
पटना/नई दिल्ली, 13 अगस्त 2025 — बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन यानी स्पेशल आइडेंटिफिकेशन रिवीजन (SIR) को लेकर मचा सियासी घमासान अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। मंगलवार को इस मामले में हुई सुनवाई में दोनों पक्षों ने जोरदार दलीलें रखीं। अब उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट आज इस पर कोई बड़ा फैसला सुना सकता है, जिस पर राज्य ही नहीं, बल्कि पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं।
SIR क्या है और क्यों विवाद में है?
SIR दरअसल चुनाव आयोग द्वारा समय-समय पर मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया है, जिसमें मृत, डुप्लीकेट और स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं, साथ ही नए योग्य मतदाताओं के नाम जोड़े जाते हैं। इस बार विवाद इसलिए गहराया क्योंकि विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस प्रक्रिया के जरिए राजनीतिक लाभ के लिए मतदाता सूची में हेरफेर करना चाहती है।
वहीं, सरकार और चुनाव आयोग का कहना है कि SIR लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है और इसका उद्देश्य मतदाता सूची को सटीक और पारदर्शी बनाना है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि SIR प्रक्रिया में आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण मानकर उपयोग किया जा रहा है, जो संविधान के खिलाफ है। उनका कहना था कि आधार केवल पहचान का साधन है, न कि नागरिकता का सबूत।
चुनाव आयोग की ओर से पेश वकीलों ने इसका खंडन करते हुए कहा कि आयोग आधार को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं मानता, बल्कि केवल पहचान की पुष्टि के लिए इसका इस्तेमाल करता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी करते हुए कहा, “आधार ऐक्ट की धारा 9 स्पष्ट है— आधार को नागरिकता या जन्मस्थान के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट की अहम टिप्पणियां
पहले दिन की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि चुनाव आयोग का रुख सही है, क्योंकि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकता का निर्धारण केवल आधार कार्ड के आधार पर नहीं हो सकता। अदालत ने यह भी संकेत दिए थे कि मतदाता सूची की पवित्रता बनाए रखने के लिए तकनीकी साधनों का इस्तेमाल ज़रूरी है, लेकिन इसे संवैधानिक प्रावधानों और मानवाधिकार मानकों के दायरे में रहकर ही करना होगा।
सियासी सरगर्मी चरम पर
बिहार में इस मुद्दे को लेकर सियासी माहौल गरमा गया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि SIR के नाम पर सत्तारूढ़ गठबंधन अपने समर्थकों के नाम मतदाता सूची में जोड़ने और विरोधी मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश कर रहा है। राजद, कांग्रेस और वाम दलों ने इस पर संयुक्त मोर्चा बनाकर चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं।
दूसरी ओर, जदयू-भाजपा गठबंधन का कहना है कि विपक्ष केवल चुनावी माहौल बिगाड़ने और मतदाताओं में भ्रम फैलाने के लिए बेबुनियाद आरोप लगा रहा है।
फैसले का महत्व
अगर सुप्रीम कोर्ट SIR प्रक्रिया पर रोक लगाता है या इसमें बदलाव के निर्देश देता है, तो यह बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर सीधा असर डालेगा। वहीं, अगर कोर्ट इसे वैधानिक ठहराता है, तो चुनाव आयोग अपने मौजूदा कार्यक्रम के अनुसार आगे बढ़ सकेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला न केवल बिहार, बल्कि उन सभी राज्यों के लिए मिसाल साबित होगा, जहां आने वाले महीनों में चुनाव होने हैं और मतदाता सूची संशोधन पर विवाद होता है।
बिहार में SIR को लेकर जारी कानूनी और सियासी लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही साफ होगा कि वोटर लिस्ट रिवीजन की मौजूदा प्रक्रिया जारी रहेगी या इसमें बड़े बदलाव होंगे। फिलहाल सभी की निगाहें कोर्ट पर टिकी हैं, क्योंकि इसके फैसले से चुनावी समीकरण और राजनीतिक रणनीतियां बदल सकती हैं।