
नई दिल्ली, 19 अगस्त 2025 (नेशनल डेस्क): उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी अपने चरम पर है। एनडीए ने जहां तमिलनाडु के नेता सी.पी. राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है, वहीं विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने बड़ा दांव चलते हुए पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इस फैसले ने मुकाबले को रोचक बना दिया है, क्योंकि विपक्ष ने पहली बार किसी पूर्व न्यायाधीश को इस शीर्ष संवैधानिक पद के लिए नामित किया है।
जस्टिस रेड्डी का न्यायिक करियर
जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी का जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ था। उन्होंने उस दौर में कानून की पढ़ाई की, जब भारतीय न्यायपालिका सामाजिक और संवैधानिक मूल्यों की नई व्याख्याएँ खोज रही थी। वे आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने।
उनका कार्यकाल यादगार इसलिए माना जाता है क्योंकि उन्होंने कई ऐसे मामलों की सुनवाई की, जिनका सीधा संबंध आम जनता के अधिकारों, सामाजिक न्याय और संवैधानिक सिद्धांतों से था। उनकी न्यायिक शैली में स्पष्टता, गहराई और संवेदनशीलता झलकती थी।
महत्वपूर्ण फैसले और छाप
जस्टिस रेड्डी उन न्यायाधीशों में गिने जाते हैं जिन्होंने संविधान की आत्मा को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मानवाधिकार, पर्यावरण संरक्षण, अल्पसंख्यकों के अधिकार और शासन की पारदर्शिता से जुड़े मामलों में ऐतिहासिक टिप्पणियाँ कीं।
विशेषकर, उनके फैसले धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर न्यायपालिका के दृष्टिकोण को मजबूत बनाते हैं। यही कारण है कि विधिक जगत में उन्हें एक प्रगतिशील और दूरदर्शी न्यायाधीश के तौर पर याद किया जाता है।
राजनीति में आने का सफर
न्यायिक सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद जस्टिस रेड्डी ने सक्रिय राजनीति से दूरी बनाई, लेकिन वे हमेशा लोकतंत्र, संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक सरोकारों पर मुखर रहे। वे सार्वजनिक मंचों पर लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की पैरवी करते रहे।
उनका नाम विपक्ष द्वारा उपराष्ट्रपति पद के लिए आगे करना, दरअसल एक रणनीतिक और प्रतीकात्मक फैसला माना जा रहा है। विपक्ष यह संदेश देना चाहता है कि उसकी लड़ाई केवल सत्ता की नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा की भी है।
एनडीए बनाम इंडिया: चुनावी तस्वीर
राजनीतिक समीकरण देखें तो एनडीए के पास निर्वाचक मंडल में स्पष्ट बहुमत है और इस लिहाज से राधाकृष्णन की जीत लगभग तय मानी जा रही है। लेकिन विपक्ष का यह कदम चुनाव को एक विचारधारात्मक लड़ाई में बदल देता है।
एनडीए जहां ओबीसी और दक्षिण भारत को साधने की कोशिश कर रहा है, वहीं विपक्ष ने न्यायपालिका से जुड़े एक चेहरे को सामने लाकर लोकतंत्र और संविधान की रक्षा का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की है।
विपक्ष का संदेश
जस्टिस रेड्डी का नाम सामने रखकर विपक्ष ने न केवल दक्षिण भारत से तालमेल साधा है, बल्कि उन वर्गों को भी साधने की रणनीति बनाई है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती को लेकर चिंतित हैं। यह कदम विपक्ष के लिए भले ही जीत की गारंटी न हो, लेकिन एक राजनीतिक और नैतिक संदेश जरूर देता है।
उपराष्ट्रपति पद का चुनाव नतीजों के लिहाज से शायद पहले ही तय माना जा रहा हो, लेकिन विपक्ष द्वारा पूर्व जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाए जाने से यह चुनाव सिर्फ एक औपचारिकता नहीं रह गया है। अब यह मुकाबला संविधान, न्यायपालिका और लोकतंत्र की रक्षा बनाम राजनीतिक बहुमत की जंग के रूप में देखा जाएगा।