिक्त पदों पर होने वाली नियुक्तियों के संबंध में है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस आदेश का प्रभाव विभागों में पहले से कार्यरत कर्मचारियों पर नहीं पड़ेगा।
क्या था मामला?
दरअसल, मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने हाल ही में एक आदेश जारी कर सभी प्रमुख सचिवों, सचिवों और विभागाध्यक्षों को निर्देशित किया था कि प्रदेश में संविदा, आउटसोर्स या तदर्थ आधार पर कोई भी नई नियुक्ति नहीं की जाएगी और ऐसी नियुक्तियों पर पूर्ण रूप से रोक रहेगी। इस आदेश के जारी होते ही प्रदेश में इन सेवा शर्तों पर काम कर रहे कर्मचारियों के बीच हड़कंप मच गया था। कर्मचारियों की चिंता इस बात को लेकर थी कि कहीं इस आदेश से पहले से कार्यरत कर्मचारियों को नुकसान न हो।
पहले भी जारी हो चुके हैं ऐसे आदेश:
हालांकि, उत्तराखंड में यह पहली बार नहीं है जब आउटसोर्स, संविदा या तदर्थ के साथ ही दैनिक वेतन भोगियों के रूप में कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक लगाई गई हो। इससे पहले भी कई बार इस प्रकार के आदेश जारी हो चुके हैं। आश्चर्य की बात यह है कि पूर्व में ऐसे आदेश जारी होने के बावजूद राज्य में हजारों की संख्या में संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों की भर्ती हुई है। अब यह भर्ती कैसे हुई, यह जांच का विषय है। साथ ही, जब पूर्व में इन आदेशों का पालन नहीं हुआ, तो क्या भविष्य में इस आदेश का पालन होगा, यह भी एक बड़ा सवाल है।
2003 में भी जारी हुआ था ऐसा ही आदेश:
गौरतलब है कि वर्ष 2003 में भी इसी तरह का एक आदेश जारी किया गया था और ऐसी नियुक्तियों पर रोक लगाई गई थी। खास बात यह है कि इसके बावजूद राज्य में हजारों की संख्या में संविदा कर्मी, आउटसोर्स कर्मी और दैनिक वेतन भोगी कार्यरत हैं। सवाल यह है कि जब राज्य स्थापना के महज 3 साल बाद ही इस तरह का आदेश जारी कर दिया गया था, तो फिर इतनी बड़ी संख्या में यह तैनातियां कब और कैसे हुईं।
तीन बार जारी हो चुके हैं आदेश:
इस मामले को लेकर कर्मचारियों ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं, खासकर जब मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने हाल ही में एक बार फिर इसी तरह का आदेश जारी किया। उपनल विद्युत कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष विनोद कवि का कहना है कि पूर्व में भी इसी तरह के आदेश हुए हैं। पहले साल 2003 में, फिर 2018 और 2023 में भी ऐसे ही आदेश जारी किए गए, लेकिन आदेशों के बावजूद विभागों द्वारा नियुक्तियां जारी रहीं।