
देहरादून/हरिद्वार: इस वर्ष दीपावली किस दिन मनाई जाए — 20 अक्टूबर को या 21 अक्टूबर को — इसे लेकर लोगों में कन्फ्यूजन बना हुआ था। देशभर के पंचांगों में तारीखों को लेकर मतभेद के चलते आमजन ही नहीं, कई धार्मिक संगठनों में भी असमंजस की स्थिति थी। लेकिन अब देवभूमि उत्तराखंड के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों और तीर्थपुरोहितों ने इस संशय को खत्म कर दिया है। हरिद्वार और ऋषिकेश के पंडितों ने सर्वसम्मति से कहा है कि मुख्य दीपावली 21 अक्टूबर, सोमवार को ही मनाई जाएगी।
हरिद्वार के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज त्रिपाठी का कहना है कि इस बार अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर की रात से शुरू होकर 21 अक्टूबर की रात्रि तक रहेगी। ग्रह-नक्षत्रों की सटीक गणना के अनुसार 21 अक्टूबर को सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त के बाद तक तीन-चौथाई पहर अमावस्या रहने के कारण उसी दिन लक्ष्मी-गणेश पूजन और दीपोत्सव करना ही शुभ और फलदायी रहेगा।
ऋषिकेश के पंडितों ने भी दी पुष्टि
ऋषिकेश त्रिवेणी संगम पर पूजा-अर्चना कराने वाले वरिष्ठ तीर्थपुरोहित पंडित वेदप्रकाश शर्मा ने कहा कि इस वर्ष दिवाली की तारीख को लेकर जो भ्रम की स्थिति बनी थी, वह अब समाप्त हो गई है। उन्होंने कहा,
“21 अक्टूबर को अमावस्या पूर्ण रूप से विद्यमान रहेगी और यह तिथि दीपोत्सव के सभी पारंपरिक विधान के अनुरूप है। अतः दीपावली 21 अक्टूबर को ही मनाई जानी चाहिए।”
पंडित शर्मा ने बताया कि दीपावली सनातन धर्मावलंबियों के लिए केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि धन, सौभाग्य, प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का उत्सव है। इस दिन अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक दीप प्रज्वलित किए जाते हैं, जो जीवन में आशा और समृद्धि का संदेश देते हैं।
हरिद्वार के विद्वानों ने दी ज्योतिषीय व्याख्या
हरिद्वार के प्रसिद्ध पंडित उज्जवल शास्त्री ने बताया कि पंचांग निर्माताओं की गणना के अनुसार 21 अक्टूबर की रात्रि प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त सर्वोत्तम रहेगा। उन्होंने कहा कि सूर्यास्त के बाद भले प्रदोष काल अल्प समय का हो, लेकिन 2 घंटे 24 मिनट का शुभ काल प्राप्त होगा, जो पूजन के लिए पर्याप्त और अत्यंत शुभदायी है।
उन्होंने आगे कहा कि दीपावली पर व्यक्ति चाहे मंत्र साधना, तंत्र साधना, या परिवार कल्याण के लिए पूजन करे — यह सभी विधियाँ 21 अक्टूबर को ही उत्तम फल देने वाली रहेंगी।
वहीं, हरिद्वार के ही पंडित गोपाल पटवार ने कहा कि दीपावली सिर्फ एक दिन का पर्व नहीं, बल्कि पांच दिवसीय उत्सव श्रृंखला का प्रमुख केंद्र है।
“19 अक्टूबर को धनतेरस, 20 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी, 21 अक्टूबर को दीपावली, 22 अक्टूबर को गोवर्धन पूजन और 23 अक्टूबर को भाई दूज मनाई जाएगी,”
उन्होंने कहा, “ये पांचों पर्व धार्मिक दृष्टि से परस्पर जुड़े हुए हैं और इनकी यही तिथियाँ सर्वसम्मत रूप से मान्य हैं।”
दिवाली पूजन की विधि — कब और कैसे करें पूजा
ज्योतिषाचार्य मनोज त्रिपाठी ने बताया कि लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 21 अक्टूबर की शाम 6:02 से 8:26 बजे तक रहेगा। उन्होंने कहा कि दीपावली के दिन सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन अवश्य करना चाहिए क्योंकि वे विघ्नहर्ता हैं और उनके पूजन के बिना कोई भी मंगल कार्य सफल नहीं होता।
पंडित त्रिपाठी के अनुसार —
“केवल लक्ष्मी जी का पूजन करने से धन तो प्राप्त होता है, परंतु स्थायी सुख और शांति नहीं मिलती। इसलिए गणेश और लक्ष्मी दोनों का संयुक्त पूजन ही पूर्ण फल देने वाला होता है।”
उन्होंने यह भी बताया कि घर की उत्तर-पूर्व दिशा में स्वच्छ और पवित्र स्थान पर पूजा की वेदी सजानी चाहिए। मां लक्ष्मी को कमल पुष्प, श्वेत वस्त्र, सुगंधित धूप और दीप अर्पित करना शुभ होता है। पूजन के समय खील-बताशे, मिठाई और खिलौनों का प्रसाद श्रेष्ठ माना गया है।
किस प्रतिमा से करें पूजन — मिट्टी या चांदी की?
पंडित मनोज त्रिपाठी के अनुसार, पूजन के लिए मिट्टी या चांदी की लक्ष्मी-गणेश प्रतिमाएँ सबसे शुभ मानी जाती हैं। पूजा से पहले इन मूर्तियों को स्नान कराकर शुद्ध वस्त्र पहनाएं और श्रद्धा से स्थापित करें। उन्होंने कहा कि कुछ लोग इस दिन कुबेर, महालक्ष्मी, कलम-दवात और काली मां की भी पूजा करते हैं, जो व्यापारी वर्ग के लिए विशेष फलदायी होती है।
त्रिपाठी ने बताया कि इस वर्ष अमावस्या तिथि मंगल के शुभ योग में पड़ रही है, जिससे धन और संपत्ति की प्राप्ति के लिए यह दिवाली अत्यंत शुभ और सिद्धिदायक है। ग्रहों की स्थिति ऐसी है कि इस दिन किए गए दान, दीपदान और लक्ष्मी पूजन से दीर्घकालिक लाभ प्राप्त होगा।
पंडितों ने दी सावधानियों की सलाह
ज्योतिषाचार्यों ने दीपावली के अवसर पर कुछ सावधानियाँ भी बताई हैं। उन्होंने कहा कि पूजन से पहले घर को साफ-सुथरा और दीपों से सजाना आवश्यक है, क्योंकि स्वच्छता में ही लक्ष्मी का वास माना जाता है। पूजा के दौरान किसी भी प्रकार की जल्दबाजी या अधूरापन न हो, अन्यथा पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता।
पंडितों ने यह भी कहा कि लक्ष्मी पूजन के बाद दीप जलाकर घर के प्रत्येक कोने में रखना चाहिए ताकि अंधकार, नकारात्मकता और दरिद्रता का नाश हो सके।
देवभूमि के पंडितों ने खत्म किया भ्रम
हरिद्वार और ऋषिकेश के तीर्थपुरोहितों का मानना है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में ज्योतिषीय सूचनाओं की अपूर्ण या भ्रमित व्याख्या से लोगों में भ्रम फैलता है। इसलिए धार्मिक परंपराओं और पंचांगों की सटीक गणना को समझना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के मंदिरों और तीर्थस्थलों में दिवाली की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं। हरिद्वार के हर-की-पौड़ी, ऋषिकेश त्रिवेणी संगम, बदरीनाथ और केदारनाथ मंदिरों में विशेष दीपमालाएँ सजाई जाएँगी।
ज्योतिषाचार्यों के स्पष्टीकरण के बाद अब लोगों में कोई संशय नहीं है। देवभूमि के पुरोहितों की राय के अनुसार, मुख्य दीपावली 21 अक्टूबर (सोमवार) को ही मनाई जाएगी। इस दिन देशभर में लक्ष्मी-गणेश पूजन, दीपदान और उत्सव का आयोजन परंपरागत विधि से किया जाएगा।
पंडित मनोज त्रिपाठी ने कहा —“यह दिवाली सिर्फ दीपों का नहीं, बल्कि उम्मीद, सौहार्द और समृद्धि का पर्व है। अमावस्या और मंगल के शुभ योग से यह वर्ष सभी के लिए सुख-समृद्धि लेकर आएगा।”