
नई दिल्ली/कोच्चि: भारत सरकार ने देश के समुद्री मत्स्य क्षेत्र को तकनीकी रूप से सशक्त और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पहली डिजिटल राष्ट्रीय समुद्री मत्स्य पालन जनगणना (National Marine Fisheries Census 2025) की शुरुआत कर दी है।
इस जनगणना का उद्घाटन शुक्रवार को केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री जॉर्ज कुरियन ने कोच्चि में किया।
यह जनगणना 3 नवंबर से 18 दिसंबर 2025 तक चलेगी, जिसमें 9 तटीय राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों के करीब 12 लाख से अधिक मछुआरे परिवारों को शामिल किया जाएगा।
कार्यक्रम का आयोजन केंद्रीय मत्स्य पालन विभाग और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) के सहयोग से किया गया।
केंद्रीय मंत्री ने बताया ऐतिहासिक कदम
जनगणना के शुभारंभ अवसर पर केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन ने कहा,
“यह पहली बार है जब देश में मत्स्य क्षेत्र के आंकड़ों को पूरी तरह डिजिटल तकनीक के माध्यम से एकत्रित किया जाएगा। यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘ब्लू इकोनॉमी’ विजन को साकार करने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है।”
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि योजना (PM-MKSSY) के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए मछुआरों का National Fisheries Digital Platform (NFDP) पर पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
केवल वही मछुआरे या मत्स्यपालक, जो इस पोर्टल पर रजिस्टर्ड होंगे, वे केंद्र सरकार की वित्तीय सहायता, बीमा लाभ और योजनाओं के पात्र बन सकेंगे।
डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़ेगा हर मछुआरा परिवार
कुरियन ने बताया कि यह जनगणना “संपर्क से समृद्धि” के सिद्धांत पर आधारित है।
इसका उद्देश्य हर मछुआरे, नौका मालिक और मत्स्यपालक को एक केंद्रीकृत डिजिटल डेटाबेस से जोड़ना है, जिससे नीति निर्माण, सब्सिडी वितरण और राहत योजनाओं की पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
जनगणना के ‘हाउसहोल्ड एन्यूमरेशन फेज़’ (Household Enumeration Phase) के दौरान हजारों प्रशिक्षित क्षेत्रीय कर्मचारी मोबाइल ऐप और टैबलेट के माध्यम से रियल-टाइम डेटा एकत्र करेंगे।
इसमें मछुआरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, नौकाओं की संख्या, मत्स्य पालन के प्रकार, पकड़ की मात्रा और महिलाओं की भागीदारी जैसे पहलुओं का भी विस्तृत ब्यौरा दर्ज किया जाएगा।
9 तटीय राज्य और 4 केंद्र शासित प्रदेश शामिल
इस जनगणना में गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल सहित नौ तटीय राज्य और पुडुचेरी, लक्षद्वीप, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह और दमन एवं दीव जैसे चार केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं।
जनगणना के दायरे में लगभग 4,000 समुद्री मत्स्य ग्राम आते हैं।
सरकार के अनुसार, इस प्रक्रिया के माध्यम से मत्स्य क्षेत्र की वास्तविक उत्पादन क्षमता और समुद्री संसाधनों की स्थिति का वैज्ञानिक मूल्यांकन किया जा सकेगा।
“ब्लू इकोनॉमी” के लिए अहम कदम
मत्स्य पालन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत की ब्लू इकोनॉमी (Blue Economy) — यानी समुद्री संसाधनों पर आधारित आर्थिक गतिविधियां — देश के GDP में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
वर्तमान में मत्स्य क्षेत्र का योगदान राष्ट्रीय GDP में 1.24% और कृषि GDP में करीब 7% है।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है और लगभग 2.8 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र से जुड़े हैं।
डिजिटल जनगणना से सरकार को यह समझने में मदद मिलेगी कि कौन-से क्षेत्र या समुदाय अब तक योजनाओं से वंचित हैं और किन इलाकों में टिकाऊ मत्स्य प्रबंधन की जरूरत है।
तकनीक और पारदर्शिता का संगम
केंद्रीय मत्स्य पालन सचिव डॉ. अभिलाष शर्मा ने बताया कि जनगणना प्रक्रिया में पहली बार जीआईएस मैपिंग, मोबाइल सर्वे एप्लिकेशन और क्लाउड-आधारित डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल किया जा रहा है।
इससे राज्यवार और जिलेवार स्तर पर आंकड़े तुरंत उपलब्ध होंगे और नीति निर्माताओं को सटीक डेटा मिलेगा।
उन्होंने कहा,
“हम मछुआरों की पहचान, नौकाओं के पंजीकरण और सब्सिडी वितरण की प्रणाली को पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी बनाना चाहते हैं। इससे भ्रष्टाचार की संभावना समाप्त होगी और सहायता सीधे लाभार्थियों तक पहुँचेगी।”
प्रधानमंत्री मोदी के विजन से जुड़ी पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर कहा है कि भारत को ‘समुद्री शक्ति’ (Maritime Power) के रूप में विकसित करना 21वीं सदी का राष्ट्रीय लक्ष्य है।
प्रधानमंत्री के अनुसार, ‘ब्लू इकॉनमी’ और ‘डिजिटल गवर्नेंस’ — दोनों ही भारत के सतत विकास की दो प्रमुख आधारशिलाएं हैं।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि पीएम मोदी ने इस परियोजना को “समुद्र से समृद्धि तक” मिशन के रूप में देखा है, जो समुद्री संसाधनों के कुशल उपयोग, रोजगार सृजन और ग्रामीण तटीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा।
मछुआरों के लिए नई योजनाएं और लाभ
इस जनगणना के आधार पर सरकार आने वाले वर्षों में मछुआरों के लिए कई लक्षित योजनाएं शुरू करने की तैयारी में है।
इनमें शामिल होंगी —
- डिजिटल पहचान कार्ड जारी करना,
- नाव बीमा एवं दुर्घटना बीमा कवर का विस्तार,
- समुद्री सुरक्षा उपकरणों का वितरण,
- तथा महिलाओं के लिए “सी वीमेन उद्यमिता मिशन” जैसी योजनाएं।
आर्थिक और सामाजिक लाभ
नीति आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, यह पहल न केवल मत्स्य क्षेत्र को सशक्त बनाएगी बल्कि तटीय राज्यों की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव लाएगी।
उन्होंने कहा,
“यह जनगणना सामाजिक न्याय और आर्थिक समावेशन दोनों को साधती है। इससे उन मछुआरा समुदायों को पहचान मिलेगी जो वर्षों से योजनाओं के दायरे से बाहर थे।”
45 दिनों में पूरा होगा सर्वे
सरकार ने बताया कि यह सर्वे 45 दिनों में पूरा किया जाएगा, और प्रारंभिक रिपोर्ट फरवरी 2026 तक तैयार हो जाएगी।
इसके बाद डिजिटल डेटा का विश्लेषण करके प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के लिए मत्स्य नीतियों का अद्यतन खाका तैयार किया जाएगा।
जनगणना का लक्ष्य
- देशभर के 12 लाख से अधिक समुद्री मछुआरा परिवारों का डिजिटल पंजीकरण।
- मत्स्य संसाधनों के प्रबंधन और विकास के लिए विश्वसनीय डाटाबेस तैयार करना।
- केंद्र और राज्य की योजनाओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म से जोड़ना।
- मछुआरों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान को बढ़ावा देना।
भारत की पहली डिजिटल समुद्री मत्स्य पालन जनगणना न केवल आंकड़ों का संकलन है, बल्कि यह समुद्र से जुड़े करोड़ों भारतीयों के जीवन में डिजिटल क्रांति का आरंभ है — जो प्रधानमंत्री मोदी के “वोकल फॉर लोकल टू ग्लोबल” दृष्टिकोण को समुद्री तटों तक पहुंचा रही है।



