
देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति केवल आस्था और वीरता तक सीमित नहीं, बल्कि इसमें सेवा और संवेदनशीलता की गहरी जड़ें भी बसी हुई हैं। इसका ताजा उदाहरण शनिवार को देखने को मिला जब पंडितवाड़ी, देहरादून निवासी 96 वर्षीय जबर सिंह रावत ने मुख्यमंत्री राहत कोष में ₹7 लाख की सहयोग राशि दान दी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुख्यमंत्री आवास पर भेंट करते हुए रावत ने यह राशि सौंपी। मुख्यमंत्री ने उनके इस योगदान को प्रेरणादायक बताते हुए भावपूर्ण शब्दों में सराहना की और उन्हें राज्य की ओर से धन्यवाद ज्ञापित किया।
“दान नहीं, समाज के प्रति जिम्मेदारी का प्रतीक”
मुख्यमंत्री धामी ने इस अवसर पर कहा,
“ रावत जी का यह कार्य न केवल एक दान है, बल्कि यह जीवनभर के अनुभव, संवेदना और समाज के प्रति जिम्मेदारी का प्रतीक है। 96 वर्ष की आयु में भी उनका यह जज़्बा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।”
मुख्यमंत्री ने उन्हें शॉल भेंट कर सम्मानित किया और कहा कि जब समाज का एक वरिष्ठ नागरिक इस स्तर पर सहयोग करता है, तो यह आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि कठिन समय में सभी को राज्य और समाज के साथ खड़ा होना चाहिए।
आपदा पुनर्निर्माण के लिए बड़ी मदद
इस समय उत्तराखंड प्राकृतिक आपदा के कठिन दौर से गुजर रहा है। सड़कों, पुलों, घरों और बुनियादी ढांचे को भारी क्षति पहुँची है। पुनर्निर्माण कार्य के लिए राज्य सरकार लगातार प्रयासरत है, लेकिन ऐसे समय में आम नागरिकों का सहयोग बेहद महत्वपूर्ण साबित होता है।
जबर सिंह रावत का यह योगदान न केवल आर्थिक सहयोग है, बल्कि यह राज्य के लिए सामूहिक उत्तरदायित्व और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक भी है।
प्रेरणा का जीवंत उदाहरण
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि उत्तराखंड की मिट्टी में केवल आस्था और वीरता ही नहीं, बल्कि सेवा और संवेदनशीलता की अमिट भावना भी रची-बसी है। जबर सिंह रावत इस भावना का जीवंत उदाहरण हैं।
उनके इस कदम से यह साबित होता है कि सेवा का जज़्बा उम्र का मोहताज नहीं है। 96 वर्ष की अवस्था में भी समाज के लिए इतना बड़ा योगदान देना आने वाली पीढ़ियों को निस्संदेह प्रेरणा देगा।
जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी
इस अवसर पर देहरादून कैंट क्षेत्र की विधायक सविता कपूर भी मौजूद रहीं। उन्होंने भी रावत के इस योगदान को सराहते हुए कहा कि यह कार्य पूरे राज्य के लिए गौरव की बात है।
यह समाचार केवल दान की खबर नहीं है, बल्कि उत्तराखंड की उस जीवंत परंपरा का चित्रण है जहाँ नागरिक संकट की घड़ी में समाज और राज्य के लिए हर संभव सहयोग देने से पीछे नहीं हटते।