
नई दिल्ली, 15 सितम्बर 2025 (नेशनल डेस्क): सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत का चुनाव आयोग, एक संवैधानिक संस्था होने के नाते, चुनावी राज्य बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के दौरान कानून का पालन कर रहा है। हालांकि, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि इस प्रक्रिया में किसी तरह की अवैधता पाई गई तो इसे रद्द कर दिया जाएगा।
बिहार एसआईआर पर केंद्रित बहस, 7 अक्टूबर को सुनवाई
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि वह इस मामले में किसी अंतरिम राय या ‘फुटकर टिप्पणी’ नहीं देगी। पीठ ने बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया की वैधता पर अंतिम दलीलें सुनने के लिए 7 अक्टूबर 2025 की तारीख तय की है।
पीठ ने साफ किया कि इस सुनवाई के बाद जो भी फैसला आएगा, वह न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत में चल रहे SIR पर लागू होगा। इस तरह, यह केस राष्ट्रीय स्तर पर मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया को लेकर मिसाल साबित हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – चुनाव आयोग पर भरोसा, लेकिन सतर्कता भी ज़रूरी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक निकाय की निष्ठा और क्षमता पर सवाल नहीं उठा रहा। कोर्ट ने यह मानने की बात दोहराई कि आयोग कानून का पालन कर रहा है। लेकिन न्यायालय ने चेतावनी भरे स्वर में यह भी जोड़ा कि “यदि इस प्रक्रिया में कोई भी गैरकानूनी या असंवैधानिक गतिविधि सामने आती है तो पूरी SIR प्रक्रिया को खारिज कर दिया जाएगा।”
इस बयान से यह साफ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को पूर्ण स्वतंत्रता देने के साथ-साथ न्यायिक निगरानी बनाए रखेगा।
पूरे भारत में लागू होगा फैसला
पीठ ने कहा, “बिहार एसआईआर पर हमारा फैसला पूरे भारत में एसआईआर पर लागू होगा।” यानी, अगर बिहार की प्रक्रिया को वैध ठहराया गया तो यह देशभर में चुनाव आयोग द्वारा कराए जा रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण पर भी लागू होगा। वहीं, यदि इसमें खामियां पाई गईं तो इसका असर पूरे देश की SIR प्रक्रिया पर होगा।
यह टिप्पणी चुनाव सुधार और मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम मानी जा रही है।
आधार कार्ड को लेकर उठे सवाल
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितम्बर को दिए गए अपने आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर भी नोटिस जारी किया है। उस आदेश में चुनाव आयोग को बिहार SIR में आधार कार्ड को 12वें निर्धारित दस्तावेज के रूप में शामिल करने की अनुमति दी गई थी।
हालांकि, कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि “आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।” इसलिए, इसे मतदाता सूची में शामिल करने के लिए आधारभूत दस्तावेज की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग यदि किसी नागरिक द्वारा आधार प्रस्तुत किए जाने पर उसकी वास्तविकता की जांच करता है, तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन आधार को नागरिकता और मतदाता होने का स्वत: प्रमाण मानना गलत होगा।
याचिकाकर्ताओं को पूरे देश पर बहस की छूट
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को यह छूट दी है कि वे 7 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई में केवल बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में लागू SIR प्रक्रिया पर भी दलीलें रख सकते हैं।
इससे यह मामला और व्यापक हो गया है। दरअसल, कई राज्यों में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के दौरान गड़बड़ियों की शिकायतें आती रही हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर डालेगा।
लोकतंत्र के लिए अहम है मतदाता सूची की शुद्धता
चुनाव विशेषज्ञों का कहना है कि मतदाता सूची की शुद्धता लोकतंत्र की मजबूती का आधार है। यदि इसमें गड़बड़ी हो तो चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठ सकता है। बिहार का SIR केस इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां बार-बार मतदाता सूची में गड़बड़ियों के आरोप लगते रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप यह सुनिश्चित करेगा कि चुनाव आयोग की प्रक्रियाएं पारदर्शी और कानूनी दायरे में हों।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार की सुनवाई में भले ही तत्काल कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया हो, लेकिन उसकी टिप्पणियों ने स्पष्ट कर दिया है कि वह चुनाव आयोग की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए भी पारदर्शिता और वैधता पर कड़ी नज़र रखेगा।
7 अक्टूबर को होने वाली अंतिम सुनवाई का असर न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत की चुनावी प्रक्रियाओं पर पड़ेगा। साथ ही, आधार कार्ड को नागरिकता प्रमाण के तौर पर न मानने का दोहराया गया सिद्धांत भी भविष्य के चुनाव सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।