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Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: जब पंडित नेहरू ने की थी भविष्यवाणी- ‘यह लड़का एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा’

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति के आकाश में एक ऐसा ध्रुव तारा, जिसकी चमक ने सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों को समान रूप से प्रकाशित किया—वह नाम है भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी। आज 25 दिसंबर को पूरा देश पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती मना रहा है। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर की मिट्टी में जन्मे अटल जी केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक प्रखर वक्ता, संवेदनशील कवि और दूरदर्शी राजनायक थे।

आज उनकी जयंती के अवसर पर, आइए जानते हैं उस दिलचस्प किस्से के बारे में जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक युवा अटल के भीतर भविष्य का प्रधानमंत्री देख लिया था।

बलरामपुर से दिल्ली तक: जब नेहरू हुए वाकपटुता के कायल

साल 1957 का दौर था। उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से एक युवा नेता जीतकर संसद पहुंचा था। सदन में अपनी ओजस्वी वाणी और तर्कपूर्ण हिंदी से उस युवक ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। वह युवक कोई और नहीं, बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी थे।

लोकसभा में अटल जी की हिंदी और उनके संवाद कौशल का जादू ऐसा चला कि खुद प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू उनके मुरीद हो गए। उस समय के राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि नेहरू जी, अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को सुनने के लिए विशेष रूप से सदन में उपस्थित रहते थे।

नेहरू की ऐतिहासिक भविष्यवाणी: ‘ये लड़का बहुत आगे जाएगा’

संसद के भीतर अटल जी अक्सर नेहरू सरकार की नीतियों की तीखी आलोचना करते थे। लेकिन नेहरू जी उन नेताओं में से थे जो आलोचना के पीछे छिपी मेधा को पहचानते थे। एक बार एक विदेशी प्रतिनिधिमंडल (ब्रिटिश राजनेता) भारत दौरे पर था। पंडित नेहरू ने प्रोटोकॉल से हटकर उस युवा सांसद (अटल जी) का परिचय कराते हुए कहा था:

“इनसे मिलिए, ये विपक्ष के उभरते हुए नेता हैं। मुझे विश्वास है कि यह लड़का एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा।”

नेहरू की यह भविष्यवाणी चार दशक बाद सच साबित हुई, जब 1996 में अटल जी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।


जब अटल ने नेहरू को कह दिया था ‘चर्चिल और चैंबरलेन का मिश्रण’

अटल बिहारी वाजपेयी अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने एक बार सदन में पंडित नेहरू के सामने ही कह दिया था कि— “आपका व्यक्तित्व मिला-जुला है। आपमें चर्चिल (ब्रिटिश पीएम) की दृढ़ता भी है और चैंबरलेन की तुष्टीकरण वाली नीति भी।” इतनी कड़ी आलोचना सुनकर कोई भी नेता नाराज हो सकता था, लेकिन नेहरू के बड़प्पन और अटल के शब्दों के चयन का सम्मान देखिए—उसी दिन शाम को एक आधिकारिक कार्यक्रम में जब दोनों मिले, तो नेहरू ने अटल जी की पीठ थपथपाते हुए मुस्कुराकर कहा, “आज तुमने वाकई बहुत शानदार भाषण दिया।”

अटल का नेहरू को आखिरी नमन: ‘सूरज डूब चुका है…’

राजनीतिक विरोध के बावजूद अटल जी के मन में नेहरू के प्रति अगाध सम्मान था। जब 1964 में पंडित नेहरू का निधन हुआ, तो अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्यसभा में उन्हें जो श्रद्धांजलि दी, वह भारतीय संसदीय इतिहास के सबसे भावुक क्षणों में से एक है।

अटल जी ने कहा था:

“एक नेता चला गया है, लेकिन उनके अनुयायी जीवित हैं। आज परीक्षा की घड़ी है। सूरज डूब चुका है, अब हमें सितारों की मंद रोशनी में ही अपना रास्ता ढूंढना होगा।”

अटल बिहारी वाजपेयी: एक कालजयी व्यक्तित्व

अटल जी का व्यक्तित्व दलगत राजनीति से ऊपर था। उनकी जयंती को देश ‘सुशासन दिवस’ (Good Governance Day) के रूप में मनाता है। उनके कार्यकाल में हुए पोखरण परमाणु परीक्षण, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना और कारगिल युद्ध में विजय ने भारत को एक नई शक्ति के रूप में स्थापित किया।

अटल जी के जीवन के कुछ प्रमुख स्तंभ:

  • अजातशत्रु: वह नेता जिनका कोई शत्रु नहीं था।

  • साहित्य प्रेमी: उनकी कविताएं जैसे ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं।

  • हिंदी के ध्वजवाहक: संयुक्त राष्ट्र (UN) में पहली बार हिंदी में भाषण देकर उन्होंने वैश्विक मंच पर मां भारती का मान बढ़ाया।

निष्कर्ष: लोकतंत्र की सच्ची विरासत

नेहरू और अटल के बीच का यह संवाद और सम्मान आज की वैचारिक कड़वाहट वाली राजनीति के लिए एक महान सीख है। अटल बिहारी वाजपेयी ने दिखाया कि कैसे सिद्धांतों पर अडिग रहकर भी अपने विपक्षी का सम्मान किया जाता है। उनकी वाकपटुता, धैर्य और राष्ट्र के प्रति समर्पण उन्हें सदैव अमर रखेगा। भारतीय राजनीति का वह ‘अटल’ अध्याय आज भी हर भारतीय के दिल में ‘अटल’ है।

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