
हल्द्वानी: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार को हल्द्वानी स्थित एम.बी. इंटर कॉलेज मैदान में पांच दिवसीय ‘कुमाऊं द्वार महोत्सव’ का विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि यह महोत्सव केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि उत्तराखंड की अस्मिता, परंपरा और जड़ों से जुड़े रहने का प्रतीक है। उन्होंने इसे “हमारी सांस्कृतिक चेतना का उत्सव” बताते हुए कहा कि यह आयोजन राज्य की गौरवशाली परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम बनेगा।
🎭 कला, संस्कृति और परंपरा का संगम
मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि कुमाऊं द्वार महोत्सव हमारे प्रदेश की विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण है। यह मंच न केवल लोक कलाकारों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का अवसर देता है, बल्कि समाज में संस्कृति के प्रति जागरूकता भी बढ़ाता है।
उन्होंने कहा —
“कुमाऊं द्वार महोत्सव हमारी अस्मिता, हमारी पहचान और हमारी जड़ों से जुड़ाव का उत्सव है। यह महोत्सव हमारी संस्कृति की जीवंतता का प्रमाण है, जो तकनीकी युग में भी जीवित और प्रासंगिक है।”
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस आयोजन से लोक कलाकारों को अपनी कला को प्रस्तुत करने और सम्मानित होने का अवसर मिलता है। यह आयोजन सांस्कृतिक संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाता है।
🌸 ‘ब्रह्मकमल टोपी’ बनी उत्तराखंड की पहचान
अपने संबोधन में मुख्यमंत्री धामी ने गर्वपूर्वक उल्लेख किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2026 में पहनी गई ‘ब्रह्मकमल टोपी’ अब उत्तराखंड की पहचान बन चुकी है।
उन्होंने कहा —
“प्रधानमंत्री जी द्वारा हमारे राज्य की ब्रह्मकमल टोपी धारण करने के बाद यह केवल एक वस्त्र नहीं रही, बल्कि अब यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक बन गई है।”
🪶 लोक संस्कृति के संरक्षण की दिशा में राज्य सरकार के प्रयास
मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार लोक भाषा, संस्कृति और लोक कलाकारों के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के लिए लगातार कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने लोक कलाकारों की सूची तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की है ताकि उन्हें समय पर आर्थिक और संस्थागत सहायता मिल सके।
उन्होंने बताया कि—
- कोरोना काल में करीब 3200 सूचीबद्ध कलाकारों को ₹2000 प्रतिमाह की सहायता दी गई थी।
- लोक कला में जीवन समर्पित करने वाले कलाकारों को जीवनभर पेंशन दी जा रही है।
- गुरु-शिष्य परंपरा के अंतर्गत 6 माह के लोक प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं ताकि युवा पीढ़ी अपनी जड़ों और परंपराओं से जुड़ सके।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान, साहित्य भूषण पुरस्कार और लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड जैसे सम्मानों के माध्यम से साहित्य और कला के क्षेत्र में योगदान देने वालों को निरंतर प्रोत्साहित कर रही है।
👩🌾 महिला सशक्तिकरण पर भी दिया बल महोत्सव स्थल पर मुख्यमंत्री ने महिला स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा लगाए गए स्टॉलों का भी अवलोकन किया।
उन्होंने कहा कि इन समूहों द्वारा बनाए जा रहे स्थानीय उत्पाद ‘वोकल फॉर लोकल’ के विचार को साकार कर रहे हैं। उन्होंने “लखपति दीदी योजना” का उल्लेख करते हुए बताया कि राज्य सरकार महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत है।
“हमारी माताएं और बहनें उत्तराखंड के विकास की अग्रदूत बनेंगी। प्रधानमंत्री जी ने कहा है — यह दशक उत्तराखंड का दशक है, और इसे आगे बढ़ाने में महिलाएं सबसे बड़ी भूमिका निभाएंगी।”
🏡 स्वदेशी अपनाने का संदेश
मुख्यमंत्री धामी ने प्रधानमंत्री मोदी के “स्वदेशी अपनाओ, देश को मजबूत बनाओ” के मंत्र को आत्मसात करने की अपील की। उन्होंने कहा कि स्थानीय उत्पादों और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने से न केवल अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि हमारी परंपराएं भी संरक्षित रहेंगी।
“हम सब मिलकर स्वदेशी का प्रयोग करें, अपने स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा दें। यही सच्चे अर्थों में आत्मनिर्भर भारत की दिशा है।”
लोक कलाकारों की प्रतिभा को मिला मंच
महोत्सव के उद्घाटन समारोह में उत्तराखंड के विभिन्न जिलों से आए लोक कलाकारों, नृत्य दलों और वादकों ने पारंपरिक वेशभूषा में मनमोहक प्रस्तुतियां दीं।
मुख्यमंत्री ने सभी कलाकारों की सराहना करते हुए कहा कि वे “उत्तराखंड की सांस्कृतिक आत्मा” हैं, जो अपनी कला के माध्यम से प्रदेश की पहचान विश्वभर में बना रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आज हमारे लोक कलाकार उत्तराखंड की सीमाओं से निकलकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी राज्य की सांस्कृतिक छाप छोड़ रहे हैं।
कार्यक्रम में रही भारी उपस्थिति
कार्यक्रम में कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत, आईजी रिद्धिमा अग्रवाल, एसएसपी पी.एस. मीणा, प्रभारी जिलाधिकारी अनामिका, स्थानीय जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, लोक कलाकार और बड़ी संख्या में नागरिक उपस्थित रहे। मंच से उतरने के बाद मुख्यमंत्री ने जनता से संवाद किया और कलाकारों का आभार व्यक्त करते हुए कहा —
“हमारी सांस्कृतिक धरोहर हमारी पहचान है। इस महोत्सव जैसे आयोजनों से हम अपनी जड़ों को सहेजते और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाते हैं।”
हल्द्वानी का कुमाऊं द्वार महोत्सव केवल सांस्कृतिक प्रस्तुति नहीं, बल्कि उत्तराखंड की लोक परंपराओं, भाषा, संगीत और लोककला का जीवंत प्रतीक बनकर उभरा है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का संदेश स्पष्ट है —
“संस्कृति ही समाज की आत्मा है, और कुमाऊं द्वार महोत्सव उस आत्मा को जगाने वाला दीप है।”