
नई दिल्ली: भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2026 में मजबूती के संकेत दे रही है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक नई रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि देश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) इस दौरान रेपो रेट में कटौती कर सकता है, जिससे उपभोग और निवेश को बल मिलेगा।
अमेरिकी टैरिफ से बढ़ी चिंता
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अमेरिका द्वारा भारत पर लगाया गया 50 प्रतिशत का टैरिफ निर्यात और जीडीपी वृद्धि पर दबाव डाल सकता है। अमेरिका भारत के लिए एक बड़ा निर्यात बाजार है और उच्च आयात शुल्क का असर टेक्सटाइल, फार्मा और स्टील जैसे क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा पड़ सकता है।
RBI की मौद्रिक नीति में बदलाव की संभावना
क्रिसिल ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष में रेपो रेट में कटौती और कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) में 100 आधार अंक की कमी संभव है। माना जा रहा है कि ये कदम सितंबर और दिसंबर में लागू हो सकते हैं। यह बदलाव वित्तीय परिस्थितियों को आसान बनाएगा और बैंकों के पास कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी।
महंगाई नियंत्रण में, खपत बढ़ने की उम्मीद
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले छह महीनों (फरवरी-जुलाई) से महंगाई दर RBI के 4 प्रतिशत लक्ष्य से नीचे बनी हुई है।
- अच्छी बारिश और कृषि उत्पादन से खाद्य मुद्रास्फीति कम रहने की संभावना है।
- कमोडिटी की घटती कीमतें गैर-खाद्य मुद्रास्फीति को नरम कर सकती हैं।
- कम GST दरें और कर राहत से भी महंगाई में गिरावट आएगी।
29 अगस्त तक खरीफ की बुवाई पिछले साल की तुलना में 2.9 प्रतिशत अधिक रही है। इससे ग्रामीण आय और खपत पर सकारात्मक असर होगा।
बारिश का दोहरा असर
हालांकि, क्रिसिल ने यह भी कहा है कि अधिक बारिश के कारण कुछ फसलों की पैदावार प्रभावित हो सकती है। इससे कृषि उत्पादन में असंतुलन आ सकता है। लेकिन समग्र रूप से खाद्य मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहने की संभावना है।
बैंकिंग सेक्टर में सुधार
रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक ऋण वृद्धि दर में सुधार देखा जा रहा है।
- अगस्त में बैंक ऋण वृद्धि दर 10 प्रतिशत रही।
- जुलाई में यह 9.8 प्रतिशत और जून तिमाही में औसतन 9.6 प्रतिशत थी।
यह रुझान बताता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश और खपत की रफ्तार बढ़ रही है।
रुपये पर दबाव, पूंजी प्रवाह अस्थिर
वैश्विक वित्तीय माहौल में उथल-पुथल के कारण रुपये पर दबाव बना रह सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूंजी प्रवाह में अस्थिरता संभव है, जिससे अल्पावधि में विदेशी निवेश प्रभावित हो सकता है। हालांकि, घरेलू स्तर पर मजबूत खपत और सरकारी नीतियों का असर अर्थव्यवस्था को संभालेगा।
सरकारी नीतियां और कर राहत बनेगी सहारा
क्रिसिल का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही कर राहत और निवेश प्रोत्साहन योजनाएं खपत को बढ़ावा देंगी। इसके साथ ही बुनियादी ढांचे में निवेश, PLI स्कीम और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर जोर से भारत की विकास दर स्थिर रहेगी।
2026 का रोडमैप: संतुलन की चुनौती
विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले महीनों में भारत को दोहरी चुनौतियों से जूझना होगा।
- एक ओर अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक मंदी का दबाव।
- दूसरी ओर घरेलू खपत और निवेश का सहारा।
यदि RBI समय पर रेपो रेट और CRR में कटौती करता है और सरकार खपत बढ़ाने वाली नीतियां जारी रखती है, तो भारत की अर्थव्यवस्था 2026 में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बनी रह सकती है।