
नई दिल्ली: देशभर में बढ़ती आवारा कुत्तों की समस्या के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा – “अगर आप कुत्तों से इतना प्रेम करते हैं, तो उन्हें अपने घर में रखकर खिलाइए। सड़कों को इनके लिए खुला नहीं छोड़ा जा सकता।” यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिसमें नोएडा निवासी ने शिकायत की थी कि कुत्तों को खाना खिलाने के कारण उन्हें परेशान किया जा रहा है।
कोर्ट की दो टूक – सड़कों को इंसानों के लिए भी खुला रहने दीजिए
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा –
“हर गली और सड़क क्या इन ‘बड़े दिल वालों’ के लिए खुली छोड़ दी जाए? क्या इंसानों की कोई जगह नहीं बची? अगर इतना ही प्यार है, तो अपने घर में शेल्टर बनाकर खिलाइए।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सार्वजनिक स्थलों पर जानवरों को खाना खिलाना आम नागरिकों की सुरक्षा और सुविधा के खिलाफ हो सकता है, खासकर जब सुबह वॉकर्स, साइकिल सवार और बच्चों पर हमलों की घटनाएं सामने आती हैं।
क्या कहा याचिकाकर्ता ने?
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि वह एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स 2023 के नियम 20 का पालन कर रहे हैं, जिसमें स्थानीय निकायों द्वारा आवारा जानवरों के लिए भोजन की व्यवस्था का उल्लेख है। वकील ने कहा कि ग्रेटर नोएडा में इसके लिए ज़ोन चिन्हित किए जा रहे हैं, लेकिन नोएडा में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
उन्होंने सुझाव दिया कि कम भीड़भाड़ वाली जगहों पर कुत्तों को खाना खिलाने के लिए निर्दिष्ट स्थान बनाए जाएं, जिससे आम नागरिकों को परेशानी न हो।
🚴♂️ ‘एक बार सुबह साइकिल चला कर देखिए…’
वकील की बात पर कोर्ट ने व्यंग्य करते हुए कहा,
“क्या आप सुबह साइकिल चलाते हैं? एक बार चलाकर देखिए, फिर पता चलेगा कि खतरा कैसा होता है।”
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ टहलने वाले ही नहीं, साइकिल और दोपहिया वाहन चलाने वाले लोग भी खतरे में रहते हैं, जब आवारा कुत्ते अचानक हमला कर देते हैं।
याचिका को अन्य समान मामलों के साथ जोड़ा गया
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को इसी तरह के एक अन्य मामले के साथ जोड़कर सुनवाई स्थगित कर दी है। अब दोनों मामलों की एक साथ सुनवाई की जाएगी।
हाई कोर्ट भी दे चुका है सख्त निर्देश
मार्च 2025 में इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी टिप्पणी करते हुए कहा था कि
“आवारा कुत्तों की सुरक्षा ज़रूरी है, लेकिन आम नागरिकों की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता।”
हाई कोर्ट ने नगर निकायों को निर्देश दिया था कि जनता और पशु प्रेमियों – दोनों के हितों का संतुलन बनाया जाए।
सामाजिक चिंता बनता जा रहा है आवारा कुत्तों का मामला
देशभर से आए दिन ऐसी खबरें आती हैं, जहां आवारा कुत्तों के हमलों से बच्चों, बुजुर्गों और राहगीरों को गंभीर चोटें आई हैं। कई मामलों में जान भी चली गई है।
वहीं, पशु अधिकारों की पैरवी करने वाले समूह मानते हैं कि प्रेम और करुणा का रास्ता भी खुला रहना चाहिए, लेकिन यह नियमों और स्थानों की स्पष्टता के साथ होना चाहिए।
संतुलन की जरूरत – सुरक्षा भी, सहानुभूति भी
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने एक बार फिर इस बहस को हवा दे दी है कि जानवरों के अधिकार और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। इस दिशा में अब नीतिगत समाधान और स्थानीय प्रशासन की स्पष्ट भूमिका की ज़रूरत महसूस की जा रही है।