
देहरादून। उत्तराखंड में मानव–वन्यजीव संघर्ष के लगातार बढ़ते मामलों ने राज्य सरकार को कठोर और त्वरित कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गुरुवार को सचिवालय में वन विभाग की विस्तृत समीक्षा बैठक की, जिसमें न केवल संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा व्यवस्था को पूरी तरह नया ढांचा देने का निर्णय लिया गया, बल्कि विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही भी स्पष्ट रूप से तय कर दी गई। बैठक का सबसे बड़ा निर्णय पौड़ी जनपद के डीएफओ को तत्काल प्रभाव से हटाने का रहा, जो हाल के दिनों में क्षेत्र में बढ़ती घटनाओं के बीच सरकार की कड़ी नाराज़गी को दर्शाता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामलों में किसी तरह की लापरवाही स्वीकार्य नहीं है और किसी भी सूचना पर प्रतिक्रिया 30 मिनट के भीतर होनी चाहिए। इसके साथ-साथ मुख्यमंत्री ने वन विभाग और जिला प्रशासन को मिलकर उन क्षेत्रों की विशेष पहचान करने को कहा जहाँ वन्यजीवों की आवाजाही ग्रामीणों के लिए दैनिक जोखिम बन चुकी है।
संवेदनशील क्षेत्रों में स्कूल बच्चों के लिए एस्कॉर्ट सेवा — ऐतिहासिक निर्णय
बैठक में लिया गया सबसे मानवीय और दूरगामी प्रभाव वाला निर्णय यह रहा कि जिन क्षेत्रों में जंगली जानवरों का आतंक अधिक है, वहाँ स्कूल जाने वाले बच्चों को एस्कॉर्ट सुविधा दी जाएगी। वनकर्मियों और जिला प्रशासन की संयुक्त टीम बच्चों को स्कूल से लाने–ले जाने में सहयोग करेगी।
यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बीते दो वर्षों में पर्वतीय जिलों में कई घटनाएँ सामने आई हैं, जिनमें जंगल के किनारे बसे गाँवों में पढ़ाई करने वाले बच्चे अक्सर गुलदार और काले भालू जैसे वन्यजीवों के खतरे से जूझते रहे हैं। कई परिवारों ने डर के कारण अपने बच्चों को स्कूल भेजना तक बंद कर दिया था। सरकार का यह निर्णय न केवल सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करेगा, बल्कि ग्रामीण इलाकों में शिक्षा व्यवस्था को भी स्थिर करेगा।
पौड़ी में बढ़ती घटनाओं पर सख्त रुख — डीएफओ हटाए गए
पौड़ी जनपद में पिछले दिनों गुलदार के हमलों की लगातार घटनाओं ने प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए थे। मुख्यमंत्री धामी ने बैठक में इन घटनाओं का संज्ञान लेते हुए पौड़ी के डीएफओ को तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश दिए। यह कदम स्पष्ट संदेश देता है कि सरकार अब इस मुद्दे को “प्राथमिकता से भी ऊपर” रखकर देख रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन जिलों में ऐसे मामले अधिक हैं, वहाँ रेंजर से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों तक की जवाबदेही तय की जाएगी। “लोगों की सुरक्षा से बड़ा कोई विषय नहीं,” उन्होंने बैठक के दौरान कहा।
सूचना मिलते ही 30 मिनट में टीम मौके पर पहुँचे — सख्त निर्देश
मुख्यमंत्री धामी ने निर्देश दिया कि ग्रामीणों की ओर से किसी भी प्रकार की सूचना — चाहे वह जंगली जानवर के देखे जाने की हो या हमले की — मिलने पर वन विभाग की टीम अधिकतम 30 मिनट में घटना स्थल पर पहुँचे। इसके लिए:
- कंट्रोल रूम को और सशक्त किया जाएगा
- वनकर्मियों के मोबाइल ट्रैकिंग और लोकेशन मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किया जाएगा
- प्रत्येक बीट में गश्त की संख्या बढ़ाई जाएगी
उन्होंने कहा कि “इंसीडेंट रिस्पॉन्स टाइम” राज्य में वन्यजीव प्रबंधन का नया पैमाना होगा।
वन्यजीव प्रभावित परिवारों के लिए नई आजीविका सुरक्षा नीति — दो सप्ताह में तैयार होगी
सरकार उन परिवारों को राहत देने के लिए नई नीति बनाने जा रही है, जिनका कमाने वाला सदस्य मानव-वन्यजीव संघर्ष में मारा जाता है। मुख्यमंत्री ने वन विभाग को निर्देश दिया कि दो सप्ताह के भीतर ऐसी नीति तैयार की जाए, जिसके तहत:
- परिवार को तत्काल आर्थिक सहायता मिले
- रोजगार या आजीविका सुनिश्चित की जा सके
- बच्चों की शिक्षा बाधित न हो
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से स्वचालित लिंक मिले
यह नीति उत्तराखंड में पहली बार इतनी व्यापक रूप से बनाई जा रही है और इससे सैकड़ों प्रभावित परिवारों को राहत मिलने की उम्मीद है।
गांवों के आसपास झाड़ियों की सफाई का अभियान तेज — स्थायी समाधान की ओर कदम
मुख्यमंत्री धामी ने स्पष्ट कहा कि जंगलों से लगे गाँवों के आसपास घनी झाड़ियाँ और बिखरी वनस्पति जंगली जानवरों के छिपने और अचानक हमले की घटनाओं को बढ़ाती हैं। इसलिए उन्होंने निर्देश दिए कि:
- आबादी के निकट सभी झाड़ियों की अभियान चलाकर सफाई की जाए
- इसके लिए विशेष टीमें गठित की जाएँ
- ग्राम पंचायतों और वन विभाग के बीच समन्वय बढ़ाया जाए
उन्होंने कहा कि “वन्यजीवों को आबादी क्षेत्र में आने से रोकने के लिए स्थायी समाधान पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है।”
संवेदनशील क्षेत्रों में कैमरों की तैनाती और डिजिटल निगरानी को प्राथमिकता
वन विभाग को निर्देश दिया गया कि हॉटस्पॉट माने जाने वाले इलाकों में सर्विलांस सिस्टम और उच्च गुणवत्ता वाले कैमरों की संख्या बढ़ाई जाए। डिजिटल मॉनिटरिंग के तहत:
- मूवमेंट ट्रैकिंग
- नाइट विज़न कैमरे
- GPS सपोर्ट वाले पेट्रोलिंग सिस्टम
- बीट पर तैनात वनकर्मियों की लोकेशन रिपोर्टिंग
जैसी तकनीकों को अपनाने पर जोर दिया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि तकनीक के बिना संघर्ष को नियंत्रित करना मुश्किल है, इसलिए आधुनिक निगरानी तंत्र को प्राथमिकता दी जाएगी।
ग्रामीणों के साथ निरंतर संवाद और जागरूकता पर जोर
सरकार ने साफ किया है कि वन्यजीव संघर्ष सिर्फ प्रशासनिक या तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि सामुदायिक सहभागिता का विषय भी है। इसलिए वनकर्मियों को ग्रामीणों से नियमित संवाद बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं।
विशेष रूप से:
- महिलाओं को सावधानी और सुरक्षा के उपाय बताए जाएँ
- बच्चों को खतरे की पहचान करना सिखाया जाए
- जंगल के किनारे बसे परिवारों को अलर्ट सिस्टम से जोड़ा जाए
बैठक में मौजूद रहे वरिष्ठ अधिकारी
उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक में वन मंत्री सुबोध उनियाल, प्रमुख सचिव आर.के. सुधांशु, सचिव शैलेश बगोली, सचिव विनय शंकर पांडेय, प्रमुख वन संरक्षक रंजन मिश्रा और अपर सचिव हिमांशु खुराना उपस्थित थे। अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को वर्तमान स्थिति, चुनौतियों और आगामी कार्ययोजना के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
निष्कर्ष
उत्तराखंड सरकार के ये कदम जंगली जानवरों के बढ़ते खतरे को देखते हुए अत्यंत आवश्यक और दूरगामी प्रभाव वाले हैं। स्कूली बच्चों के लिए एस्कॉर्ट सुविधा, पौड़ी के डीएफओ का हटाया जाना, तत्काल प्रतिक्रिया व्यवस्था, नई आजीविका नीति और झाड़ियों की सफाई जैसे निर्णय सरकार के सक्रिय और संवेदनशील दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। इन कदमों से न केवल ग्रामीणों की सुरक्षा बढ़ेगी, बल्कि राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने के लिए एक मजबूत, व्यवस्थित और तकनीक-आधारित मॉडल विकसित होगा।



