
मुंबई, 31 जुलाई | विशेष संवाददाता: 2008 के मालेगांव बम धमाकों के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में साफ किया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा।
कोर्ट ने क्या कहा?
विशेष न्यायाधीश A.K. लोहाटी की अदालत ने कहा कि घटना स्थल पर जो मोटरसाइकिल बरामद हुई, उसे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की होने के प्रमाण नहीं हैं।
- मोटरसाइकिल का चेसिस नंबर जानबूझकर मिटाया गया था, इंजन नंबर भी संदेह के घेरे में रहा।
- अदालत ने कहा कि RDX लाने, रखने या ब्लास्ट में उसका इस्तेमाल करने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला।
- अभियोजन यह भी साबित नहीं कर पाया कि बम किसने असेंबल किया, न ही घटनास्थल से कोई फिंगरप्रिंट, DNA सैंपल या खाली कारतूस बरामद हुए।
यूएपीए और साजिश के आरोप भी खारिज
कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि यूएपीए (UAPA) के तहत लगाए गए आतंकवाद और आपराधिक साजिश के आरोपों को भी निराधार और अस्थिर पाया गया।
इस आधार पर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को पूर्ण सम्मान के साथ बरी कर दिया गया।
🧘♀️ “एक साध्वी को आतंकवादी बना दिया गया” — अदालत में फूट-फूटकर रोईं प्रज्ञा ठाकुर
फैसले के बाद कोर्ट में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भावुक हो उठीं। उन्होंने कहा,
“मुझे 13 दिन तक टॉर्चर किया गया, बहुत अपमान सहा।
एक साध्वी को आतंकवादी बना दिया गया।
मैं 17 साल से संघर्ष कर रही थी।”
उन्होंने अदालत से कहा कि
“जो लोग कानून की आड़ में हमारे साथ अन्याय कर रहे थे, उनके ख़िलाफ़ भी कुछ नहीं बोल सकती। लेकिन आप (कोर्ट) ने हमारे दुःख को समझा। ये मेरा नहीं, भगवा का न्याय है।”
“भगवा की जीत, हिंदुत्व की विजय”
अदालत में अपनी भावनाएं साझा करते हुए साध्वी ने कहा:
“इस केस का फैसला मेरे जीवन की तपस्या का सार है।
जो लोग ‘हिंदू आतंकवाद’ और ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द बोले थे,
वे अब इस फैसले को देख लें।
आज भगवा सम्मानित हुआ है।”
क्या था 2008 का मालेगांव विस्फोट मामला?
29 सितंबर 2008 को नासिक जिले के मालेगांव में एक मोटरसाइकिल में रखे गए बम से धमाका हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।
मामले की जांच पहले महाराष्ट्र ATS ने की और बाद में NIA को सौंपी गई।
इस केस में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित, स्वामी असीमानंद, सुधाकर द्विवेदी, अजय राहिरकर, मेजर उपाध्याय समेत सात लोगों को आरोपी बनाया गया था।
फैसले के मायने
17 वर्षों तक चलती रही लंबी कानूनी प्रक्रिया और लगातार बदलती जांच एजेंसियों की दिशा के बाद, एनआईए कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक मील का पत्थर माना जा रहा है।
इस निर्णय से न केवल आरोपियों को राहत मिली है, बल्कि राजनीतिक, वैचारिक और सांप्रदायिक विमर्शों पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है।