
पटना | राजधानी पटना के सबसे सुरक्षित और वीआईपी माने जाने वाले इलाके में एक सनसनीखेज हत्या की वारदात सामने आई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और जाने-माने कारोबारी गोपाल खेमका की शुक्रवार देर रात गोली मारकर हत्या कर दी गई। वारदात गांधी मैदान थाना क्षेत्र स्थित ट्विन टावर के पास हुई, जो सुरक्षा व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े कर रही है।
सिर में सटाकर मारी गोली, मौके पर ही मौत
पुलिस के अनुसार, खेमका रात करीब 11:45 बजे अपने घर लौट रहे थे, जब हमलावरों ने उन्हें निशाना बनाया। बाइक सवार बदमाशों ने सिर में नजदीक से गोली मारी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। गंभीर हालत में उन्हें पास के अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
पुलिस पर लापरवाही का आरोप, डेढ़ घंटे बाद पहुंची टीम
परिजनों ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि घटना की सूचना देने के बावजूद पुलिस टीम डेढ़ घंटे बाद घटनास्थल पर पहुंची। मामला शहर के सबसे हाई-प्रोफाइल इलाकों में से एक में घटित हुआ है, जहां सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम रहते हैं। बावजूद इसके, पुलिस की इतनी धीमी प्रतिक्रिया कई सवालों को जन्म दे रही है।
पहले भी हत्या का शिकार हो चुका है परिवार
गौरतलब है कि यह परिवार पहली बार अपराधियों का शिकार नहीं बना। वर्ष 2018 में गोपाल खेमका के बेटे की भी हत्या कर दी गई थी। लगातार दो-दो हत्याओं से परिवार पर गहरा संकट छा गया है।
वीआईपी इलाकों में अपराधियों के हौसले बुलंद
यह घटना ऐसे समय में सामने आई है जब हाल ही में पटना में मंत्री अशोक चौधरी के आवास के बाहर फायरिंग की घटना हुई थी। इसके कुछ ही दिन पहले पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के आवास के समीप भी एक युवक पर गोलियां चलाई गई थीं। लगातार हो रही इन वारदातों से पटना के वीआईपी इलाकों में कानून व्यवस्था को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है।
राज्य में अपराधियों के हौसले बेखौफ
बिहार में ऐसी हत्याएं अब आम होती जा रही हैं। इससे पहले, मुजफ्फरपुर में एक प्रॉपर्टी डीलर टुनटुन चौधरी की भी सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। घटनाओं की श्रृंखला राज्य में बेखौफ अपराधियों की मौजूदगी और कमजोर पुलिसिंग सिस्टम की ओर इशारा करती है।
राजधानी के वीआईपी इलाके में भाजपा नेता की दिनदहाड़े हत्या न सिर्फ कानून व्यवस्था की पोल खोलती है, बल्कि राज्य सरकार के सुरक्षा दावों को भी कठघरे में खड़ा करती है। एक बार फिर सवाल वही है—आख़िर आम आदमी कितना सुरक्षित है?