
नई दिल्ली: रूस की धरती पर सितंबर 2025 का महीना एक ऐतिहासिक मौका बनने जा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार भारत और पाकिस्तान की सेनाएं किसी अंतरराष्ट्रीय युद्धाभ्यास में एक साथ हिस्सा लेंगीं। यह अभ्यास 1 सितंबर से 17 सितंबर तक चलेगा और इसमें दुनिया के 20 देशों की सेनाएं भाग ले रही हैं। खास बात यह है कि इस अभ्यास में चीन भी शामिल होगा, जिससे इस पूरे आयोजन का भू-राजनीतिक महत्व और बढ़ गया है।
भारत की ओर से लगभग 70 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल इस अभ्यास में शामिल होने के लिए सोमवार तक रवाना होने वाला है। भारतीय सेना की सक्रिय भागीदारी 9 सितंबर से शुरू होगी।
भारत-पाक सेनाओं का साथ: 2018 के बाद एक और ऐतिहासिक पल
यह कोई पहला मौका नहीं है जब भारत और पाकिस्तान की सेनाएं एक ही मंच पर नजर आएंगी। वर्ष 2018 में रूस के चेलायबिंस्क में आयोजित एससीओ (Shanghai Cooperation Organisation) एक्सरसाइज में दोनों देशों की सेनाओं ने पहली बार एक साथ भाग लिया था। उस समय यह पहल क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग के लिहाज़ से बेहद अहम मानी गई थी। अब करीब सात साल बाद दोनों सेनाएं फिर से आमने-सामने आ रही हैं, हालांकि इस बार परिदृश्य कहीं ज्यादा जटिल और संवेदनशील है।
यूक्रेन युद्ध की छाया में अभ्यास
रूस और यूक्रेन के बीच फरवरी 2022 से जारी युद्ध ने पूरी दुनिया को हिला दिया है। अब जबकि इस युद्ध को ढाई साल से ज्यादा हो चुके हैं, रूस का पलड़ा भारी होता दिख रहा है। यूक्रेन ने कई बार युद्धविराम की पेशकश की है और अमेरिका भी इस मसले पर रूस से बातचीत कर चुका है।
इसी पृष्ठभूमि में रूस में यह मल्टीनेशनल वॉर ड्रिल आयोजित की जा रही है। दिलचस्प यह है कि साल 2012 के बाद से यह सैन्य अभ्यास लगातार बाधित रहा था। अब लगभग चार साल बाद यह दोबारा आयोजित हो रहा है, जो रूस की सैन्य और कूटनीतिक रणनीति को मजबूती देता है।
भारत के लिए क्या मायने रखता है यह अभ्यास?
भारत की भागीदारी कई स्तरों पर अहम है:
- सैन्य कौशल का प्रदर्शन: भारतीय सेना का उद्देश्य अपने रणनीतिक कौशल और युद्धक क्षमताओं का प्रदर्शन करना है।
- बहुपक्षीय कूटनीति: भारत एक ऐसे समय में अभ्यास का हिस्सा बन रहा है, जब दुनिया बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ रही है।
- क्षेत्रीय स्थिरता: पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ मंच साझा करना भारत के लिए जटिल लेकिन महत्वपूर्ण अनुभव साबित होगा।
- वैश्विक छवि: यह भारत की उस छवि को मजबूत करता है जिसमें वह शांति, सहयोग और स्थिरता का समर्थक है।
पाकिस्तान और चीन की मौजूदगी
इस अभ्यास में पाकिस्तान और चीन की मौजूदगी को हल्के में नहीं लिया जा सकता। भारत और पाकिस्तान के बीच जहां सीमा विवाद और आतंकवाद बड़ा मसला है, वहीं चीन के साथ लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश जैसे मुद्दों पर लगातार तनाव बना हुआ है।
ऐसे में एक ही मंच पर तीनों देशों की सेनाओं का हिस्सा लेना अपने आप में अनूठा और चुनौतीपूर्ण परिदृश्य है। विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की ड्रिल सैन्य टकराव को कम करने और संवाद के रास्ते खोलने में सहायक हो सकती है।
रूस की रणनीति और अंतरराष्ट्रीय संकेत
रूस इस अभ्यास के ज़रिए यह संदेश देना चाहता है कि यूक्रेन युद्ध के बावजूद उसकी सैन्य ताकत और कूटनीतिक पहुंच कायम है। 20 देशों की भागीदारी यह दिखाती है कि रूस अब भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है।
इसके अलावा, रूस भारत के साथ अपने पुराने रक्षा संबंधों को और मजबूत करना चाहता है। भारत आज भी रूस से बड़े पैमाने पर रक्षा उपकरण खरीदता है और इस साझेदारी को नई दिशा देने की संभावना इस अभ्यास में देखी जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस अभ्यास के कई कूटनीतिक निहितार्थ होंगे।
- अमेरिका और पश्चिमी देशों की निगाहें इस आयोजन पर टिकी हुई हैं।
- चीन की भागीदारी भारत के लिए सामरिक चिंता का कारण है।
- पाकिस्तान की मौजूदगी दक्षिण एशिया की राजनीति को नई दिशा दे सकती है।
भारत यहां जिस संतुलित कूटनीति का प्रदर्शन कर रहा है, वह यह संदेश देती है कि नई दिल्ली किसी एक ध्रुव से जुड़ने के बजाय बहुपक्षीय सहयोग को प्राथमिकता देती है।
रूस में हो रहा यह मल्टीनेशनल वॉर ड्रिल सिर्फ़ एक सैन्य अभ्यास भर नहीं है, बल्कि वैश्विक राजनीति, सुरक्षा और कूटनीति का बड़ा मंच है। भारत के लिए यह अपनी क्षमताओं को दिखाने, कूटनीतिक संतुलन साधने और क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में योगदान देने का अवसर है।
हालांकि पाकिस्तान और चीन की मौजूदगी चुनौतियां लेकर आती है, लेकिन इसी तरह के अभ्यास भविष्य में सहयोग और संवाद की नई संभावनाएं भी खोल सकते हैं।