
अयोध्या। अयोध्या में मस्जिद निर्माण की राह एक बार फिर कठिन हो गई है। अयोध्या विकास प्राधिकरण (एडीए) ने धन्नीपुर गांव में प्रस्तावित मस्जिद के नक्शे को खारिज कर दिया है। प्राधिकरण ने सरकारी विभागों से अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) न मिलने का हवाला देते हुए यह फैसला लिया है।
यह वही जमीन है जो सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर 2019 के ऐतिहासिक फैसले के बाद सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को आवंटित की गई थी। अब एडीए के इस फैसले ने मस्जिद निर्माण से जुड़ी पूरी प्रक्रिया को ठहराव पर ला दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था 5 एकड़ जमीन देने का आदेश
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में फैसला सुनाते हुए विवादित 2.77 एकड़ जमीन हिंदू पक्ष को राम मंदिर निर्माण के लिए सौंप दी थी। साथ ही अदालत ने मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में प्रमुख स्थान पर 5 एकड़ जमीन मस्जिद निर्माण के लिए देने का आदेश दिया था।
इस आदेश के अनुपालन में जिला प्रशासन ने सोहावल तहसील के धन्नीपुर गांव में 5 एकड़ जमीन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को आवंटित की।
मस्जिद ट्रस्ट ने कब दिया था आवेदन?
- 3 अगस्त 2020 को तत्कालीन डीएम अनुज कुमार झा ने इस जमीन का कब्जा सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपा।
- इसके बाद 23 जून 2021 को मस्जिद ट्रस्ट ने अयोध्या विकास प्राधिकरण में नक्शा पास कराने का आवेदन किया।
- ट्रस्ट ने 4,02,628 रुपये शुल्क भी जमा किया।
लेकिन आवेदन पर कार्रवाई के दौरान पाया गया कि कई विभागों से आवश्यक मंजूरी नहीं मिल सकी।
किन विभागों से नहीं मिला NOC?
RTI में सामने आई जानकारी के अनुसार, एडीए को निम्न विभागों से NOC नहीं मिला:
- लोक निर्माण विभाग (PWD)
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
- नागरिक उड्डयन विभाग
- सिंचाई विभाग
- राजस्व विभाग
- नगर निगम
- अग्निशमन विभाग
इनमें से किसी भी विभाग ने मस्जिद निर्माण के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) जारी नहीं किया।
एडीए का जवाब
पत्रकार ओम प्रकाश सिंह द्वारा दायर RTI के जवाब में एडीए ने स्पष्ट किया:
“मस्जिद ट्रस्ट का आवेदन इस कारण से खारिज किया गया क्योंकि आवश्यक विभागीय अनापत्ति प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं हो पाए। जब तक ये मंजूरी नहीं मिलती, प्राधिकरण भवन निर्माण योजना को स्वीकृति नहीं दे सकता।”
धन्नीपुर मस्जिद परियोजना की स्थिति
धन्नीपुर मस्जिद का निर्माण इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (IICF) ट्रस्ट की देखरेख में होना था। इस परियोजना में मस्जिद के अलावा एक अस्पताल, लाइब्रेरी, सामुदायिक रसोई और इंडो-इस्लामिक रिसर्च सेंटर बनाने की योजना थी।
लेकिन तीन साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी निर्माण शुरू नहीं हो सका है। अब एडीए की ओर से नक्शा खारिज किए जाने के बाद परियोजना का भविष्य और अनिश्चित हो गया है।
मुस्लिम पक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि इस फैसले पर ट्रस्ट की आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी नहीं आई है, लेकिन मस्जिद निर्माण से जुड़े लोग पहले भी जमीन के स्थान और प्रशासनिक अड़चनों को लेकर अपनी चिंताएं जता चुके हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि जमीन अयोध्या शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर है, जिसके कारण मस्जिद का महत्व और पहुंच सीमित हो सकती है।
राजनीतिक और सामाजिक मायने
धन्नीपुर मस्जिद केवल एक धार्मिक ढांचा नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हिस्सा है। इसलिए इसका निर्माण न होना या मंजूरी प्रक्रिया का अटकना सीधे तौर पर कानूनी और राजनीतिक विमर्श का विषय बन सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर प्रशासन और ट्रस्ट के बीच समाधान नहीं निकला, तो यह मुद्दा एक बार फिर विवाद को जन्म दे सकता है।
आगे क्या?
कानूनी जानकारों का कहना है कि मस्जिद ट्रस्ट एडीए के इस फैसले को चुनौती दे सकता है। इसके अलावा ट्रस्ट को दोबारा आवश्यक दस्तावेज और विभागीय मंजूरी हासिल कर नया आवेदन भी देना पड़ सकता है।
अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि मस्जिद निर्माण कब शुरू होगा और परियोजना आगे किस दिशा में बढ़ेगी।
अयोध्या में धन्नीपुर मस्जिद परियोजना का ठहरना यह दिखाता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी जमीनी स्तर पर कई तकनीकी और प्रशासनिक बाधाएं मौजूद हैं। 50 महीने से अधिक बीत जाने के बाद भी मस्जिद का निर्माण शुरू न होना मुस्लिम पक्ष के लिए चिंता का विषय है।
अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि सुन्नी वक्फ बोर्ड और ट्रस्ट अगला कदम क्या उठाते हैं और क्या एडीए दोबारा नए आवेदन को मंजूरी देगा या नहीं।