नयी दिल्ली | 23 दिसम्बर 2025 अक्सर तीखी राजनीतिक बयानबाजी और वैचारिक मतभेदों के लिए पहचाने जाने वाले भारतीय राजनीतिक पटल पर आज एक सुखद और सराहनीय तस्वीर देखने को मिली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार और आधुनिक परिसर के निर्माण के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके मंत्रालय की जमकर तारीफ की है।
थरूर की यह सराहना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे स्वयं अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं और अक्सर सरकार की विदेश नीति के आलोचक रहे हैं।
‘अद्भुत उपलब्धि’: थरूर ने एक्स (X) पर साझा किए अनुभव
नालंदा साहित्य महोत्सव (Nalanda Literature Festival) में भाग लेने के लिए बिहार पहुंचे शशि थरूर ने वहां के नवनिर्मित विश्वविद्यालय परिसर का भ्रमण किया। परिसर की भव्यता, वास्तुशिल्प और ऐतिहासिक विरासत को संजोने के प्रयासों से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर अपनी भावनाओं को साझा करने में देर नहीं की।
शशि थरूर ने अपनी पोस्ट में लिखा:
“नालंदा साहित्य महोत्सव में भाग लेने के दौरान मैं नालंदा विश्वविद्यालय परिसर से बेहद प्रभावित हुआ। इस अद्भुत उपलब्धि के लिए एस. जयशंकर को मेरी हार्दिक बधाई। यह उपलब्धि हमारे देश में विदेश मंत्रालय (MEA) के उन कई गुमनाम योगदानों में से एक है, जो ‘उच्च रेटिंग’ (High Rating) की हकदार है।”
नालंदा: कूटनीति और ज्ञान का वैश्विक केंद्र
ज्ञात हो कि नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजनरी प्रोजेक्ट्स में से एक रहा है। इस परियोजना में विदेश मंत्रालय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है, क्योंकि यह विश्वविद्यालय ‘ईस्ट एशिया समिट’ (EAS) के देशों के सहयोग से एक अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक केंद्र के रूप में स्थापित किया गया है।
थरूर ने स्पष्ट किया कि विदेश मंत्रालय केवल कूटनीति और वैश्विक दौरों तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के भीतर ऐसी बौद्धिक और ऐतिहासिक धरोहरों के निर्माण में भी उसका योगदान “अनसंग” (गुमनाम) लेकिन बेहद प्रभावशाली है।
जयशंकर और थरूर: मतभेदों के बीच आपसी सम्मान
यह पहली बार नहीं है जब थरूर ने जयशंकर की तारीफ की है। हालांकि दोनों के बीच संसद के भीतर कई बार तीखी बहस देखी गई है, लेकिन राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर दोनों एक-दूसरे की विशेषज्ञता का सम्मान करते आए हैं। थरूर का यह बयान दर्शाता है कि जब बात राष्ट्र निर्माण और सांस्कृतिक पुनरुद्धार की आती है, तो भारतीय राजनीति में दलगत राजनीति से ऊपर उठने की परंपरा आज भी जीवित है।
क्या है नालंदा विश्वविद्यालय की खासियत?
-
ऐतिहासिक महत्व: 800 साल बाद अपनी पुरानी गरिमा को वापस पा रहा है।
-
इको-फ्रेंडली कैंपस: यह भारत के सबसे बड़े नेट-जीरो (Net-Zero) परिसरों में से एक है।
-
अंतरराष्ट्रीय सहयोग: इसमें 17 देशों का सहयोग और समर्थन प्राप्त है।
-
बौद्ध अध्ययन का केंद्र: यह वैश्विक स्तर पर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने का एक बड़ा ‘सॉफ्ट पावर’ टूल है।
निष्कर्ष: सकारात्मक राजनीति का संकेत
शशि थरूर का यह ट्वीट न केवल एस. जयशंकर के कुशल नेतृत्व की पुष्टि करता है, बल्कि यह विपक्ष की उस परिपक्वता को भी दर्शाता है जहाँ अच्छे कार्यों की सराहना बिना किसी हिचकिचाहट के की जाती है। नालंदा की धरती से शुरू हुई यह ‘प्रशंसा’ निश्चित रूप से भारत की सॉफ्ट पावर और कूटनीतिक सफलता की एक नई इबारत लिख रही है।



