
नई दिल्ली, लीगल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि कर्मचारी अपने घर से कार्यस्थल जाते या वापस आते समय दुर्घटना का शिकार होता है, तो उसे भी “ड्यूटी के दौरान” हुआ हादसा माना जाएगा — बशर्ते कि दुर्घटना और रोजगार के बीच स्पष्ट संबंध हो।
यह फैसला कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 की धारा 3 की व्याख्या से जुड़ा है, जिसमें यह निर्धारित किया गया है कि किस परिस्थिति में नियोक्ता कर्मचारी को मुआवजा देने के लिए बाध्य होगा।
🔹 सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा:
“हम धारा 3 में प्रयुक्त ‘नौकरी के दौरान और उसके कारण हुई दुर्घटना’ वाक्यांश की व्याख्या इस प्रकार करते हैं कि इसमें ऐसे हादसे भी शामिल होंगे जो कर्मचारी के घर से कार्यस्थल जाते या लौटते समय घटते हैं — यदि दुर्घटना की परिस्थितियां, समय, स्थान और रोजगार के बीच तर्कसंगत संबंध स्थापित होता है।”
कोर्ट ने माना कि अब तक इस विषय पर कानून में स्पष्टता का अभाव था, जिससे निचली अदालतों में विभिन्न व्याख्याएं सामने आईं।
🔹 बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला पलटा
यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट के एक पुराने निर्णय को पलटते हुए आया है। दरअसल, उस्मानाबाद के एक श्रमिक की 2003 में ड्यूटी पर जाते समय सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने उस हादसे को ड्यूटी पर नहीं माना था।
हालांकि, श्रमिक क्षतिपूर्ति आयुक्त ने मृतक के परिवार को 3.26 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था।
अब सुप्रीम कोर्ट ने उस हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा:
“मृतक उस दिन ड्यूटी पर जा रहा था, जिसकी शुरुआत सुबह 3 बजे से थी। दुर्घटना कार्यस्थल से लगभग 5 किलोमीटर पहले हुई — इसलिए इसे ड्यूटी से जुड़ा हादसा माना जाएगा।”
🔹 क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?
यह निर्णय उन लाखों कर्मचारियों के लिए सुरक्षा की एक कानूनी ढाल के रूप में देखा जा रहा है, जो हर दिन अपने घर से कार्यस्थल की यात्रा करते हैं। यह फैसला खासकर उन क्षेत्रों में लागू हो सकता है जहां
- नाइट शिफ्ट्स प्रचलित हैं,
- कर्मचारी फैक्टरी/इंडस्ट्री क्षेत्रों में दूर से आते हैं,
- और नियोक्ता आम तौर पर यात्रा के दौरान हुई दुर्घटनाओं से पल्ला झाड़ लेते हैं।
⚖️ अब स्पष्ट है कि —
यदि कर्मचारी की कार्य-यात्रा (commute) नियमित, अपेक्षित और सीधे कार्यस्थल से संबंधित है, तो किसी दुर्घटना की स्थिति में उसे ‘ड्यूटी के दौरान’ हुआ हादसा माना जाएगा — और नियोक्ता कानूनी रूप से मुआवजा देने के लिए बाध्य होगा।
यह फैसला भविष्य में श्रमिकों के अधिकारों और सुरक्षा से जुड़े कई मामलों में मिसाल (precedent) के रूप में उद्धृत किया जा सकता है।