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क्रिसमस पर ट्रंप का ‘ऑपरेशन प्रहार’: नाइजीरिया में ISIS ठिकानों पर विनाशकारी एयरस्ट्राइक, राष्ट्रपति बोले- ‘मैरी क्रिसमस टू ऑल…’

वॉशिंगटन/अबूजा: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपनी “अमेरिका फर्स्ट” और आतंकवाद के प्रति “जीरो टॉलरेंस” की नीति का परिचय देते हुए क्रिसमस के पावन अवसर पर एक बड़ा सैन्य ऑपरेशन अंजाम दिया है। अमेरिकी वायुसेना ने उत्तर-पश्चिम नाइजीरिया में सक्रिय आतंकी संगठन ISIS के ठिकानों पर अब तक की सबसे भीषण एयरस्ट्राइक की है। इस हमले में दर्जनों आतंकियों के मारे जाने की खबर है, जिससे वैश्विक राजनीति और सुरक्षा गलियारों में हड़कंप मच गया है।

ट्रुथ सोशल पर ट्रंप का कड़ा संदेश: “ISIS के स्कम को नहीं छोड़ेंगे”

ऑपरेशन के सफल समापन के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ (Truth Social) के जरिए दुनिया को इस कार्रवाई की जानकारी दी। उन्होंने बेहद सख्त लहजे में आतंकियों को चेतावनी देते हुए लिखा कि निर्दोषों का खून बहाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।

ट्रंप ने अपनी पोस्ट में लिखा, “आज रात मेरे निर्देश पर, संयुक्त राज्य अमेरिका ने उत्तर-पश्चिम नाइजीरिया में ISIS के ठिकानों पर एक शक्तिशाली और घातक हमला किया है। ये आतंकी निर्दोष ईसाइयों को निशाना बना रहे थे। मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि यदि ईसाइयों का नरसंहार नहीं रुका, तो इसके परिणाम विनाशकारी होंगे। आज रात दुनिया ने वो अंजाम देख लिया है।”

ईसाइयों के खिलाफ हिंसा का ‘अंतिम न्याय’

गौरतलब है कि नाइजीरिया और उसके पड़ोसी देशों में पिछले कुछ महीनों से ईसाई समुदायों पर हमलों की घटनाओं में भारी वृद्धि देखी गई थी। ट्रंप प्रशासन लगातार स्थानीय सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों को इस नरसंहार के खिलाफ चेतावनी दे रहा था।

राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने संदेश में आगे कहा, “ईश्वर हमारी सेना को आशीर्वाद दें। सभी को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएं—जिनमें वे मारे गए आतंकवादी भी शामिल हैं। यदि ईसाइयों का कत्लेआम जारी रहा, तो मारे जाने वाले आतंकियों की यह संख्या और भी अधिक होगी।” विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह बयान उन वैश्विक आतंकी समूहों के लिए सीधी चुनौती है जो धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं।


ऑपरेशन की मुख्य विशेषताएं:

  • सटीक निशाना (Precision Strike): अमेरिकी सैन्य सूत्रों के अनुसार, यह हमला ड्रोन और उच्च-तकनीकी लड़ाकू विमानों के जरिए किया गया, जिसमें नागरिक क्षति को शून्य रखने का प्रयास किया गया।

  • लोकेशन: हमला उत्तर-पश्चिम नाइजीरिया के उन घने जंगली इलाकों में किया गया, जहाँ ISIS और बोको हरम जैसे संगठनों ने अपने सुरक्षित ठिकाने बना रखे थे।

  • इंटेलिजेंस इनपुट: सीआईए (CIA) और स्थानीय खुफिया एजेंसियों के साझा इनपुट पर आधारित यह ऑपरेशन हफ्तों की निगरानी के बाद अंजाम दिया गया।


नाइजीरिया में बढ़ता आतंक और अमेरिकी हस्तक्षेप

नाइजीरिया का उत्तर-पश्चिमी हिस्सा लंबे समय से अस्थिरता का केंद्र रहा है। यहाँ ISIS-वेस्ट अफ्रीका प्रोविंस (ISWAP) ने अपना दबदबा कायम कर रखा है। राष्ट्रपति ट्रंप के इस कदम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका अब केवल कूटनीतिक दबाव तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई से भी पीछे नहीं हटेगा।

विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की यह कार्रवाई उनके उस चुनावी वादे को पूरा करती है जिसमें उन्होंने वैश्विक मंच पर अमेरिका की धाक फिर से जमाने और कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद (Radical Islamic Terrorism) को जड़ से मिटाने की बात कही थी।

वैश्विक राजनीति पर प्रभाव

ट्रंप की इस एयरस्ट्राइक ने वैश्विक स्तर पर नई बहस छेड़ दी है। जहाँ ईसाई संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस कदम का स्वागत किया है, वहीं कुछ अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषक इसे संप्रभुता के उल्लंघन के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, ट्रंप प्रशासन का स्पष्ट तर्क है कि जहाँ भी अमेरिकी हितों या मानवता के खिलाफ संगठित अपराध होगा, अमेरिका वहां हस्तक्षेप करने का अधिकार रखता है।

सुरक्षा विशेषज्ञों की राय

रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रिटायर्ड) आर.के. सिंह का कहना है, “यह हमला केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक युद्ध है। क्रिसमस के दिन हमला करके ट्रंप ने यह संदेश दिया है कि सुरक्षा एजेंसियां कभी नहीं सोतीं और त्यौहारों की आड़ में आतंकी बच नहीं पाएंगे।”


निष्कर्ष: ‘शांति के लिए शक्ति’ का सिद्धांत

राष्ट्रपति ट्रंप का यह कदम उनकी “शांति के लिए शक्ति” (Peace through Strength) की नीति को दोहराता है। नाइजीरिया में हुई यह एयरस्ट्राइक केवल ISIS के लिए एक झटका नहीं है, बल्कि दुनिया भर के उन आतंकी संगठनों के लिए चेतावनी है जो निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाते हैं।

क्रिसमस 2025 का यह दिन इतिहास में एक ऐसे मोड़ के रूप में दर्ज होगा जहाँ एक महाशक्ति ने अपने धार्मिक और मानवीय दायित्वों को पूरा करने के लिए कठोर सैन्य विकल्प चुना। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि आतंकी संगठन इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं और अमेरिकी सेना आगामी दिनों में अपनी रणनीति को किस दिशा में ले जाती है।

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