
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि देश में तेजी से फैल रहे ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी एप्स को नियंत्रित करने के लिए वह क्या कदम उठा रही है। यह आदेश एक जनहित याचिका पर दिया गया, जिसमें ऑनलाइन सट्टेबाजी के कारण युवाओं और किशोरों के बीच बढ़ती आत्महत्याओं पर गहरी चिंता जताई गई है।
यह याचिका के. ए. पॉल द्वारा दाखिल की गई थी। उन्होंने अपनी दलीलों में कहा कि सट्टेबाजी एप्स का प्रचार फिल्मी सितारों, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और क्रिकेटरों द्वारा खुलेआम किया जा रहा है, जिससे बड़ी संख्या में बच्चे और युवा प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने अदालत को बताया कि विशेष रूप से तेलंगाना में इस लत के चलते 1,000 से अधिक आत्महत्या के मामले सामने आ चुके हैं।
सिर्फ कानून से नहीं रुकेगी सट्टेबाजी: सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने याचिका की गंभीरता को स्वीकार करते हुए कहा, “हम सैद्धांतिक रूप से इस बात से सहमत हैं कि सट्टेबाजी को रोका जाना चाहिए। लेकिन सिर्फ कानून बना देने से यह समस्या खत्म नहीं होगी — जैसे हत्या को कानून से पूरी तरह नहीं रोका जा सकता।”
कोर्ट ने इस सामाजिक विकृति पर कड़ा रुख अपनाते हुए माना कि यह युवाओं की मानसिक और सामाजिक स्थिति पर गंभीर प्रभाव डाल रही है और तत्काल ठोस नीति की जरूरत है। पीठ ने कहा कि यह सिर्फ एक कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का मामला है।
बॉलीवुड और क्रिकेटर निशाने पर
के. ए. पॉल ने कोर्ट में दलील दी कि करीब 25 बॉलीवुड और टॉलीवुड अभिनेता व इन्फ्लुएंसर इन सट्टेबाजी ऐप्स का प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि “मैं उन लाखों माता-पिता की तरफ से आया हूं जिनके बच्चों ने सट्टेबाजी की लत में अपनी जान गंवाई।”
पीठ ने माना कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि सट्टेबाजी को एक ग्लैमरस छवि दी जा रही है और बड़े नाम इसमें शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि वह ऐसे विज्ञापनों और प्रचार को रोकने के लिए क्या कदम उठा रही है।
संभावित प्रभाव और आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप से यह संभावना बढ़ी है कि केंद्र सरकार ऑनलाइन जुए और सट्टेबाजी को नियंत्रित करने के लिए सख्त दिशानिर्देश या विनियमन नीति लागू कर सकती है। इससे पहले तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों ने कुछ सट्टेबाजी ऐप्स पर पाबंदी लगाई थी, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कोई स्पष्ट नीति नहीं है।