
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2025: अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी गुरुवार को सात दिन के भारत दौरे पर पहुंचे। यह दौरा भारत और अफगानिस्तान के बीच लंबे समय बाद हो रहे उच्च-स्तरीय संपर्क का संकेत माना जा रहा है। मुत्ताकी ने शुक्रवार को विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात की, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार, मानवीय सहायता और क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा हुई।
हालांकि, मुत्ताकी की यात्रा कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ विवादों में भी घिर गई। शुक्रवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों के प्रवेश पर प्रतिबंध ने तालिबान की पुरानी नीतियों और लैंगिक समानता पर उसके दृष्टिकोण को लेकर एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी।
जयशंकर-मुत्ताकी बैठक: धीरे-धीरे सुधर रहे रिश्ते
नई दिल्ली में हुई बैठक में दोनों देशों के बीच संबंधों को पुनर्स्थापित करने की दिशा में सकारात्मक संकेत देखने को मिले। मुत्ताकी ने कहा,
“भारत से हमारे रिश्ते धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं। हमने मानवीय सहायता, व्यापार और सुरक्षा सहयोग पर रचनात्मक बातचीत की है।”
उन्होंने यह भी घोषणा की कि काबुल जल्द ही अपने राजनयिकों को भारत भेजेगा, जिससे अफगानिस्तान में भारत के साथ राजनयिक संवाद और तेज होगा। मुत्ताकी ने बताया,
“विदेश मंत्री जयशंकर ने हमें आश्वस्त किया है कि हम अपने राजनयिक नई दिल्ली भेज सकते हैं। हम अब अफगानिस्तान जाकर इस पर औपचारिक प्रक्रिया शुरू करेंगे।”
यह बयान इस दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है क्योंकि 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था और केवल सीमित तकनीकी मिशन के माध्यम से काम जारी रखा था।
भारत का रुख: ‘टेक्निकल मिशन को दूतावास का दर्जा मिलेगा’
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बैठक के बाद कहा कि भारत अफगानिस्तान में अपने टेक्निकल मिशन को अब दूतावास का दर्जा देने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत की प्राथमिकता अफगान जनता की मानवीय जरूरतों को पूरा करना है और भारत चाहता है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी सूरत में भारत विरोधी गतिविधियों के लिए न हो।
जयशंकर ने दोहराया कि भारत अभी भी तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं देता, लेकिन “अफगान जनता के साथ मानवीय संबंध बनाए रखना भारत की ऐतिहासिक जिम्मेदारी है।”
भारत अब तक अफगानिस्तान को 50,000 मीट्रिक टन गेहूं, 13 टन दवाइयाँ और COVID-19 टीके मानवीय सहायता के रूप में भेज चुका है।
सुरक्षा आश्वासन: अफगान जमीन का इस्तेमाल किसी के खिलाफ नहीं होगा
बैठक में मुत्ताकी ने भारत को भरोसा दिलाया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा।
“हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अफगानिस्तान की भूमि किसी तीसरे देश के खिलाफ आतंकवाद या अस्थिरता फैलाने के लिए इस्तेमाल नहीं हो,”
मुत्ताकी ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा।
यह आश्वासन भारत के लिए खास तौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि तालिबान शासन के दौरान पाकिस्तान-समर्थित आतंकी संगठनों की गतिविधियों को लेकर भारत की चिंता लगातार बनी रही है।
महिला पत्रकारों पर बैन से उठे सवाल
मुत्ताकी के दौरे का एक और पहलू विवाद का कारण बना। शुक्रवार को नई दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसी भी महिला पत्रकार को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई।
एनडीटीवी, एएनआई और कई अन्य मीडिया संगठनों की महिला रिपोर्टर्स ने इस प्रतिबंध का विरोध किया और इसे तालिबान की “पुरानी मानसिकता” बताया।
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने तेजी से तूल पकड़ा। कई पत्रकारों और नागरिकों ने सवाल उठाए कि “भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में तालिबान के इस लैंगिक भेदभाव को कैसे स्वीकार किया जा सकता है?”
एक वरिष्ठ महिला पत्रकार ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा,
“यह केवल तालिबान की सोच का नहीं, बल्कि मेज़बान देश की पत्रकारिता स्वतंत्रता की परीक्षा का भी सवाल है।”
भारत स्थित अफगान दूतावास से जब इस मुद्दे पर संपर्क किया गया तो सुरक्षा अधिकारियों ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
भारत के लिए रणनीतिक संतुलन की चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि मुत्ताकी की यात्रा भारत के लिए रणनीतिक संतुलन का एक कठिन अभ्यास है।
नई दिल्ली को एक ओर अफगान जनता की मदद जारी रखनी है, वहीं तालिबान शासन को वैधता देने से बचना भी है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रो. राजीव भट्ट का कहना है,
“भारत फिलहाल ‘संपर्क बनाए रखने लेकिन मान्यता न देने’ की नीति पर चल रहा है। यह नीति भारत को संवाद की राह खुली रखने में मदद करती है, जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के मानदंडों से भी मेल खाती है।”
भारत के लिए अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना भी अहम चुनौती है। हाल ही में बीजिंग ने काबुल में अपने राजदूत की औपचारिक नियुक्ति की थी, जिससे तालिबान को आंशिक अंतरराष्ट्रीय वैधता मिली।
व्यापार और कनेक्टिविटी पर बातचीत
बैठक में दोनों पक्षों के बीच व्यापारिक संपर्क बढ़ाने पर भी चर्चा हुई। अफगानिस्तान चाहता है कि भारत चाबहार पोर्ट और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के जरिए अफगान उत्पादों को एशिया और यूरोप तक पहुंचाने में मदद करे।
भारत ने भी काबुल के साथ एयर-फ्रेट कॉरिडोर को फिर से शुरू करने पर सकारात्मक संकेत दिए हैं। यह व्यापारिक मार्ग 2020 के बाद से निलंबित था।
महिला अधिकारों पर भारत की चिंता बरकरार
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, जयशंकर ने मुलाकात के दौरान अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी पर भी चिंता जताई।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार कहा है कि “अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा” ही स्थायी शांति की कुंजी है।
विश्लेषण: भारत-तालिबान संवाद का नया अध्याय
अमीर खान मुत्ताकी का यह दौरा भारत और तालिबान के बीच सावधानी भरा कूटनीतिक पुनर्संपर्क माना जा रहा है। 2021 में तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद से दोनों देशों के बीच आधिकारिक संवाद सीमित था। अब यह यात्रा संकेत देती है कि नई दिल्ली मानवीय सहयोग के साथ व्यावहारिक संबंधों की दिशा में आगे बढ़ रही है।
हालांकि, महिला पत्रकारों के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध ने यह भी दिखा दिया कि तालिबान शासन में बुनियादी स्वतंत्रताओं के हालात अभी भी नहीं बदले हैं।
भारत को अपने लोकतांत्रिक मूल्यों और रणनीतिक हितों के बीच एक संतुलित रास्ता चुनना होगा।
अमीर खान मुत्ताकी का भारत दौरा दक्षिण एशियाई कूटनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकता है। परंतु, महिला अधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता से जुड़े विवाद यह याद दिलाते हैं कि तालिबान के साथ संवाद सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक और वैचारिक चुनौती भी है।