29 जुलाई को ‘ग्लोबल टाइगर्स डे’ मनाया जाता है. खबर है कि इस साल बाघों की मौत के आंकड़े में अचानक उछाल आ गया है. साल के शुरुआती छह महीनों में ये आंकड़ा सौ के करीब पहुंच चुका है. इससे तीन राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तराखंड में हड़कंप मचा हुआ है, जो मौत के मामले में टॉप थ्री पर हैं. प्रोजेक्ट टाइगर के पचास साल पूरे होने पर इस साल अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेन्द् मोदी के हाथों 2022 की बाघ गणना के आंकड़े जारी किए गए थे.
इस गणना के अनुसार, वर्ष 2018 से अब तक देश में बाघों के कुनबे में दो सौ बाघों की वृद्वि हुई है. लेकिन ये खुशी ज्यादा देर नहीं टिक पाई, क्योंकि इस साल शुरूआती छह महीने में ही इसके आधे बाघों की मौत हो चुकी है. नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के अनुसार, इस साल 25 जून तक देश भर में 95 बाघों की मौत रिकॉर्ड की गई है. इनमें सबसे अधिक 24 बाघ मध्य प्रदेश, 19 बाघ महाराष्ट्र और 14 बाघ उत्तराखंड में मौत की नींद सो गए. इस चिंताजनक खबर के सामने आने के बाद हरकत में आए केंद्रीय वन मंत्रालय ने सभी राज्यों में जांच के आदेश दे दिए हैं. उत्तराखंड वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट द्वारा भी इसकी जांच बिठा दी गई है.
महानिदेशक वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार सीपी गोयल का कहना है कि जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ वनों पर अतिक्रमण का दबाव बढ़ता जा रहा है. फिर भी बाघों की मौत के मामले में राज्य सरकारों को जांच के आदेश दे दिए गए हैं. उत्तराखंड के चीफ वाइल्ड लाइप वार्डन समीर सिन्हा का कहना है कि निश्चित तौर पर यह चिंताजनक है. इसकी जांच के आदेश कर दिए गए हैं. हालांकि, समीर सिन्हा ये भी कहते हैं कि उत्तराखंड में टाइगर की बढ़ती आबादी के हिसाब से ये संख्या ज्यादा नहीं है. फिर भी कारणों की गहनता से पड़ताल की जा रही है. बीते सालों का आंकड़ा देखें तो 2021 में उत्तराखंड में तीन और 2022 में कुल छह बाघों की मौत हुई थी. लेकिन, 2023 में छह महीने में ही 14 बाघों की मौत ने स्वाभाविक तौर पर सभी को परेशान कर दिया है.