
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर: चुनाव आयोग द्वारा SIR (Systematic Information Revision) के दूसरे चरण की घोषणा के बाद कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने इस फैसले को “लोकतंत्र पर हमला” और “वोट चोरी की साजिश” करार देते हुए कहा कि इससे देश के 12 राज्यों में करोड़ों वोटर्स के नाम हटाने का खतरा पैदा हो गया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने आरोप लगाया कि यह पूरा अभियान भारतीय जनता पार्टी (BJP) के इशारे पर चलाया जा रहा है, ताकि आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में विपक्ष के समर्थकों के वोट काटे जा सकें।
क्या है SIR का दूसरा चरण?
चुनाव आयोग ने हाल ही में Systematic Information Revision (SIR) के दूसरे चरण की घोषणा की है, जिसके तहत मतदाता सूची के डिजिटल सत्यापन, पुनरीक्षण और डुप्लीकेट नामों को हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।
आयोग के अनुसार, इस चरण में “डेटा क्लीनिंग और फिजिकल वेरिफिकेशन के ज़रिए वोटर लिस्ट को अपडेट और पारदर्शी बनाने” का लक्ष्य रखा गया है।
यह अभियान देश के 12 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों में एक साथ चलाया जाएगा, जिनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और ओडिशा शामिल हैं।
कांग्रेस का आरोप: “वोटर्स को टारगेट कर हटाया जा रहा है”
कांग्रेस ने कहा कि SIR का दूसरा चरण तकनीकी सुधार के नाम पर विपक्षी वोट बैंक को कमजोर करने का एक तरीका है।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा —
“यह किसी प्रशासनिक सुधार का नहीं, बल्कि राजनीतिक दांव का हिस्सा है। जिन इलाकों में बीजेपी को हार का डर है, वहां बड़े पैमाने पर मतदाता सूची से नाम हटाने की तैयारी की जा रही है।”
खेड़ा ने आगे कहा कि कांग्रेस के पास कई जिलों से ऐसे सबूत हैं जहां पिछले चरण में दलित, अल्पसंख्यक और गरीब वर्गों के वोट अचानक लिस्ट से गायब कर दिए गए थे।
राहुल गांधी ने भी साधा निशाना
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा —
“SIR का मतलब अब ‘Systematic Information Removal’ हो गया है। करोड़ों वोटर्स को चुनावी मैदान से बाहर करने की यह सुनियोजित साजिश है। मोदी सरकार और चुनाव आयोग मिलकर लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं।”
राहुल गांधी के इस बयान को विपक्षी दलों के कई नेताओं ने री-ट्वीट करते हुए समर्थन दिया। टीएमसी, राजद, डीएमके और आप ने भी SIR की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं।
चुनाव आयोग ने किया बचाव
विवाद बढ़ने के बाद चुनाव आयोग ने बयान जारी कर कहा कि SIR का दूसरा चरण पूरी तरह “पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया” है। आयोग ने कहा —
“हमारा उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन और त्रुटिहीन बनाना है। किसी भी नागरिक का नाम राजनीतिक कारणों से नहीं हटाया जा रहा। हर व्यक्ति को सुनवाई और अपील का अधिकार है।”
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रत्येक राज्य में ब्लॉक लेवल ऑफिसर्स (BLOs) द्वारा घर-घर सत्यापन किया जा रहा है और किसी भी मतदाता को सूचना दिए बिना सूची से हटाया नहीं जाएगा।
विपक्ष बनाम सरकार — नया सियासी विवाद
इस मुद्दे ने संसद और सियासी गलियारों में नया विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि SIR की प्रक्रिया का समय जानबूझकर आगामी विधानसभा चुनावों से पहले रखा गया है।
उन्होंने कहा —
“जब चुनावों की आहट तेज़ है, तब यह वोटर लिस्ट की सफाई नहीं, बल्कि लोकतंत्र की सफाई का प्रयास है। भाजपा चाहती है कि विपक्ष के वोटर बूथ तक पहुंच ही न सकें।”
वहीं, भाजपा ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए पलटवार किया है। पार्टी प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने कहा —
“कांग्रेस हर उस सुधार का विरोध करती है जो पारदर्शिता लाता है। SIR का उद्देश्य फर्जी और दोहरे नाम हटाना है, न कि किसी समुदाय को निशाना बनाना। कांग्रेस को हार का डर सता रहा है, इसलिए यह मुद्दा उठाया जा रहा है।”
सिविल सोसाइटी और चुनाव पर्यवेक्षकों की चिंता
चुनावी सुधार पर काम करने वाले संगठनों जैसे ADR (Association for Democratic Reforms) और Common Cause ने भी इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं।
ADR के शोधकर्ता अजय शंकर ने कहा —
“वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया का डिजिटलीकरण आवश्यक है, लेकिन इसकी पारदर्शिता उतनी ही जरूरी है। यदि डेटा हैंडलिंग निजी एजेंसियों के हाथ में दी गई है, तो इससे दुरुपयोग की आशंका बढ़ जाती है।”
उन्होंने सुझाव दिया कि सभी राजनीतिक दलों को SIR से जुड़े डेटा तक बराबर पहुंच दी जानी चाहिए, ताकि मतदाता सूची में किसी भी तरह की हेराफेरी की संभावना न रहे।
सोशल मीडिया पर गरमा गई बहस
SIR को लेकर सोशल मीडिया पर भी गर्मागर्मी बढ़ गई है। ट्विटर (X) पर #StopVoterDeletion और #SIRPhase2 जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
कई यूजर्स ने दावा किया है कि उनके परिवार या पड़ोसियों के नाम अचानक वोटर लिस्ट से गायब हो गए हैं। चुनाव आयोग ने ऐसे दावों की जांच के लिए हेल्पलाइन नंबर और वेबसाइट लिंक साझा किए हैं।
राजनीतिक रूप से संवेदनशील समय
चूंकि आगामी महीनों में मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में चुनावी प्रक्रिया शुरू होनी है, ऐसे में SIR के दूसरे चरण का समय राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संदीप शुक्ला कहते हैं —
“वोटर लिस्ट की सफाई प्रशासनिक ज़रूरत है, लेकिन जब इसका टाइमिंग और टारगेटिंग संदिग्ध लगने लगे, तो यह चुनावी बहस का हिस्सा बन जाती है। यही इस विवाद का केंद्र है।”
लोकतंत्र के लिए नई बहस
SIR पर उठे सवालों ने एक बार फिर यह बहस शुरू कर दी है कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और मतदाता सूची की विश्वसनीयता कैसे सुनिश्चित की जाए।
कांग्रेस जहां इसे “वोट चोरी” बता रही है, वहीं केंद्र सरकार इसे “चुनावी पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम” कह रही है।
फिलहाल, सियासत गरम है और देश की नज़र अब इस बात पर टिकी है कि क्या SIR की प्रक्रिया वास्तव में लोकतांत्रिक सुधार लाएगी — या विपक्ष के आरोपों के मुताबिक, यह “डेटा के जरिए वोटों की लड़ाई” का नया अध्याय साबित होगी।



