
नई दिल्ली: देश के 15वें उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में एनडीए उम्मीदवार और महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे सीपी राधाकृष्णन को विजेता घोषित किया गया है। उन्हें 452 वोट मिले, जबकि इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट ही हासिल हो पाए। नतीजों के ऐलान के साथ ही भारतीय राजनीति में नई बहस छिड़ गई है, क्योंकि यह चुनाव साफ तौर पर क्रॉस वोटिंग की तरफ इशारा कर रहा है।
कांग्रेस को अपेक्षा से कम वोट
कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन का दावा था कि उनके पास 315 सांसदों का समर्थन है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने वोटिंग से पहले कहा था कि विपक्ष पूरी तरह एकजुट है और सभी सांसदों ने मतदान किया। लेकिन नतीजों में सुदर्शन रेड्डी को केवल 300 वोट मिले। यह सवाल खड़ा हो गया है कि विपक्षी खेमे से कम से कम 15 वोट क्यों गायब हो गए?
एनडीए को 14 अतिरिक्त वोट कैसे मिले?
इस चुनाव में एनडीए के पास 427 पक्के वोट थे। इसके अलावा वाईएसआरसीपी (YSRCP) के 11 सांसदों ने भी एनडीए का समर्थन किया था। यानी कुल संख्या 438 होनी चाहिए थी। लेकिन नतीजों में सीपी राधाकृष्णन को 452 वोट मिले। इसका साफ मतलब है कि एनडीए के पक्ष में 14 अतिरिक्त वोट आए हैं। यह संकेत देता है कि विपक्षी खेमे से कई सांसदों ने पार्टी लाइन से हटकर वोट डाला।
15 निरस्त वोटों ने बढ़ाई सियासी साज़िश की सुगबुगाहट
राज्यसभा के महासचिव पीसी मोदी ने नतीजे घोषित करते समय बताया कि इस चुनाव में 15 वोट निरस्त भी किए गए। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि क्या ये वोट जानबूझकर अमान्य कराए गए थे? कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि “वोटिंग प्रक्रिया में तकनीकी गड़बड़ियां विपक्ष के खिलाफ गईं।” हालांकि निर्वाचन प्रक्रिया की गोपनीयता के कारण किसी भी सांसद की पहचान सामने नहीं लाई जा सकती।
क्रॉस वोटिंग पर पुराना इतिहास
भारत में उच्च संवैधानिक पदों के चुनावों में क्रॉस वोटिंग कोई नई बात नहीं है। इससे पहले 2022 में उपराष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को अपेक्षा से कम वोट मिले थे। उस समय भी यह चर्चा रही थी कि विपक्ष के भीतर से कई सांसदों ने एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को वोट दे दिया था।
विपक्षी एकता पर गहराए सवाल
इस नतीजे ने विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस की कोशिशों के बावजूद नतीजों में उनके वोट कम हुए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्षी दलों के भीतर असंतोष और मतभेद अब खुलकर सामने आने लगे हैं। कुछ क्षेत्रीय दलों के सांसदों ने पार्टी लाइन तोड़ी है, जिससे गठबंधन की विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है।
सीपी राधाकृष्णन की जीत का राजनीतिक संदेश
सीपी राधाकृष्णन की शानदार जीत एनडीए के लिए राजनीतिक मनोबल बढ़ाने वाली उपलब्धि मानी जा रही है। इससे सरकार को संसद के ऊपरी सदन में भी मजबूती मिलेगी। साथ ही यह नतीजा विपक्ष के लिए चेतावनी है कि 2024 के बाद से चली आ रही एकजुटता की रणनीति आंतरिक कलह और अनुशासनहीनता की वजह से कमजोर हो सकती है।
अब सबकी नजर इस बात पर होगी कि कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक इस हार को कैसे संभालते हैं। क्या वे उन दलों या सांसदों की पहचान कर पाएंगे जिन्होंने क्रॉस वोटिंग की, या फिर यह मामला राजनीतिक चर्चाओं तक सीमित रह जाएगा? फिलहाल इतना तय है कि उपराष्ट्रपति चुनाव ने भारतीय राजनीति को एक बार फिर क्रॉस वोटिंग की पुरानी बहस पर ला खड़ा किया है।