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तालिबान का नया फरमान: बल्ख प्रांत में फाइबर इंटरनेट पर बैन, आम लोग हुए बेहाल

काबुल/नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान की पकड़ लगातार मज़बूत होती जा रही है और इसके असर से आम नागरिकों के लिए बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचना और मुश्किल हो गया है। अब तालिबान ने “अनैतिकता को रोकने” के नाम पर उत्तरी अफगानिस्तान के बल्ख प्रांत में फाइबर ऑप्टिक इंटरनेट यानी हाई-स्पीड वाईफाई कनेक्शन पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस फैसले के बाद सरकारी और निजी दफ्तरों, शैक्षणिक संस्थानों और आम घरों से वाईफाई इंटरनेट सेवाएं बंद हो गई हैं।

हालांकि मोबाइल इंटरनेट अभी उपलब्ध है, लेकिन वह महंगा और बेहद धीमा है, जिसकी वजह से लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी और कामकाज ठप हो रहे हैं।


अगस्त 2021 के बाद पहली बार इंटरनेट पर बैन

एपी (AP) की रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद यह पहला मौका है जब इस स्तर पर इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगाया गया है। बल्ख प्रांत की प्रांतीय सरकार के प्रवक्ता हाजी अताउल्लाह जैद ने कहा कि यह आदेश तालिबान सुप्रीम लीडर हिबतुल्ला अखुंदजादा के निर्देश पर लागू किया गया है। जैद ने कहा, “यह कदम अनैतिकता को रोकने के लिए उठाया गया है और देश के भीतर जरूरतों के लिए एक नया विकल्प खोजा जाएगा।”

हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि “अनैतिकता” से उनका तात्पर्य क्या है और क्या यह बैन केवल बल्ख तक सीमित रहेगा या अन्य प्रांतों में भी लागू होगा।


लोगों की परेशानियां बढ़ीं

बल्ख में रहने वाले एक स्थानीय निवासी ने एपी को बताया कि इतने एडवांस दौर में इंटरनेट को बैन करना उनकी समझ से बाहर है। उन्होंने कहा कि मोबाइल इंटरनेट बहुत धीमा और महंगा है, जिससे घर के सभी सदस्य—जिनमें एक छात्र भी शामिल है—भारी मुश्किल में हैं।

इंटरनेट की कमी से सबसे ज्यादा प्रभावित वे लोग हो रहे हैं, जिनका काम अफगानिस्तान के बाहर स्थित कंपनियों और व्यक्तियों के साथ जुड़ा है। तेज और स्थिर कनेक्शन के बिना न तो ऑनलाइन क्लासेस हो पा रही हैं और न ही कारोबार।


शिक्षा और कारोबार पर बड़ा असर

अफगानिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट और बेरोज़गारी से जूझ रहा है। वाईफाई पर बैन से छोटे व्यवसाय, फ्रीलांसर और छात्र सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।

  • छात्रों के लिए संकट: ऑनलाइन पढ़ाई पूरी तरह से रुक गई है। खासकर वे छात्र, जो विदेश में पढ़ाई की तैयारी कर रहे थे या ऑनलाइन कोर्स कर रहे थे, अब इंटरनेट से कट गए हैं।
  • व्यवसायों पर असर: बल्ख और आसपास के शहरों में सैकड़ों लोग फ्रीलांस काम या ऑनलाइन कारोबार पर निर्भर थे। अब उनका काम ठप हो गया है।
  • महिलाओं की दिक़्क़तें: पहले से ही शिक्षा और नौकरी से वंचित महिलाओं के लिए इंटरनेट ही एकमात्र खिड़की था, जिसके जरिए वे सीख सकती थीं या बाहर की दुनिया से जुड़ी रह सकती थीं। इस बैन से उनका दायरा और सीमित हो गया है।

तालिबान की सोच और पाबंदियां

तालिबान 2021 में सत्ता में आने के बाद से ही शिक्षा, मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगातार पाबंदियां लगा रहा है।

  • महिलाओं के स्कूल और कॉलेज जाने पर रोक।
  • सार्वजनिक स्थलों पर संगीत और मनोरंजन के कार्यक्रमों पर बैन।
  • टीवी चैनलों और मीडिया की गतिविधियों पर सख्ती।

अब इंटरनेट पर यह पाबंदी बताती है कि तालिबान तकनीक को भी “नैतिक नियंत्रण” के दायरे में लाना चाहता है।


क्या यह बैन फैल सकता है?

फिलहाल यह बैन सिर्फ बल्ख प्रांत तक सीमित है। लेकिन अफगान विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में इसे अन्य प्रांतों में भी लागू किया जा सकता है। तालिबान पहले से ही सोशल मीडिया को लेकर सतर्क है और कई बार फेसबुक और यूट्यूब पर “अनैतिक कंटेंट” का हवाला देकर निगरानी की बात कर चुका है।


अंतरराष्ट्रीय चिंता

मानवाधिकार संगठनों ने इस कदम की आलोचना की है। एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि यह फैसला अफगान नागरिकों को पूरी तरह से बाहरी दुनिया से काटने की कोशिश है। संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट में भी कहा गया था कि तालिबान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बुनियादी स्तर पर खत्म कर रहा है।


लोगों की आवाज़

बल्ख के कई निवासियों का कहना है कि उन्हें डर है कि मोबाइल इंटरनेट भी कभी भी बैन हो सकता है। एक स्थानीय दुकानदार ने कहा, “हमारे बच्चों की पढ़ाई रुक गई है। इंटरनेट सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि आज की दुनिया में ज़रूरत है।”


भविष्य पर सवाल

तालिबान के इस कदम से कई सवाल उठते हैं:

  • क्या अफगानिस्तान पूरी तरह डिजिटल डार्क जोन बनने की ओर बढ़ रहा है?
  • क्या तालिबान तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने के लिए करेगा?
  • और सबसे बड़ा सवाल—क्या अफगान नागरिकों की आवाज़ और दुनिया से उनका जुड़ाव हमेशा के लिए कट जाएगा?

कुल मिलाकर, बल्ख प्रांत में इंटरनेट पर बैन तालिबान की सख्त नीतियों की एक और कड़ी है। यह फैसला न सिर्फ शिक्षा और रोजगार पर भारी असर डाल रहा है, बल्कि अफगानिस्तान को वैश्विक मंच से और अलग-थलग भी कर रहा है।

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