Nainital Leopard Attack: उत्तराखंड के नैनीताल जिले से एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जहां धारी ब्लॉक में एक तेंदुए ने महिला को अपना निवाला बना लिया। पहाड़ों में बढ़ते वन्यजीव संघर्ष ने ग्रामीणों में भारी रोष पैदा कर दिया है।
नैनीताल | देवभूमि उत्तराखंड के शांत पहाड़ इन दिनों वन्यजीवों के आतंक से थर्रा रहे हैं। शुक्रवार सुबह नैनीताल जिले के धारी ब्लॉक स्थित दीनी तल्ली ग्राम पंचायत में उस वक्त कोहराम मच गया, जब एक आदमखोर तेंदुए ने घास काटने गई महिला पर जानलेवा हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया। मृतका की पहचान हेमा देवी के रूप में हुई है। सबसे दर्दनाक पहलू यह रहा कि महिला का देवर उसे बचाने के लिए पत्थरों से तेंदुए से लड़ता रहा, लेकिन खूंखार जानवर उसे घसीटकर घने जंगल में ले गया।
घटना का विवरण: मौत से बहादुरी से लड़ी हेमा
प्राप्त जानकारी के अनुसार, शुक्रवार सुबह धारी ब्लॉक के तोक धूरा क्षेत्र में हेमा देवी अन्य दिनों की तरह अपने मवेशियों के लिए चारा (घास) लेने घर से निकली थीं। जंगल के करीब पहले से ही घात लगाए बैठे तेंदुए ने अचानक उन पर हमला बोल दिया।
ग्रामीणों ने बताया कि हेमा देवी ने तेंदुए को करीब आते देख लिया था। उन्होंने साहस दिखाते हुए शोर मचाया और बचाव में तेंदुए पर पत्थर भी फेंके। लेकिन भूख से पागल हो चुका तेंदुआ पीछे नहीं हटा और उसने हेमा को दबोच लिया।
देवर की आंखों के सामने घसीट ले गया ‘काल’
चीख-पुकार सुनकर हेमा देवी के देवर मौके पर दौड़े। उन्होंने अपनी भाभी को तेंदुए के चंगुल से छुड़ाने के लिए जान की बाजी लगा दी। देवर ने तेंदुए पर लगातार पत्थरों से प्रहार किए और शोर मचाकर उसे डराने की कोशिश की। लेकिन आदमखोर की ताकत के आगे मानवीय प्रयास विफल रहे। तेंदुआ लहूलुहान हेमा को दांतों से दबाकर जंगल की गहरी खाइयों की ओर खींच ले गया।
जंगल में मिला क्षत-विक्षत शव, गांव में मातम
घटना के बाद ग्रामीणों ने एकजुट होकर जंगल में तलाशी अभियान चलाया। काफी खोजबीन के बाद हेमा देवी का क्षत-विक्षत (अधखिला) शव बरामद हुआ। यह दृश्य इतना वीभत्स था कि देखने वालों की रूह कांप गई। जैसे ही हेमा का शव गांव पहुंचा, पूरे क्षेत्र में चीख-पुकार मच गई। परिवार का रो-रोकर बुरा हाल है।
उत्तराखंड में वन्यजीव संघर्ष: सड़कों पर तेंदुए, आंगन में भालू
यह घटना उत्तराखंड में गहराते मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict) का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है। इन दिनों राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में:
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तेंदुओं का आतंक: अब तेंदुआ केवल रात के अंधेरे में नहीं, बल्कि दिनदहाड़े मुख्य सड़कों और बस्तियों में घूमते देखे जा रहे हैं।
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भालुओं का खतरा: रिहायशी इलाकों और घरों के आंगन तक भालू पहुंच रहे हैं, जिससे खेती-किसानी करना दूभर हो गया है।
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पलायन की मजबूरी: जंगली जानवरों के डर से लोग अपने खेतों में जाने से कतरा रहे हैं, जो अंततः गांवों से पलायन का मुख्य कारण बन रहा है।
वन विभाग के खिलाफ फूटा ग्रामीणों का गुस्सा
घटना की सूचना मिलते ही नथुवाखान के वन क्षेत्राधिकारी विजय भट्ट ने टीम को मौके पर रवाना किया। हालांकि, वन विभाग की टीम के पहुंचने से पहले ही ग्रामीणों का गुस्सा सातवें आसमान पर था। स्थानीय लोगों का आरोप है कि विभाग बार-बार की शिकायतों के बावजूद गश्त नहीं बढ़ा रहा है और न ही आदमखोरों को पकड़ने के लिए पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं।
ग्रामीणों ने मांग की है कि:
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मृतका के परिवार को तत्काल उचित मुआवजा दिया जाए।
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क्षेत्र में आदमखोर तेंदुए को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाया जाए।
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संवेदनशील इलाकों में सोलर लाइट और नियमित गश्त की व्यवस्था हो।
प्रशासनिक प्रतिक्रिया
वन क्षेत्राधिकारी विजय भट्ट ने कहा, “हमें घटना की सूचना मिलते ही टीम को मौके पर भेज दिया था। शव का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। पीड़ित परिवार को सरकारी प्रावधानों के तहत मुआवजा दिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। क्षेत्र में सुरक्षा के मद्देनजर कदम उठाए जा रहे हैं।”
निष्कर्ष: कब थमेगी पहाड़ की ये ‘चीख’?
हेमा देवी की मौत केवल एक सांख्यिकी नहीं है, बल्कि उस असुरक्षा का प्रतीक है जिसे उत्तराखंड का हर ग्रामीण रोजाना महसूस करता है। जब तक सरकार और वन विभाग ठोस ‘कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट’ रणनीति नहीं अपनाते, तब तक पहाड़ की बेटियां यूं ही जंगलों में ‘शिकार’ बनती रहेंगी।



