
नई दिल्ली/नारायणपुर। छत्तीसगढ़ में लंबे समय से सक्रिय वामपंथी उग्रवाद को बड़ा झटका लगा है। राज्य के दुर्गम अबूझमाड़ इलाके में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति के दो टॉप कमांडर मारे गए। मारे गए नक्सलियों की पहचान राजू दादा उर्फ कट्टा रामचंद्र रेड्डी (63 वर्ष) और कोसा दादा उर्फ कादरी सत्यनारायण रेड्डी (67 वर्ष) के रूप में हुई है। दोनों तेलंगाना के करीमनगर जिले के रहने वाले थे और छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रत्येक पर 40 लाख रुपये का इनाम घोषित किया था।
बरामदगी: भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक
सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ स्थल से एक एके-47 राइफल, एक इंसास राइफल, एक बीजीएल लॉन्चर, बड़ी मात्रा में विस्फोटक, माओवादी साहित्य और अन्य सामान बरामद किया।
यह बरामदगी साफ संकेत देती है कि नक्सली बड़े पैमाने पर हमले की योजना बना रहे थे। नारायणपुर जिले के पुलिस अधीक्षक रॉबिन्सन ने बताया कि 22 सितंबर को छत्तीसगढ़–महाराष्ट्र अंतर्राज्यीय सीमा के अबूझमाड़ क्षेत्र में माओवादी गतिविधियों की सूचना के बाद डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व ग्रुप) और आईटीबीपी की संयुक्त टीम ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया। सुबह से शुरू हुई फायरिंग शाम तक रुक-रुक कर चलती रही। अंततः, दो माओवादी कमांडर ढेर हो गए।
राजू दादा और कोसा दादा: नक्सल आंदोलन के पुराने चेहरे
- राजू दादा को संगठन में गुड़सा उसेंदी, विजय और विकल्प नामों से जाना जाता था। वह कई सालों तक नक्सलियों के प्रचार विभाग का मुखिया रहा और दंडकारण्य क्षेत्र में कई आतंकी हमलों की साजिश रच चुका था।
- कोसा दादा, जिसे गोपन्ना और बुचन्ना के नामों से भी जाना जाता था, नक्सलियों के सैन्य संगठन का अहम हिस्सा था। उसने छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा पर कई हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया।
दोनों ही बीते तीन दशकों से दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति में सक्रिय थे और सुरक्षा बलों पर हमलों की साजिश रचने में शामिल रहे।
डीआईजी का बयान: नक्सल संगठन को तगड़ी चोट
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुन्दरराज पी. ने एनकाउंटर के बाद बयान देते हुए कहा –
“प्रतिबंधित माओवादी संगठन के खिलाफ चल रहे अभियानों ने उन्हें बड़ी चोट पहुंचाई है। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और प्रतिकूल मौसम के बावजूद हमारी पुलिस और सुरक्षा बल पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ काम कर रहे हैं। जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप शांति स्थापित करना ही हमारा लक्ष्य है।”
अबूझमाड़ क्यों है नक्सलियों का गढ़?
अबूझमाड़, छत्तीसगढ़ का सबसे दुर्गम इलाका माना जाता है। यहां का घना जंगल, ऊबड़-खाबड़ भूभाग और सीमित संचार सुविधा नक्सलियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बनाता रहा है।
- अनुमान है कि अबूझमाड़ क्षेत्र में नक्सलियों का एक बड़ा बेस कैंप मौजूद है।
- कई बार सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमले इसी इलाके से संचालित हुए हैं।
- स्थानीय जनजातीय आबादी को दबाव में रखकर नक्सली उन्हें अपने समर्थन में इस्तेमाल करते रहे हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अबूझमाड़ में लगातार हो रही कार्रवाइयों से नक्सली संगठन की पकड़ कमजोर पड़ रही है।
स्थानीय जनता में बढ़ा विश्वास
इस ऑपरेशन के बाद स्थानीय गांवों में खुशी का माहौल है। ग्रामीणों का कहना है कि वे लंबे समय से नक्सलियों के खौफ में जी रहे थे।
- एक ग्रामीण ने मीडिया से कहा – “हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों को शिक्षा और रोजगार मिले। नक्सली हमारे विकास में बाधा डालते हैं। सरकार और पुलिस का ये अभियान स्वागत योग्य है।”
राजनीतिक और सुरक्षा विश्लेषण
विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार की संयुक्त रणनीति के कारण नक्सलियों पर दबाव बढ़ा है।
- एक ओर, ऑपरेशन प्रहार और अन्य सैन्य अभियानों से नक्सलियों की क्षमता घट रही है।
- दूसरी ओर, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी विकास योजनाएं भी जंगलों में पहुंच रही हैं।
- इन दो टॉप कमांडरों का खात्मा न केवल सुरक्षा बलों के मनोबल को बढ़ाएगा बल्कि नक्सली संगठन के नेटवर्क को भी कमजोर करेगा।
भविष्य की दिशा: निर्णायक चरण में लड़ाई
सुरक्षा एजेंसियां मान रही हैं कि नक्सल विरोधी अभियान अब निर्णायक चरण में प्रवेश कर चुका है।
- कई शीर्ष नेता मारे जा चुके हैं या पकड़े जा चुके हैं।
- निचले स्तर के कैडर आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौट रहे हैं।
- संगठन के पास नए नेतृत्व की भारी कमी है।
हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि नक्सली अब भी हिट-एंड-रन रणनीति अपनाकर छोटे हमले कर सकते हैं। इसलिए सुरक्षा बलों को सतर्क रहना होगा।