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छात्र आत्महत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा – संस्थान क्या कर रहे हैं? क्यों हो रही हैं मौतें?

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नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ब्यूरो रिपोर्ट: देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में लगातार हो रही छात्र आत्महत्याओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सख्त रुख अपनाया। आईआईटी खड़गपुर और ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी में हुई आत्महत्या की घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालत ने संस्थानों की भूमिका, प्रबंधन की जवाबदेही, और जांच की पारदर्शिता को लेकर कई तीखे सवाल उठाए।

🧑‍⚖️ “छात्र क्यों आत्महत्या कर रहे हैं? संस्थान क्या कर रहे हैं?” – सुप्रीम कोर्ट

मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने आईआईटी खड़गपुर से सीधा सवाल किया:

“छात्र आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? आप क्या कर रहे हैं? क्या मानसिक स्वास्थ्य, प्रोटोकॉल, या समुचित सहयोग की कोई व्यवस्था है?”

शारदा यूनिवर्सिटी के मामले में कोर्ट ने प्रबंधन पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की अवहेलना का आरोप लगाया और फटकार लगाई। अदालत ने पूछा कि

“छात्रा के पिता को सबसे पहले उसकी आत्महत्या की जानकारी संस्थान के दोस्तों ने दी — प्रबंधन ने क्यों नहीं दी? क्या पुलिस और अभिभावकों को सूचित करना उनकी जिम्मेदारी नहीं थी?”

📌 जांच में लापरवाही? पुलिस से चार हफ्तों में रिपोर्ट मांगी

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की पुलिस को निर्देश दिया कि वे चार सप्ताह के भीतर स्टेटस रिपोर्ट सौंपें। साथ ही, आईआईटी खड़गपुर मामले में अमाइकस क्यूरी अपर्णा भट्ट ने अदालत को बताया कि स्थानीय पुलिस ने अभी तक जांच से जुड़ी कोई जानकारी साझा नहीं की है, जो न्यायिक प्रक्रिया के लिए चिंताजनक है।

शारदा यूनिवर्सिटी केस में अमाइकस ने बताया कि

  • छात्रा के पास से सुसाइड नोट बरामद हुआ है।
  • एफआईआर दर्ज की जा चुकी है।
  • दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
    इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या संस्थान ने मानवता और कानून दोनों का पालन किया है या नहीं

🎓 मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल, शैक्षणिक संस्थानों की जवाबदेही तय करने की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने एक बार फिर भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य, तनाव प्रबंधन, और संवेदनशीलता प्रशिक्षण की अपर्याप्तता को उजागर कर दिया है। कोर्ट ने टिप्पणी की:

“हम इस पर फिलहाल अधिक नहीं कहेंगे क्योंकि जांच जारी है, लेकिन यह चिंताजनक स्थिति है।”


इस संवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती एक महत्वपूर्ण संदेश है — कि छात्रों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य अब संस्थानों की जिम्मेदारी से अलग नहीं किया जा सकता।

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