
देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने बेसिक शिक्षा विभाग से जुड़ा एक बड़ा निर्णय लिया है। राज्य मंत्रिमंडल ने बुधवार को उत्तराखंड राजकीय प्रारंभिक शिक्षा सेवा नियमावली 2012 में संशोधन को मंजूरी दे दी है। इस संशोधन के साथ ही प्रदेश में 2100 सहायक अध्यापक (प्राइमरी) और 550 विशेष शिक्षकों की भर्ती का मार्ग पूरी तरह साफ हो गया है।
सरकार का कहना है कि यह संशोधन प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी, गुणवत्तापूर्ण और आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की दिशा में उठाया गया अहम कदम है।
एनआईओएस डीएलएड शिक्षकों को मिली बड़ी राहत
संशोधित नियमावली के तहत वर्ष 2017 से 2019 के बीच एनआईओएस (राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान) से डीएलएड (डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन) करने वाले सेवारत शिक्षकों को भी प्राथमिक शिक्षक भर्ती में शामिल होने का अवसर मिलेगा।
पहले इन शिक्षकों को भर्ती प्रक्रिया से बाहर रखा गया था, जिससे बड़ी संख्या में सेवारत शिक्षक प्रभावित थे। अब उन्हें भी समान अवसर प्रदान किया जाएगा।
शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “यह संशोधन हजारों एनआईओएस डीएलएड शिक्षकों के लिए राहत लेकर आया है। लंबे समय से वे इस मांग को लेकर धरने और ज्ञापन दे रहे थे। अब उन्हें भी 2100 सहायक अध्यापक पदों पर आवेदन का अधिकार मिल गया है।”
विशेष शिक्षकों के लिए भी खुला अवसर
संशोधित नियमावली में पहली बार सहायक अध्यापक (विशेष शिक्षा) के पद को औपचारिक रूप से शामिल किया गया है।
इस पद पर भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) से मान्यता प्राप्त संस्थानों से विशेष शिक्षा में प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थी आवेदन कर सकेंगे।
राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (Divyang students) के लिए लगभग 550 विशेष शिक्षकों की नियुक्ति की जानी है।
शिक्षा विभाग का कहना है कि यह निर्णय समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। अब दिव्यांग बच्चों को भी उनके अनुरूप प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध होंगे।
विषयवार आरक्षण व्यवस्था में स्पष्टता
संशोधन के अनुसार, बेसिक शिक्षा के सहायक अध्यापक पदों में 50 प्रतिशत पद विज्ञान वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित किए जाएंगे।
इन पदों का वर्ग निर्धारण उस विषय के अनुसार किया जाएगा, जिसमें अभ्यर्थी ने डीएलएड उत्तीर्ण किया है।
बाकी 50 प्रतिशत पदों पर अन्य विषयों (कला, वाणिज्य आदि) के अभ्यर्थियों को नियुक्त किया जाएगा।
यदि स्नातक स्तर पर विषय संयोजन में कोई असमंजस उत्पन्न होता है, तो अभ्यर्थी का वर्ग निर्धारण इंटरमीडिएट स्तर पर निर्धारित विषयों के आधार पर किया जाएगा।
उर्दू अध्यापकों के लिए विशेष प्रावधान
संशोधित नियमावली में सहायक अध्यापक (उर्दू) पद के लिए स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि अभ्यर्थी का स्नातक उर्दू विषय में होना अनिवार्य होगा।
इस पद पर चयन के लिए 100 अंकों की लिखित परीक्षा आयोजित की जा सकती है, जिसमें न्यूनतम उत्तीर्णांक 50 प्रतिशत तय किया गया है।
इससे चयन प्रक्रिया पारदर्शी बनेगी और योग्यता के आधार पर ही नियुक्ति सुनिश्चित होगी।
शिक्षामित्रों को मिलेगा अनुभव का लाभ
नियमावली में यह भी प्रावधान किया गया है कि 31 मार्च 2019 तक कार्यरत शिक्षा मित्रों को उनके शिक्षण अनुभव के आधार पर प्रति वर्ष एक अंक (अधिकतम 12 अंक) तक का अतिरिक्त लाभ मेरिट सूची में दिया जाएगा।
इससे लंबे समय से कार्यरत शिक्षामित्रों को भी न्याय मिलेगा और उनके अनुभव को उचित सम्मान मिलेगा।
शिक्षा सचिव बोले — पारदर्शी होगी भर्ती प्रक्रिया
राज्य के शिक्षा सचिव ने कहा कि संशोधित नियमावली का उद्देश्य शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को पूर्ण रूप से पारदर्शी बनाना है।
उन्होंने कहा, “नई नियमावली में पात्रता, विषय संयोजन और आरक्षण को लेकर सभी बिंदुओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इससे विवादों की संभावना समाप्त होगी और योग्य अभ्यर्थियों को समान अवसर मिल सकेगा।”
राज्य में शिक्षक भर्ती का व्यापक असर
शिक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, इस संशोधन से राज्य में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आएगा। लंबे समय से रिक्त पड़े पदों के भरने से विद्यालयों में शिक्षण व्यवस्था बेहतर होगी।
इसके अलावा, विशेष शिक्षकों की नियुक्ति से दिव्यांग विद्यार्थियों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने में मदद मिलेगी।
राज्य के कई जिलों — जैसे पौड़ी, चमोली, टिहरी, बागेश्वर और पिथौरागढ़ — में शिक्षकों की भारी कमी है। नई भर्ती के बाद इन इलाकों के स्कूलों में शिक्षण गतिविधियों में स्थिरता आने की उम्मीद है।
पारदर्शिता और गुणवत्ता की दिशा में बड़ा कदम
शिक्षा विभाग का मानना है कि यह संशोधन केवल भर्ती प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्राथमिक शिक्षा की बुनियादी गुणवत्ता को सुदृढ़ करेगा।
नई भर्ती नीति में योग्यता, प्रशिक्षण और अनुभव — तीनों तत्वों को समान महत्व दिया गया है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के शब्दों में, “अब कोई भी पात्र अभ्यर्थी केवल तकनीकी कारणों से वंचित नहीं रहेगा। विभाग का लक्ष्य है कि राज्य के हर प्राथमिक विद्यालय में प्रशिक्षित, योग्य और समर्पित शिक्षक हों।”
उत्तराखंड की बेसिक शिक्षा नियमावली में हुआ यह संशोधन राज्य के लिए एक ऐतिहासिक सुधार माना जा रहा है। इससे न केवल 2600 से अधिक पदों पर भर्ती का रास्ता खुला है, बल्कि शिक्षक पात्रता और पारदर्शिता से जुड़ी कई पुरानी जटिलताओं का समाधान भी हुआ है।
राज्य सरकार का स्पष्ट संदेश है — “योग्य शिक्षक, मजबूत शिक्षा।”