
नई दिल्ली | 10 जुलाई 2025: बिहार में प्रस्तावित विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक और कानूनी विवाद गहराता जा रहा है। इस मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ इस संवेदनशील मामले की सुनवाई कर रही है।
विपक्षी दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और चुनाव आयोग के बीच इस मसले को लेकर मतभेद साफ दिखाई दे रहे हैं। जहां एक ओर विपक्ष इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बता रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ याचिकाकर्ता मतदाता सूची की शुद्धता को जरूरी बता रहे हैं।
विरोध में क्या कहा गया?
सामाजिक कार्यकर्ताओं अरशद अजमल और रूपेश कुमार द्वारा दायर याचिका में चुनाव आयोग के फैसले को मनमाना और असंवैधानिक बताया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नागरिकता, जन्म और निवास से जुड़े दस्तावेजों की अनिवार्यता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की मूल भावना के विरुद्ध है। उनके अनुसार, यह प्रक्रिया लोकतंत्र की मूल संरचना को कमजोर करती है और करोड़ों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकती है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी आयोग की इस प्रक्रिया को “त्रुटिपूर्ण और जनविरोधी” करार दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि यह कवायद मतदाताओं के नाम सूची से हटाने का एक सुनियोजित प्रयास है।
समर्थन में क्या कहा गया?
वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने इस प्रक्रिया के समर्थन में याचिका दाखिल करते हुए चुनाव आयोग को विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्देश देने की मांग की है। उनका तर्क है कि मतदाता सूची में केवल भारतीय नागरिकों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि अवैध विदेशी घुसपैठियों का प्रभाव चुनावों पर न पड़े।
उन्होंने यह भी दावा किया कि देश के करीब 200 जिलों और 1,500 तहसीलों में जनसांख्यिकी असामान्य रूप से बदल चुकी है, जिसके पीछे अवैध घुसपैठ, फर्जी धर्मांतरण और अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि जैसे कारण हैं।
क्या है मामला?
चुनाव आयोग बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कर रहा है। इसके अंतर्गत मतदाताओं से नए दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जिनमें आधार कार्ड और वोटर आईडी को वैध नहीं माना गया है। इस निर्णय के विरोध में कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं।
अगली सुनवाई और संभावित असर
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई आज हो रही है। फैसला जो भी हो, यह स्पष्ट है कि इससे न सिर्फ बिहार, बल्कि अन्य राज्यों में भी मतदाता पहचान और अधिकार को लेकर बड़ी बहस छिड़ सकती है।
यह मामला चुनाव सुधार, नागरिक अधिकार और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता से जुड़ा है, इसलिए अदालत की टिप्पणी और निर्णय दोनों ही महत्वपूर्ण होंगे।