
उत्तरकाशी : उत्तराखण्ड राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना के नेतृत्व में आयोग की एक टीम ने जनपद उत्तरकाशी में तीन दिवसीय प्रवास के दौरान जिला एवं ब्लॉक स्तरीय अधिकारियों के साथ व्यापक कार्यशालाओं का आयोजन किया। इन कार्यशालाओं का उद्देश्य बाल अधिकारों को लेकर स्थानीय प्रशासनिक तंत्र में संवेदनशीलता और ज़मीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना रहा।
कार्यशाला के दौरान अधिकारियों को 1098 चाइल्ड हेल्पलाइन, SCPCR, PTA, आपातकालीन नंबरों और बच्चों के अधिकारों से जुड़ी अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारियों से अवगत कराया गया। आयोग ने यह भी निर्देशित किया कि इन सूचनाओं वाले बोर्ड सभी विद्यालयों और सार्वजनिक स्थानों पर अनिवार्य रूप से चस्पा किए जाएँ।
प्राथमिकता में बच्चों की गरिमा, आयोग ने लिए गंभीर मामलों पर संज्ञान
प्रवास के दौरान आयोग को प्राप्त शिकायतों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए निरीक्षण भी किया गया। एक छात्रावास में प्रधानाचार्या एवं वार्डन द्वारा बच्चों के साथ मारपीट का मामला सामने आया। बच्चों ने आरोप लगाया कि निलंबित वार्डन अपने घर से फोन पर बातचीत के बाद अक्सर उनके साथ दुर्व्यवहार करती थीं।
फिलहाल वार्डन की अस्थाई नियुक्ति की गई है, लेकिन आयोग का मानना है कि किसी भी छात्रावास में कार्यरत कर्मियों की मानसिक, सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि की गहन जांच अनिवार्य होनी चाहिए। डॉ. गीता खन्ना ने कहा कि यह ज़िम्मेदारी केवल संवेदनशील और प्रशिक्षित महिलाओं को दी जानी चाहिए।
अनुसूचित जाति की बालिकाओं को स्कूल से निकाले जाने पर चिंता
कालसी ब्लॉक से मिली एक शिकायत में अनुसूचित जाति की कुछ छात्राओं को विद्यालय से निकाले जाने की जानकारी सामने आई। सामाजिक कल्याण विभाग के साथ आयोग की बैठक में यह स्पष्ट हुआ कि स्कूल अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित था, जबकि बालिकाएं अनुसूचित जाति की थीं।
आयोग का स्पष्ट मत है कि शिक्षा और मूलभूत अधिकारों के लिए इस प्रकार के कठोर सामाजिक वर्गीकरण उचित नहीं हैं। आयोग शीघ्र ही इस संदर्भ में पत्राचार कर संबंधित अधिकारियों के साथ नीतिगत संवाद करेगा।
छात्रावास में पेयजल संकट, बच्चों को 3 किलोमीटर दूर जाकर लाना पड़ता है पानी
कालसी ब्लॉक के एक नवनिर्मित छात्रावास का निरीक्षण करते हुए आयोग ने पेयजल की गंभीर कमी को चिन्हित किया। बच्चों को दैनिक कार्यों हेतु तीन किलोमीटर दूर गधेरे से पानी लाना पड़ता है। वर्तमान में जल आपूर्ति टैंकरों से की जा रही है, जो पूरी तरह अपर्याप्त है। आयोग ने इस पर संज्ञान लेते हुए उपजिलाधिकारी को आवश्यक कार्यवाही हेतु पत्र प्रेषित करने का निर्णय लिया है।
अधिकारियों, शिक्षकों व अभिभावकों के बीच संवेदनशीलता की ज़रूरत
डॉ. खन्ना ने स्पष्ट किया कि बाल अधिकारों को लेकर शिक्षकों, अभिभावकों और पंचायत प्रतिनिधियों में जागरूकता की आवश्यकता है। आयोग निकट भविष्य में ब्लॉक स्तर पर इस तरह की कार्यशालाओं और संवाद कार्यक्रमों का और अधिक विस्तार करेगा, ताकि बच्चों के अधिकार सुरक्षित और संरक्षित रह सकें।