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Uttarakhand: ‘अधिकारी आंखों के सामने अतिक्रमण देखते रहे और हम मूकदर्शक नहीं रहेंगे’: वन भूमि कब्जे पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को लताड़ा

नई दिल्ली | 23 दिसंबर, 2025 देश की सर्वोच्च अदालत ने उत्तराखंड में वन भूमि पर बढ़ते अवैध कब्जों को लेकर राज्य सरकार के प्रति बेहद सख्त रुख अख्तियार किया है। सोमवार को एक अहम सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि अधिकारी अपनी आंखों के सामने जंगल की जमीन को लुटते हुए ‘मूकदर्शक’ बनकर देख रहे हैं। न्यायालय ने इस मामले में स्वतः संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए मुख्य सचिव को कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी: ‘यह चौंकाने वाला है’

जस्टिस सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की अवकाशकालीन पीठ ने अनीता कांडवाल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य का प्रशासन अतिक्रमण रोकने में पूरी तरह विफल रहा है। पीठ ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा:

“हमारे लिए सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि उत्तराखंड सरकार और उसके जिम्मेदार अधिकारी वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमण को चुपचाप देख रहे हैं। जब प्रशासन कुछ नहीं कर रहा, तो अदालत को खुद संज्ञान लेकर हस्तक्षेप करना पड़ रहा है।”

मुख्य सचिव को ‘फैक्ट फाइंडिंग कमेटी’ बनाने का निर्देश

अदालत ने केवल मौखिक फटकार ही नहीं लगाई, बल्कि उत्तराखंड के मुख्य सचिव (Chief Secretary) और प्रधान वन संरक्षक को एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित करने का आदेश दिया है। इस समिति की जिम्मेदारी होगी कि वह अतिक्रमण के वास्तविक तथ्यों का पता लगाए और विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे।

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्देश:

  1. निर्माण पर रोक: विवादित वन भूमि पर किसी भी प्रकार के नए निर्माण कार्य को तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया है।

  2. तीसरे पक्ष के अधिकार पर प्रतिबंध: निजी पक्षों को इस भूमि से जुड़ा कोई भी ‘थर्ड पार्टी राइट’ बनाने की अनुमति नहीं होगी।

  3. वन विभाग का कब्जा: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिन जमीनों पर वर्तमान में आवासीय मकान नहीं हैं, ऐसी सभी खाली पड़ी वन भूमि पर वन विभाग तत्काल अपना कब्जा वापस लेगा।

इस मामले की अगली सुनवाई अब सर्दियों की छुट्टियों के बाद निर्धारित की गई है।


ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) के संरक्षण पर भी सख्त निर्देश

वन भूमि के मुद्दे के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने लुप्तप्राय पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB), जिसे स्थानीय भाषा में ‘गोडावण’ कहा जाता है, के संरक्षण को लेकर भी ऐतिहासिक निर्देश जारी किए हैं।

अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं पर प्रतिबंध: राजस्थान में इस दुर्लभ पक्षी की आबादी को बचाने के लिए शीर्ष अदालत ने राज्य में भविष्य की अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy) परियोजनाओं पर कुछ कड़े प्रतिबंधों को मंजूरी दी है। कोर्ट का मानना है कि बिजली की हाई-वोल्टेज तारें इन पक्षियों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि गोडावण के प्राकृतिक आवास (Habitat) वाले क्षेत्रों में पर्यावरण सुरक्षा के कड़े मानकों का पालन किया जाए।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इन दो बड़े फैसलों से स्पष्ट है कि न्यायपालिका अब पर्यावरणीय संरक्षण और सार्वजनिक भूमि की सुरक्षा को लेकर बेहद गंभीर है। उत्तराखंड सरकार के लिए यह आदेश एक बड़ी चेतावनी है कि वह जंगलों की सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाए, अन्यथा उसे भविष्य में और अधिक कड़े न्यायिक परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।

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