
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता और दिल्ली की राजनीति के दिग्गज चेहरे विजय कुमार मल्होत्रा का आज सुबह निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में उनका इलाज चल रहा था, जहां शनिवार सुबह करीब 6 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
मल्होत्रा का निधन भारतीय राजनीति, खासकर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की राजनीति के लिए एक युगांतकारी क्षण है। वे न केवल भाजपा बल्कि उससे पहले जनसंघ के दौर से ही राजनीति में सक्रिय रहे और अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेताओं के करीबी सहयोगी रहे।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत और जनसंघ से नाता
विजय कुमार मल्होत्रा का जन्म 3 दिसंबर 1931 को लाहौर में हुआ था। उस समय लाहौर अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत का हिस्सा था। स्वतंत्रता और विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। प्रारंभिक दौर में ही उन्होंने राजनीति और समाजसेवा को अपना जीवन-ध्येय बना लिया।
साल 1967 में वे दिल्ली नगर निगम के मुख्य कार्यकारी पार्षद निर्वाचित हुए। इसके बाद वे सक्रिय राजनीति में तेजी से आगे बढ़े। 1972 से 1975 तक उन्होंने दिल्ली प्रदेश जनसंघ की कमान संभाली और संगठन को मजबूती दी।
भाजपा के शुरुआती दौर में अहम जिम्मेदारियां
जनसंघ से भाजपा में रूपांतरण के बाद मल्होत्रा ने पार्टी संगठन को खड़ा करने में बड़ा योगदान दिया। 1977 से 1980 और फिर 1980 से 1984 तक वे दो बार दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष चुने गए। इस दौरान उन्होंने पार्टी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अथक परिश्रम किया।
उनका नाम दिल्ली में भाजपा के तीन बड़े स्तंभों में गिना जाता रहा—मदन लाल खुराना, केदारनाथ साहनी और विजय कुमार मल्होत्रा। इस त्रिकोण ने दिल्ली में भाजपा को स्थापित करने और कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी को कड़ी चुनौती देने में अहम भूमिका निभाई।
विधानसभा और लोकसभा में लंबा कार्यकाल
विजय कुमार मल्होत्रा का राजनीतिक करियर बेहद समृद्ध और बहुआयामी रहा। वे पांच बार सांसद और दो बार विधायक चुने गए। दिल्ली विधानसभा और संसद, दोनों जगह उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।
2008 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। हालांकि, उस चुनाव में पार्टी सत्ता में नहीं आ सकी, लेकिन मल्होत्रा की स्वीकार्यता और नेतृत्व क्षमता को लेकर पार्टी के भीतर कोई सवाल नहीं था।
मनमोहन सिंह को दी थी चुनावी हार
मल्होत्रा के राजनीतिक जीवन का एक बेहद चर्चित अध्याय 1999 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा है। दक्षिण दिल्ली सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को हराया था।
इस चुनाव में डॉ. सिंह को करीब 30,000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। परिणामों के अनुसार, विजय कुमार मल्होत्रा को 2,61,230 वोट मिले थे, जबकि डॉ. मनमोहन सिंह को 2,31,231 वोट मिले। यह जीत भाजपा और खुद मल्होत्रा के राजनीतिक जीवन में एक ऐतिहासिक पड़ाव साबित हुई।
बेदाग और स्वच्छ छवि वाले नेता
विजय कुमार मल्होत्रा का पूरा राजनीतिक जीवन बेदाग और स्वच्छ छवि का उदाहरण माना जाता रहा। उन्होंने सदैव सादगी और ईमानदारी को प्राथमिकता दी। पार्टी और संगठन में उनकी पहचान एक सुलझे हुए नेता, अनुभवी मार्गदर्शक और कार्यकर्ताओं के संरक्षक के रूप में रही।
संगठनात्मक कामकाज हो या चुनावी राजनीति—मल्होत्रा हर स्तर पर सक्रिय रहे। यही कारण है कि दिल्ली भाजपा में उन्हें हमेशा “गाइडिंग फोर्स” माना जाता था।
संगठन और नेतृत्व में गहरी पकड़
भाजपा के शुरुआती वर्षों में जब पार्टी मजबूत आधार तलाश रही थी, तब विजय कुमार मल्होत्रा ने अपने अनुभव और नेतृत्व क्षमता से संगठन को दिशा दी। अटल-आडवाणी की टीम में वे भरोसेमंद सहयोगी रहे। दिल्ली की राजनीति में भाजपा को जमीन पर खड़ा करने और कांग्रेस को चुनौती देने में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा।
राजनीतिक और सामाजिक जगत में शोक की लहर
विजय कुमार मल्होत्रा के निधन की खबर से भाजपा और राजनीतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा है कि मल्होत्रा का जाना भाजपा के लिए ही नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के लिए भी अपूरणीय क्षति है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और दिल्ली भाजपा के नेताओं ने कहा कि “विजय कुमार मल्होत्रा पार्टी के उन नेताओं में से थे जिन्होंने अपने जीवन का हर क्षण संगठन और राष्ट्र को समर्पित किया। उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।”
92 वर्ष की लंबी उम्र जीकर विजय कुमार मल्होत्रा ने भारतीय राजनीति में एक ऐसी विरासत छोड़ी है, जिसे आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी। जनसंघ से लेकर भाजपा तक का उनका सफर न केवल संगठन के लिए प्रेरणादायी है बल्कि राजनीति में ईमानदारी और सादगी की मिसाल भी है।
उनकी उपलब्धियां, चुनावी जीत-हार और संगठनात्मक क्षमता यह दर्शाती है कि वे सिर्फ एक नेता नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत थे। आज उनका निधन भारतीय लोकतंत्र और खासतौर पर दिल्ली की राजनीति के लिए एक युगांतकारी घटना है।