
पनामा सिटी: अमेरिका ने पनामा नहर क्षेत्र में सैन्य अभ्यासों की एक नई श्रृंखला शुरू की है, जिसमें अमेरिकी सेना ने पनामा की राष्ट्रीय सुरक्षा बलों के साथ मिलकर हेलीकॉप्टरों और अन्य सैन्य संसाधनों के ज़रिए “सुरक्षा एवं जवाबदेही” का अभ्यास किया। लेकिन विश्लेषकों की नजर में, यह केवल एक रूटीन सैन्य ड्रिल नहीं, बल्कि चीन को दिया गया रणनीतिक और राजनीतिक संदेश है — खासतौर पर ऐसे समय में जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार, तकनीक और भू-सुरक्षा को लेकर तनाव चरम पर है।
अभ्यास का सैन्य और प्रतीकात्मक महत्व
रविवार को अमेरिका के तीन हेलीकॉप्टर — दो यूएच-60 ब्लैक हॉक और एक सीएच-47 चिनूक — पनामा-प्रशांत एयरबेस पर उतरे। यह वही क्षेत्र है, जो पहले अमेरिकी सैन्य अड्डा हावर्ड बेस था। अब एक नए द्विपक्षीय समझौते के तहत अमेरिका को बिना स्थायी बेस बनाए वहां प्रशिक्षण गतिविधियों की अनुमति मिली है।
इस समझौते को लेकर पनामा में जन विरोध शुरू हो गया है, क्योंकि कई लोग इसे संप्रभुता के हनन और अमेरिका की “नई सैन्य मौजूदगी” की शुरुआत के तौर पर देख रहे हैं।
ट्रंप की नीति और चीन पर सीधा हमला
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो अब दोबारा सत्ता में लौटने की दौड़ में हैं, लंबे समय से यह दावा करते आ रहे हैं कि चीन ने पनामा नहर में असंतुलित प्रभाव स्थापित कर लिया है, जिससे अमेरिकी सुरक्षा को खतरा है। उन्होंने यहां तक कहा था कि अमेरिका को नहर पर अपना “पुराना नियंत्रण” फिर से स्थापित कर लेना चाहिए।
यह नहर न केवल विश्व व्यापार का 5% संभालती है, बल्कि अमेरिका के लगभग 40% समुद्री कंटेनर ट्रैफिक के लिए भी एक अहम रूट है। ऐसे में चीन की कथित मौजूदगी या निवेश को ट्रंप और उनकी टीम “आर्थिक प्रभुत्व और जासूसी जोखिम” के रूप में देखती है।
पनामा की स्थिति: संतुलन की मुश्किल चुनौती
पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने स्पष्ट किया है कि नहर का प्रशासन एक स्वायत्तशासी निकाय – पनामा नहर प्राधिकरण द्वारा किया जाता है और सभी टोल शुल्क और संचालन निर्णय उसी के हाथ में हैं।
लेकिन चीन की कंपनी सीके हचिसन (CK Hutchison), जो पनामा पोर्ट्स की सहायक कंपनी है, उस पर भी बढ़ता दबाव दिख रहा है। जनवरी में पनामा सरकार ने इस कंपनी के खिलाफ ऑडिट की प्रक्रिया शुरू की, जिससे पता लगाया जा सके कि वह रियायत अनुबंध की शर्तों का पालन कर रही है या नहीं।
भूराजनीतिक संदेश और वैश्विक दृष्टिकोण
इस पूरे घटनाक्रम को केवल अमेरिका-पनामा सहयोग नहीं, बल्कि “चीन को रणनीतिक संप्रेषण” के रूप में देखा जा रहा है:
- अमेरिका यह जताना चाहता है कि वह अभी भी पश्चिमी गोलार्ध का रणनीतिक नियंत्रक है।
- चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के जवाब में अमेरिका मध्य और दक्षिण अमेरिका में सैन्य-सामरिक सक्रियता दिखा रहा है।
- यह अभ्यास ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के विस्तार जैसा है, जिसमें भू-आर्थिक रूट्स को नियंत्रित करना प्राथमिकता में रहा है।
क्या यह केवल अभ्यास है? या चीन के लिए चेतावनी?
पनामा नहर का सैन्यीकरण लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। एक तरफ अमेरिका इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार का संरक्षण बताता है, तो दूसरी तरफ स्थानीय जनता और कई पर्यवेक्षक इसे छिपा हुआ सामरिक हस्तक्षेप मानते हैं।
ट्रंप की बार-बार की धमकियां और चीन की बढ़ती आर्थिक मौजूदगी के बीच, यह सैन्य अभ्यास केवल एक प्रशिक्षण नहीं — बल्कि एक भूराजनीतिक थियेटर बनता जा रहा है, जहां हर कदम पर सत्ता और प्रभाव की प्रतिस्पर्धा छिपी है।